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दुःख

जीवधारियों की वह अवस्था जिसमें वह पीड़ा का अनुभव करता है। सुख की अनुभूति के विपरीत अनुभूति की अवस्था ही दुःख की अवस्था होती है।
पाप कर्म ही दुःख का मूल स्रोत है। अविद्या आदि इसके अन्य सहयोगी स्रोत भी हैं।

निकटवर्ती पृष्ठ
दुःखवाद, दुर्ग, दुर्मल्लिका, दूती, दूतीकर्म

Page last modified on Monday May 26, 2025 15:24:24 GMT-0000