यह असंतोष एकाएक पैदा नहीं हुआ, बल्कि इसकी चिन्गारी पहले से ही सुलग रही थीं। कंपनी के चेयरमैन नारायणमूर्त्ति द्वारा रिटायर होने का समय नजदीक आ गया है और उनके रिटायरमेंट के कारण कंपनी में जिस तरह के बदलाव आ रहे हैं उसमें अपने आपको श्री पै उपेक्षित पा रहे थे।
इस्तीफे के बाद उन्होने कंपनी के अंदर फाउंडर बनाम ोफेसनल का सवाल खड़ा किया है। श्री पै खुद प्रोफेशन डायरेक्टर थे। 1994 में उन्होंने कंपनी सं अपने आपको जोड़ा था। वे लंबे समय से कंपनी के फायनांस विभाग में थे। पिछले 5 सालों से वे कंपनी के मानव संसाधन विभाग (एचआरडी) के प्रमुख के तौर पर काम कर रहे थे। यह पद चीफ एक्जक्यूटिव औफिसर (सीइओ) चीफ आपरेटिंग ऑफिसर के बाद कंपनी का तीसरा सबसे बड़ा कार्यकारी पद है। नारायणमूर्ति के रिटायरमेंट के बाद उनके पद पर वर्तमान सीइओ राधाकृष्णन के उनकी जगह चेयरमैन या को चेसरमैन बनने की संभावना है और वर्तमान चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शीबूलाल के सीइओ बन जाने की संभावना है। पै की भड़ास से यह साफ हो रहा है कि वे कंपनी का सीइओ बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें उसमें सफलता मिलती नहीं दिख रही थी। इसलिए उन्होंने कंपनी ही छोड़ दी।
किसी शीर्ष एक्जक्यूटीव द्वारा कंपनी को छोड़ना कार्पोरेट जगत की शायद ही कभी कोई बड़ी घटना मानी जाती है। कंपनियों के शीर्ष अधिकारी एक को छोड़कर दूसरे को पकड़ते रहे हैं। लेकिन पै द्वारा इस्तीफा देने के बाद साफ्टवेयर उद्योग में एक प्रकार की हलचल मची हुई है, तो उसके अपने कारण हैं। एक कारण तो उनका उस कंपनी का होना है, जिसने नारायणमूर्ति के नेतृत्व में देश में अपनी एक बड़ी साख और धाक बना रखी है। दूसरा कारण वह इस्तीफा वैसे समय में हुआ है, जब न्यायमूर्ति कंपनी में अपने उत्तराधिकारी की तलाश में लगे हुए हैं। तीसरा कारण इस्तीफे के समय कंपनी का कमजोर वित्तीय नतीजा आना है। कंपनी तो घाटे में अभी भी नहीं है, लेकिन उसका मुनाफा बहुत कम हो गया है। सॉफ्टवेयर उद्योग में आज घरेलू ही नहीं, बल्कि विदेशी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गई है और कर्मचारियों को कंपनी में बनाए रखने के लिए सालाना पे हाइक का सम्मानजनक होना जरूरी है। इसके लिए कंपनी को ज्यादा मुनाफा चाहिए। कम मुनाफे से शेयरबाजार में कंपनी की साख भी गिरी है और कंपनी के शेयरों की कीमत गिर गई है। वैसी हालत में श्री पै का इस्तीफा और इस्तीफे के बाद उनके द्वारा निकाली जा रही भड़ास कंपनी के हित में नहीं है।
इस कंपनी की स्थापना 1981 में की गई थी। 6 अन्या लोगों के साथ मिलकर नारायणमूर्ति ने इस कंपनी की स्थापना की थी। 6 में से तीन तो कंपनी को पहले ही छोड़ चुके थे। छोड़ने वालों में श्री नीलकानी भी एक हैं, जो फिलहाल भारत सरकार की ओर से यूनिक आई कार्ड के निर्माण के काम में लगे हुए हैं। अब श्री पै के साथ ही एक संस्थापक श्री दिनेश ने भी कंपनी छोड़ दी है। उसके बाद अब नारायणमूर्ति समेत सिर्फ तीन फाउंडर ही कंपनी में रह गए हैं। उनके रिटायर होने के बाद सिर्फ दो फाउंडर रह जाएंगे और वे हैं राधाकृष्णन और शीबूलाल। कंपनी के अंदर श्री पै से वरिष्ठ ये दो अधिकारी ही थे। राधाकृष्णन के चेयरमैन अथवा को चेयरमैन बनने के बाद उनके द्वारा खाली किए गए पद पर खुद पै बैठना चाहते थे, लेकिन नारायणमूर्ति ने कंपनी फाउंडर शीबूलाल को पसंद किया। और यही कारण है कि श्री पै कंपनी द्वारा प्रोफेसनल की जगह फाउंडर को महत्व देने का मामला उठाते दिखाई पड़ रहे थे।
