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उत्सृष्टिकांक एक प्रकार का रूपक है, जो नाटकों के अन्दर नाटक का एक विशिष्ट अंक है। इसमें सृष्टि उत्क्रान्त अर्थात विपरीत रहती है जिसके कारण इसका यह नाम पड़ा।
इसकी विशेषता यह है कि इसमें इतिवृत्त प्रख्यात भी हो सकती है और अप्रख्यात भी। जहां तक पात्रों का प्रश्न है, वे दिव्य जन न होकर सामान्य जन होते हैं। इसमें करुण रस प्रधान होता है।

परन्तु ऐसे भी विद्वान हैं जो दिव्य जनों के पात्रों के समावेश को स्वीकार करते हैं।

Page last modified on Tuesday December 11, 2012 04:54:25 GMT-0000