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अर्थ

अर्थ संपत्ति को कहते हैं। हमारे पास जो भी संपदा या संपन्नता होती है वही अर्थ है। मानव इसी को हासिल करने में लगा रहता है जिसे वह विकास कहता है। भारतीय चिंतन परम्परा में अर्थ जीवन के चार मूलभूत पुरुषार्थों में से एक है। अर्थ या धन के बिना जीवन कष्टमय हो जाता है। परन्तु अर्थ पर अधिक जोर जीवन को और अधिक कष्टमय बना देता है। इसलिए ऋषि कहते हैं कि अर्थ के मामले में सावधान रहें। इसे पाना जितना कठिन है, बनाये रखना उससे भी अधिक कठिन है। जब यह जमा हो जाता है तो इसके दुष्प्रभावों से मुक्त हो पाना सबसे कठिन होता है।

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अर्थ-दोष, अर्थालंकार, अर्धचेतन, नाटक में अर्थप्रकृति का कार्य, अर्थ बोध

Page last modified on Tuesday October 17, 2023 15:22:56 GMT-0000