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आतंकवाद पर राजनीति का एक और उदाहरण

केंद्र सरकार इशरत मामले पर चुप क्यों
ओ.पी. पाल - 2010-07-08 08:19
केंद्र की यूपीए सरकार एक और तो आतंकवाद की चुनौतियों से निपटने की बात करती है और दूसरी और वह आतंकवाद पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आई। गुजरात पुलिस के हाथों एक मुठभेड़ के दौरान अपने दो अन्य साथियों के साथ मारी गई मुंबई की छात्रा इशरत जहां के मामले पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमैन हेडली के खुलासे से तो शायद कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की इसी प्रकार की राजनीति बेनकाब होती नजर आ रही है।

ध्वनि प्रदूषण : आकलन एवं नियंत्रण

कल्पना पालखीवाला - 2010-07-07 12:07
ध्वनि प्रदूषण और पर्यावरणीय शोर मानव और अन्य जीवों को कष्ट पहुंचा रहा है। अवांछित ध्वनि से मानव को शारीरिक एवं मानसिक समस्याएं होती हैं। यह उच्च रक्तचाप, उच्च मानसिक दबाव आदि कई बीमारियां पैदा करता है जिससे लोग भूलने, गंभीर अवसाद, नींद न आने और अन्य गंभीर प्रभावों की चपेट में आ जाते हैं।

वामदलों का गैरकांग्रेसवाद

राजनैतिक टकराव बढ़ने के आसार
अमूल्य गांगुली - 2010-07-07 11:46
आजादी के बाद गैरकांग्रेसवाद की जो राजनीति चल रही थी, अब वह वापस आ रही है। हालांकि वामदल कह रहे हैं कि पेट्रोल की कीमतों के बढ़ाने के विरोध में 5 जुलाई के उनके बंद के दिन ही भाजपा का भी बंद महज एक संयोग था। लेकिन यह तथ्य कि दोनों उस रोज एक ही खेमे में थे, को कोई नहीं झुठला नहीं सकता।

महिला आयोग की रिपोर्ट की अनदेखी कर रही हैं सरकारें

ओ.पी. पाल - 2010-07-07 11:42
राष्ट्रीय महिला आयोग का इस बात का मलाल है कि आयोग की रिपोर्टो पर राज्य की सरकारें कोई ध्यान नहीं देती हैं, जिसके कारण महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व राजस्थान में सासे ज्यादा घटनाएं होने के बावजूद यहां की सरकारें उदासीन है जिसके कारण महिला आयोग ज्यादा खफा नजर आ रहा है।

भारत बंद और एकजुट विपक्ष

केन्द्र सरकार के लिए खतरे की घंटी
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-07-06 10:05
भारत बंद की सफलता के बाद केन्द्र सरकार को अब सचेत हो जाना चाहिए। इस बंद ने विभाजित विपक्ष को एकजुट कर दिया है और केन्द्र सरकार अब पहले की तरह निश्चिंत भाव से सारे निर्णय नहीं ले सकती। पिछले 5 जुलाई को पहली बार भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दल एक ही मसले पर एक ही दिन किसी बंद को सफल कराते देखे गए। भारत की राजनीति के लिए यह अभूतपूर्व घटना थी। हालांकि राजीव गांधी की सरकार के अंतिम वर्षों में भी भाजपा और वामदल भ्रष्टाचार के मसले पर साझा कार्रवाई करते थे, लेकिन उस समय भी देश भर में इस तरह के बंद का आयोजन नहीं किया गया था।

असम में भ्रष्टाचार का एक बड़ा मामला उजागर

विपक्ष के निशाने पर मुख्यमंत्री
बरुण दासगुप्ता - 2010-07-05 08:07
कोलकाताः असम में एक बड़ा घोटाला सामने आया है जिसमें राज्य के अनेक मंत्री और कांग्रेस के अनेक सांसद लिप्त देखे जा रहे हैं। इसके कारण मुख्यतंत्री तरुण गोगाई को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। राज्य विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है। वैसे में यह घोटाला कांग्रेस के लिए भारी नुकसानदायक साबित हो सकता है।

कश्मीर घाटी में हिंसा रोकने में विफल रही सरकार

ओ.पी. पाल - 2010-07-03 09:28
कश्मीर घाटी में पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि जा अमरनाथ यात्रा आरम्भ होती है तो उसी समय अलगावादी संगठन हिंसा पर उतर आते हैं, लेकिन यह सा जानते हुए भी जम्मू-कश्मीर सरकार कानून व्यवस्था को बहाल रखने के लिए कोई अग्रिम नीति नहीं बना पाती, जिससे घाटी के हालात बाद से बादतर हो जाते हैं।
भारत

पर्यटन मंत्रालय प्रचार सामग्री तैयार करने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता देगी

विशेष संवाददाता - 2010-07-02 11:10
नई दिल्ली: सार्वजनिक निजी भागीदारी आधार पर पर्यटन को और बढा़वा देने तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अधिक प्रचार सामग्री तैयार करने को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय ने राज्य सरकारोंकेन्द्र शासित प्रदेशों को निजीक्षेत्र के सहयोग से प्रचार सामग्री तैयार करने के लिए वित्तीय सहायता देने के मार्ग निर्देश तय किये हैं ।

केरल में औद्योगिक संबंध में नए आयाम

सरकारी उपक्रमों के निदेशक मंडल में होगे श्रमिक नेता
पी श्रीकुमारन - 2010-07-01 10:01
तिरुअनंतपुरमः केरल सरकार ने एक ऐसा फैसला किया है, जो न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह पूरे देश में अद्योगिक संबंधों को नए सिरे से पारिभाषित करने की क्षमता रखती है। वह निर्णय है कि कंपनियों के शीर्ष प्रबंधन में श्रमिक नेताओं को शामिल करना। निदेशक मंडल में मजदूर नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित कराना कभी बौद्धिक बहस का विषय हुआ करता था, लेकिन अब तो उस पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती। इस माहौल में केरल सरकार ने यह फैसला किया है कि औद्योगिक कंपनियों के निदेशक मंडल में मजदूरों का भी प्रतिनिधित्व होगा।
भारत

सूचना के अधिकार पर भी अब नौकरशाही की नजर

डॉ अतुल कुमार - 2010-06-30 13:47
नई दिल्ली: सूचना के अधिकार पर भी अब नौकरशाही की नजर लग गयी। यों तो इसके घेरे में संसद और सुप्रीम कोर्ट समेत सारे दफ्तर आ गये पर अब भी असफल कोशिशें जारी हैं ताकि इन्हें इस कानून के दायरे में आने से बचाया जा सके। जागरूक नागरिकों को सावधान रहने की जरूरत है। कई मौकों पर अधिकारी केवल उपलब्ध दस्तावेज के आधार पर सूचना प्रदान कर टका सा जवाब दे रहे हैं। अपने यहाँ की फाईलों को अनुपलब्ध बता कर या घुमा फिरा कर जवाब देने का सिलसिला जारी हो गया है। इसको समझना होगा। अगर हिम्मत बाधें अपने अधिकार का अपरहण होने से नहीं रोका तो हमारी ही कमी कहलाएगी।