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अविद्या

इन्द्रियों तथा संस्कार के दोष से जो अज्ञान या विभ्रम उत्पन्न होता है उसे अविद्या कहते हैं। यह ज्ञान के विपरीत, अयथार्थ या दुष्ट ज्ञान है।
अविद्या दुख का एक प्रमुख स्रोत है।
योगसूत्र के अनुसार चार प्रकार के विपरीत ज्ञान को अविद्या कहा जाता है।
जो अनित्य संसार और देहादि में नित्यता देखने वाली विपरीत बुद्धि अविद्या का प्रथम भाग है। अशुचिता में ही शुचिता मानना अविद्या का दूसरा भाग है। विषयसेवन रूपी दुःख में सुखबुद्धि इसका तीसरा भाग है। अनात्मा में आत्मबुद्धि करना अविद्या का चौथा भाग है।



Page last modified on Monday March 24, 2014 09:39:47 GMT-0000