अनात्मवाद
अनात्मवाद वह वाद है जिसमें आत्मा का निषेध हो। श्रमणपरम्परा या बौद्ध दर्शन में इसकी अवधारणा है। इसे नैरात्मवाद, पुद्गल प्रतिषेधवाद या पुद्गल नैरात्मवाद के नाम से भी जाना जाता है। पाली में इसे ही अनत्तावाद कहा जाता है।बुद्ध ने इसे शाश्वतवाद, जिसमें आत्मा नित्य, कूटस्थ, चिरन्तन, तथा एकरूप माना जाता है , तथा उच्छेदवाद, जिसमें कहा जाता है कि आत्मा है ही नहीं, से अलग बीच का रास्ता कहा।
बुद्ध ने यह सिद्ध किया कि उनका अनात्मवाद अभौतिक नैरात्म्यवाद है। उन्होंने कहा कि रूप आत्मा नहीं है, वेदना आत्मा नहीं है, संज्ञा आत्मा नहीं है, संस्कार आत्मा नहीं है, विज्ञान आत्मा नहीं है। रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार तथा विज्ञान तो पांच स्कन्ध हैं। अर्थात आत्मा स्कन्ध से भिन्न है, फिर भी उसके घटक में ही स्कन्ध समझे जाते हैं। वास्तव में अनात्मवाद की व्याख्याएं बुद्ध से पूछे गये प्रश्नों के उत्तर में उनके मौन हो जाने के निकाले गये अर्थों पर निर्भर करती हैं। यही कारण है कि अन्त्मवाद क्या है इसपर विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं।
चाहे जो हो, सभी इस बात पर बल देते हैं कि अनात्मवाद निर्वाण की अनिवार्य शर्त है। स्कन्ध बाधाओं या रोगों के अधीन हैं। ये अनित्य हैं अर्थात् दुःख हैं। जब ये आत्मा नहीं तो इनसे निर्वेद प्राप्त करना चाहिए। विरक्ति या अनासक्ति द्वारा ही मोक्ष या निर्वाण प्राप्त हो सकता है।
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अनात्मा, अनाहत नाद, अनित्य, अनिद्रा, अनिश्चयात्मक आलोचना प्रणाली