23 मार्च, 1931 को 24 वर्षीय भगत सिंह की शहादत में छिपे तथ्यों की व्याख्या
युवा क्रांतिकारी ने समानता पर आधारित समाजवादी भारत का सपना देखा
2025-03-20 10:57
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“क्रांति मानव का अविभाज्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है। श्रमिक ही समाज का वास्तविक पालनहार है। …इस क्रांति की वेदी पर, हम अपनी जवानी को धूप की तरह लाये हैं, क्योंकि इतने महान उद्देश्य के लिए कोई भी बलिदान कम नहीं है। हम संतुष्ट हैं, हम क्रांति के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं…” ये शब्द थे भगत सिंह के जब वे एक पर्चा फेंक रहे थे जिसमें वह सब कुछ था जो वे सत्ता में बैठे लोगों को बताना चाहते थे। असेंबली हॉल में बम फेंकना, किसी को चोट पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं था, बल्कि यह सिर्फ़ एक प्रदर्शनकारी कार्य था। यह श्रम-विरोधी व्यापार विवाद विधेयक के विरुद्ध था। अदालत में अपने मुकदमे में, भगत सिंह ने अदालत से कहा था कि उनके लिए क्रांति बम और पिस्तौल का पंथ नहीं है, बल्कि समाज का संपूर्ण परिवर्तन है, जिसकी परिणति सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के तहत विदेशी और भारतीय पूंजीवाद दोनों को उखाड़ फेंकने में होती है।