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आधुनिकता

मानव प्रवृत्तियों के आधार पर काल निर्धारण में जो आधुनिक प्रवृत्तियां आधुनिक युग में पायी जाती हैं उन्हें आधुनिकता कहा जाता है।

यह आधुनिक प्रवृत्ति उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सन् 1985 के आस-पास शुरू हुई मानी जाती है। इसके पूर्व माना जाता था कि यह सृष्टि नियमबद्ध है। यह नियमबद्धता जीवन के हर क्षेत्र में एक प्रवृत्ति के रूप में रही, चाहे वह साहित्य हो, कला हो, जीवन शैली हो या चिन्तन की प्रक्रिया है। आधुनिक काल में, विशेषकर जब से यह माना गया कि सृष्टि भी एक महान विस्फोट का परिणाम है, तब से चिंतन प्रक्रिया और प्रवृत्ति में यह सोच आ गयी कि सृष्टि में सबकुछ नियमबद्ध नहीं है। इसमें अराजकता भी है। आराजकता को वस्तुस्थिति के रूप में स्वीकार किया गया। इसके परिणाम स्वरूप नयी प्रवृ्त्तियों का जन्म हुआ। इन प्रवृत्तियों को ही आधुनिकता कहा जाता है।

इन प्रवृत्तियों की मूल बात है 'स्व' चेतना पर आधारित चिंतन तथा जीवनशैली। यह आधुनिक दृष्टि अनिवार्यतः बौद्धिक है। इसमें वस्तुस्थिति को बौद्धिक स्तर पर स्वीकार किया गया। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि हो गया है। हर स्थापित मूल्यों पर नये सिरे से विचारण तथा उसे व्यक्तिवाद के आधार पर मानने और नहीं मानने की प्रवृति मुख्य प्रवृत्ति के रूप में उभर आयी है। वर्तमान के प्रति अत्यन्त सजगता तथा संवेदनशीलता ही इसका केन्द्रीय तत्व है। स्वचेतनता इसकी परम परिणति है। यह पुराने मूल्यों को ढोने के लिए तैयार नहीं है तथा इसे अभी यह नहीं मालूम कि उसका गन्तव्य किस ओर है क्योंकि अभी तो उसे अपने ही मूल्यों को परिष्कृत करना है। यह अपने गन्तव्य को निश्चित भी नहीं करना चाहती क्योकि उसकी सोच है कि जीवन की प्रवृत्तियां अपनी प्रक्रिया स्वतन्त्र रूप से पूरी करे तथा भविष्य के कल्पित मूल्य किसी भी तरह वर्तमान जीवन प्रवृत्तियों के विकास की प्रक्रिया को प्रभावित न करे। आधुनिकता की प्रवृत्ति अपनी ही ऊहापोह में फंसी है।

इस आधुनिकता से भी आगे की प्रवृत्ति है उत्तरआधुनिकता, जो आधुनिक प्रवृत्तियों की अनियमबद्धता में भी नियम की स्थापना करने को उत्सुक है।

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आंध्र प्रदेश, आनंद, आनन्दभुवन योग, आनन्दवाद, आन्तरिक आलोचना प्रणाली

Page last modified on Monday May 26, 2025 01:04:20 GMT-0000