तमिलनाडु कांग्रेस में भारी गुटबाजी
थंकबालू के खिलाफ असंतोष बढ़ा
कल्याणी शंकर - 2011-04-23 15:03
तमिलनाडु में चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हो गया है, इसके बावजूद राज्य का राजनैतिक पारा ऊपर चढ़ा हुआ है। जैसे ही चुनाव प्रचार का शोरगुल समाप्त हुआ, कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी अपने चरम पर पहुंच गई हैं।
कांग्रेस में चल रहे केन्द्र में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के वी थंकबालू हैं। 13 अप्रैल को जैसे ही मतदान का काम पूरा हुआ, उन्होंने पार्टी से 19 सदस्यों को निकाले जाने की घोषणा कर दी। उन 19 में से 7 तो युवा कांग्रेस के निर्वाचित पदाधिकारी हैं। उनका निर्वाचन राहुल गांधी की देखरेख मंे हुआ था। उसके बाद से ही श्री थंकबालू के खिलाफ असंतोष की गतिविधियां जोर पकड़ रही हैं। राज्य भर में उनका विरोध हो रहा है और उनके पुतले तक जलाए जा रहे हैं।
थंकबालू द्वारा की गई कार्रवाई ने उनके सारे विरोधियों को उनके खिलाफ एक कर दिया है। जी के वासन, कार्तिक चिदंबरम और इलांगवन अपने अपने गुटों के नेता हैं। वे अब थंकबालू के खिलाफ एक हो गए हैं। राज्य युवा कांग्रेस के अध्यक्ष युवराज और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष इलांगवन ने थंकबालू के खिलाफ पार्टी आलाकमान को कड़े शब्दों में पत्र लिखे हैं।
राज्य प्रमुख के खिलाफ असंतोष तो पहले से ही था। चुनाव के दौरान टिकट बांटने में उनके द्वारा की गई मनमानी के कारण अनेक प्रदेश नेता तो पहले से ही उनसे खफा थे। कांग्रेस ने इस बार 63 सीटों पर अपने उम्मीदवार देने में सफलता हासिल कर ली थी, लेकिन शिकायत है कि थंकबालू ने गलत लोगों को टिकट दे डाले। पिछले महीने राज्य के 7 कांग्रेसी सांसदों ने अपने क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करने से मना कर दिया था। अंत में उन्हें शांत करने के लिए कुछ उम्मीदवारों को बदलना भी पड़ा था।
उनके खिलाफ असंतोष का एक और कारण है। उन्होंने प्रतिष्ठित मैलापुर से अपनी पत्नी को पार्टी का टिकट आबंटित करवा दिया। उनकी डमी के रूप में वे खुद भी वहां से खड़े हो गए थे। उनकी पत्नी का नामांकन जांच के दौरान अवैध घोषित हो गया और उसके बाद तो वे खुद पार्टी के वहां से उम्मीदवार बन गए। इसके कारण उन्होंने अनेक लोगों को अपना विरोधी बना लियां। मैलापुर का निवर्तमान विधायक पिछले चुनाव में जयललिता की पार्टी से जीता था, जो इस बार दल बदल कर कांग्रेस में आ गया था। उसका दावा इस सीट के लिए बहुत मजबूत था, लेकिन उसे टिकट नहीं मिला। पिछली बार कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर हारने वाला उम्मीदवार भी टिकट पाने का एक सशक्त दावेदार था, पर प्रदेश अध्यक्ष ने अपनी पत्नी को आगे कर खुद वहां का उम्मीदवार बनने की रणनीति बना ली। उसमें वे सफल भी हो गए, लेकिन उसके कारण उनके खिलाफ असंतोष भी बढ़ गया है।
अब थंकबालू को उनके पद से हटाने की मांग की जा रही है। असंतुष्टों की मांग कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंच गई है। कांग्रेस महासचिव गांधी तक भी असंतुष्ट पहुंच चुके हैं। तमिलनाडु के नेता पी चिदंबरम और जी के बासन ने इस मामले में राहुल से बात भी की है। पी चिदंबरम के बेटे कार्तिक चिदंबरम इस खेल के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हो गए हैं। उन्होंने अपने पिता को बता दिया है कि प्रदेश अध्यक्ष ने उन लोगों को भी पार्टी से निकाल दिया, जिन्हें निकालने की शक्ति वे रखते ही नहीं हैं।
इस असंतोष से कांग्रेस को चिंतित होना चाहिए, क्यांेंकि इस बार राज्य में कांग्रेस को पहले से बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। यदि डीएमके के मोर्चे को बहुमत मिला, तो इस बार सरकार में कांग्रेस भी शामिल होगी। ऐसे समय में कांग्रेस का यह असंतोष पार्टी के लिए अशुभ है। कुछ लोगों का कहना है कि राज्य की 42 सीटों पर जहां कांग्रेस का जयललिता की पार्टी से सीधा मुकाबला हो रहा था, पार्टी की कमजोरी जयललिता की पार्टी के बहुमत में आने का कारण तक बन सकती है। खुद पं्रदेश अध्यक्ष की राय है कि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र मैलापुर में कांग्रेस के उनके विरोधियों ने उनके खिलाफ काम किया।
कांग्रेस में गुटबाजी का एक कारण तो यह है कि यहां राजाजी और कामराज की तरह कोई मजबूत नेता उभरा ही नहीं है। 1967 के बाद से पार्टी लगातार सत्ता से बाहर रही है और चुनावों में वह कभी डीएमके के साथ तो कभी अन्ना एडीएमके के साथ समझौता कर चुनाव लड़ती रही है। ऐसी स्थिति में उसकी पार्टी मे कोई कद्दावर नेता पैदा ही नहीं हुआ है। पी चिदंबरम जैसे नेता सिर्फ केन्द्र की राजनीति में ही दिलचस्पी लेते हैं।
तमिलनाडु की राजनीति में बदलाव के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। बदलाव की इस घड़ी में कांग्रेस की फूट पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए पार्टी आलाकमान को पार्टी को अनुशासित रखने पर ध्यान देना चाहिए। (संवाद)