Loading...
 
Skip to main content
(Cached)

अविकृतपरिणामवाद

आध्यात्म में अविकृतपरिणामवाद एक मत है जिसमें कहा गया कि जगत् तथा जीव किसी मूलभूत तत्व के अविकृत परिणाम हैं। सांख्य में इसी मूलभूत तत्व को प्रकृति कहा गया तथा वैष्णव वेदान्तों में ब्रह्म अथवा ईश्वर।

वल्लभाचार्य ने कहा कि ब्रह्म एक तथा निरपेक्ष है, अद्वितीय तथा निर्विकार है, अविपरिणामी तथा कूटस्थ है। जीव भी नित्य सत् है तथा उसी ब्रह्म का परिणाम है। यह एक विचित्र परिणाम है क्योंकि इसमें ब्रह्म विकृत नहीं होता। वह तो अविकृत तथा सदा निर्विकार रहता है।

श्रुतियों में इसी अविकृतपरिणामवाद मिलता है। जगत तथा जीव तो ब्रह्म के वैसे ही अविकृत परिणाम हैं जैसे सोने के आभूषण सोने के। श्रुतियां अनेक तर्कों के आधार पर अविकृतपरिणामवाद को सिद्ध करती हैं।

वल्लभाचार्य ने श्रुतियों को प्रमाण माना और कहा कि ब्रह्म सत् चित् आनंद है। यह जगत सत् का आविर्भाव है तथा सत् एवं चित् का आविर्भाव जीव है।

अविकृतपरिणामवादियों में दूसरा नाम चैतन्य महाप्रभु का लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अपने अचिन्त्य शक्ति के बल से ब्रह्म परिणत होता हुआ भी अपरिणामी ही रहता है।

निकटवर्ती पृष्ठ
अविचल आलोचना प्रणाली, अविद्या, अंशावतार, अशोकी प्राकृत, अश्लील

Page last modified on Saturday May 24, 2025 10:37:10 GMT-0000