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अश्लील

भाषा, साहित्य, कला, संकेतों आदि के माध्यम से जब उन भावनाओं, स्मृतियों आदि की आवृत्ति की जाती है जिसे सभ्य समाज चारित्रिक पतन मानता है और जिसे सार्वजनिक रुप से अभिव्यक्त करने को उचित नहीं माना जाता। काम-वासना से सम्बद्ध गोपनीय रखे जाने वाली बातों या संकेतों को कुत्सित भावना के कारण प्रकट करना ही अश्लीलता है जिससे किसी का आहत होना संभव है, या कोई आहत हो जाता है, या किसी के कुत्सित होने की घटना होती है या कुत्सित होने की संभावना होती है।

ऋग्वेद में भी अश्रीर शब्द का प्रयोग हुआ है जिसे वर्जित माना गया। यह अश्रीर शब्द प्रकारान्तर में अश्लील बन गया। इसका अर्थ श्रीहीन, गुणहीन, कुत्सित आदि है।

क्या अश्लील है और क्या नहीं इस बात पर हमेशा से ही काफी विवाद बना रहा है। एक ही शब्द, शिल्प, संकेत आदि को कोई कला कह देता है तो कोई उसे नग्नता कहकर अश्लील बता देता है। इसका कारण लोगों की अलग-अलग पृष्ठभूमि होती है।

परन्तु इतना तो तय है कि यदि कही गयी बात, संकेत, शिल्प, रचना आदि किसी व्यक्ति या समाज विशेष को कुत्सित करते हैं तो वह उस व्यक्ति या समाज के लिए अश्लील या अशोभन मानी जायेगी। इसका अर्थ हुआ कि सभ्यता के स्तर पर अश्लील क्या है इस प्रश्न का निर्धारण होता है और वह सभ्यता अश्लील हरकतों को रोकने के लिए विधि-विधान भी बनाती है।

निकटवर्ती पृष्ठ
अश्लीलता, अष्टछाप कवि, अष्टयाम, अष्टसखा, असम

Page last modified on Saturday May 24, 2025 10:40:59 GMT-0000