दोनों के बीच संबंध तो वैसे भी तनावपूर्ण हो गए हैं। पहले ए राजा की गिरफ्तारी और बाद में सीटों के लिए दोनों के बीच खींचतान में में दोनों की एकता का नुकसान हो चुका है। हालांकि विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने आपसी तालमेल बैठाए रखने की बहुत कोशिश की और लोगों को यह दिखाते रहे कि वे एक हैं, पर अब करुणानिधि की बेटी कनिमोझी के खिलाफ 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद दोनों के बीच तनाव नई ऊंचाई पर पहुंच गई है।

फिलहाल दोनों पार्टियां कनिमोझी के खिलाफ मुकदमा चलाने के मामले को हल्का करके दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन करुणानिधि के लिए यह कोई साधारण घटना नहीं है। कलईगर टीवी में उनकी पत्नी दयालु अम्मा की 60 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके बावजूद उनपर मुकदमा नहीं चलाया गया है, लेकिन अदालत मंे जाकर कोई पूछ सकता है कि उन्हें आरोप से मुक्त क्यों रखा गया है। यदि उन पर भी चार्जशीट दायर हो जाता है, तो करुणानिधि खुद भी 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के दायरे में आ जाएंगे। इससे ज्यादा खराब स्थिति उनके लिए और क्या हो सकती है?

फिलहाल डीएमके चुप बैठी हुई है। उसके पास 13 मई तक चुप रहने के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं है। 13 मई को चुनाव के नतीजे आएंगे और पता चलेगा कि कौन कितना पानी में है और किसकी सरकार बनती है। यदि करुणानिधि के मोर्चे को बहुमत मिल गया, तो डीएमके की कांग्रेस के साथ सौदेबाजी की ताकत बढ़ जाएगी। उसकी सरकार का उस राज्य में एक बार फिर गठन हो जाएगा। तब यह भी सवाल उठेगा कि कांग्रेस को वहां सरकार में रखा जाए या नहीं। कांग्रेस सरकार में शामिल होना चाहेगी। करुणानिधि नहीं चाहते हुए भी कांग्रेस के दबाव में आकर उसे सरकार में शामिल करने को विवश हो सकते हैं।

करुणानिधि के सामने उत्तराधिकार का मामला भी खड़ा है। एक बेटी और दो बेटे उनके उत्तराधिकार पर दावा कर रहे हैं। बेटी पर तो मुकदमा चल रहा है। इसलिए अब वह उत्तराधिकार की लड़ाई से बाहर हो गई है। अब बच गए हैं उनके दो बेटे। करुणानिधि अपने छोटे बेटे स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी यानी तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, लेकिन उनके बड़े बेटे इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। करुणानिधि यह काम कैसे करते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।

केन्द्र की राजनीति की स्थिरता के हित में यही होगा कि वहां डीएमके के नेतृत्व वाला मोर्चा चुनाव जीत जाए। वैसा होने से केन्द्र में कांग्रेस का डीएमके का समर्थन मिलता रहेगा और समाजवादी पार्टी, बसपा अथवा राष्ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियों पर उसकी निर्भरता नहीं बन पाएगी। यदि वहां सत्तारूढ़ मोर्चा चुनाव हार जाता है तो तमिलनाडु में करुणानिधि की हालत तो खराब होगी ही केन्द में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार भी डांवाडोल हो सकती है। वैसी हालत में डीएमके केन्द्र सरकार से समर्थन वापस ले सकती है। यदि वह समर्थन वापस नहीं ले, तब भी वह केन्द्र से अपनी पार्टी के मंत्रियों को बाहर कर सकती है। वैसी स्थिति में हर संकट की घड़ी में उसे डीएमके का समर्थन हासिल करने के लिए मनुहार करना होगा। सपा और बसपा भी उसके पास दो विकल्प हैं, लेकिन अब उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा का चुनाव होने वाला है और वहां कांग्रेस न केवल अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ने वाली है, बल्कि उसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल भी मानकर चल रही है। ऐसे माहौल में केन्द्र की सरकार को चलाने के लिए सपा अथवा बसपा पर निर्भरता कांग्रेस की निर्भरता प्रदेश में उसकी राजनीति को खराब भी कर सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस चाहेगी कि डीएमके के मंत्री उसकी सरकार में बने रहें। (संवाद)