भारतीय उद्योग जगत में औद्योगिक घरानों का महत्व कुछ ज्यादा ही रहा है। घराने के सदस्य प्रोफेसनलों पर भारी पड़ते हैं। वे कंपनी में चाहे जिस पद पर काम करें, वे कंपनी के मालिक ही कहे जाते हैं और अंततः कंपनी के बड़े पदों पर वे ही बैठते हैं। लेकिन श्री पै ने औद्योगिक घरानों का सवाल नहीं उठाया है, बल्कि फाउंडर बनाम प्रोफेसनल का मामला उठाया है। सॉफ्टवेयर उद्योग अन्य उद्योगो से एक मायने में इसलिए अलग है कि इसके नेत्त्व के लिए टेक्नालॉजी की विशेष समझ होनी चाहिए और इसका बाजार भी बहुत जटिल है। इसलिए इसमें औद्योगिक घराना चलाने की संभावना बहुत कम है। लेकिन कंपनी की जिन लोगों ने स्थापना की है, वे रिटायर होने तक तो इसका पर काबिज रहना ही चाहंेगे। उनकी यह चाह श्री पै को खल रही थी। इसलिए उन्होंने कंपनी को ही छोड दिया।
श्री पै ने कंपनी छोड़ने के बाद एक और महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है। वह सवाल प्रबंधको के प्रोमोशन को लेकर है। अबतक की मान्य परंपरा के अनुसार किसी को प्रोमोट करने के पहले उसका अतीत देखा जाता है। खुद चेयरमैन नारायणमूर्ति कहते हैं कि कंपनी में यदि दो अधिकारी किसी पद के लिए सामान्य रूप से योग्य हो तो उन दोनों में वे उसे प्रोमोट करना चाहेंगे, जो कंपनी में पहले से काम कर रहा है। लगता है कि इसी के आधार पर उन्होंने शीबूलाल को सीइओ के पद के लिए मोहनदास पै के ऊपर वरीयता दी। लेकिन इस तर्क से श्री सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि किसी बड़े पद खासकर कंपनी के प्रमुख अधिकारी के पद का भरते समय घ्यान अधिकारियों के अतीत पर नहीं, बल्कि कंपनी के भविष्य पर होना होना चाहिए। वे कहते हैं कि कंपनी के प्रमुख पद पर किसी को बैठाते समय कंपनी के हित का ध्यान पहले रखा जाना चाहिए और जिन्हे पद पर बैठाया ज रहा है, उसके अतीत को उतना तवज्जो नहीं दिया जाना चाहिए। जाहिर है कि श्री पै कंपनी के भविष्य के लिहाज से अपने आपको शीबूलाल से बेहतर समझ रहे थे, लेकिन न्यायमूर्ति ने अपने सह संस्थापक जो पिछले 30 साल से कंपनी से जुड़े हैं, को महत्व दिया न कि श्री पै को, जो पिछले 16 सालों से ही कंपनी से जुड़े हुए थे।
आने वाले दिनों में इन्फोसिस के शीर्ष प्रबंधन को लेकर सारी स्थिति साफ हो जाएगी। यह पता चल जाएगा कि श्री नाराणमूर्ति अपना उत्तराधिकारी किसे बनाते हें और कंपनी के अन्य शीर्ष पदों पर कौन आता है। फिलहाल पीढ़ीगत बदलाव की बात की जा रही है, लेकिन सच तो यह है कि कंपनी के संस्थापको ने नई पीढ़ी को शीर्ष प्रबंधन में बढ़ने का मौका ही नहीं दिया है। इसलिए कंपनी के शीर्ष्र पर अगले 5 सालों तक वे ही रहंेगे, जिन्होंने 30 साल पहले इसकी स्थापना की थी। लगता है मोहनदास पै का दर्द यही है। (संवाद)
भारत
इन्फोसिस के शीर्ष प्रबंधक का सवाल
मोहनदास का दर्द
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-04-28 20:21
देश की दो सबसे बड़ी निर्यातक कंपनियों मे से एक इन्फोसिस में उत्तराधिकार का मामला गर्मी पैदा कर रहा है ओर उसकी यह गर्मी सिर्फ उसी तक सीमित नहीं रह गई है। कंपनी के एक डायरेक्टर मोहनदास पै ने कंपनी से इस्तीफा देने के बाद जिस तरह के बयान दिए हैं, उससे यह साफ हो गया है कि उनका इस्तीफा कंपनी के शीर्ष प्रबंधन के साथ उनके असंतोष का ही परिणाम था।