कबीर
कबीर एक प्रकार के अश्लील गीत हैं जो पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में होली के अवसर पर गाये जाते रहे हैं। हालांकि इसके व्यापक विरोध के कारण ये अब प्रचलन में नहीं हैं। 21वीं सदी में तो शायद ही एक दो स्थान बच गये हों जहां ये गाये जाते हैं।यह अलग बात है कि हिन्दी साहित्य के एक पुरोधा हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन गीतों के महत्व की ओर संकेत किया था और कहा था कि इनपर भी अध्ययन किया जाना चाहिए।
कबीर गीतों के सम्बंध में अनेक प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। जैसे इन अश्लील गीतों को कबीर क्यों कहा जाता है? कबीरदास के साथ या कबीरपंथियों के साथ इसका कोई सम्बंध तो नहीं? अन्य कबीर विरोधियों से क्या इसका सम्बंध है? क्या कबीर की उलटबांसियों की भांति इन अश्लील गीतों में भी कोई रहस्य तो नहीं छिपा है?
वैसे कबीर के बाद जोगीड़ा भी गाया जाता है। जोगीड़ा भी अश्लील होते हैं। तो क्या जोगियों (योगियों) और कबीरपंथियों के बीच कोई स्पर्धा या संघर्ष से इन दोनों का कोई सम्बंध है?
इनके अतिरिक्त अनेक अन्य प्रश्न हैं जिनका उत्तर अभी नहीं मिला है। परन्तु इतना कहा जा सकता है की कबीरा तथा जोगीड़ा दोनों का प्रचलन लगभग समाप्त हो गया है।
कबीरगान में गालियां अधिक और पद कम होते हैं परन्तु उन्हें गाते समय गोरखपंथी, और दादू सम्प्रदाय और कबीर के पद भी शामिल किये जाते रहे हैं। ऐसा क्यों? इस प्रश्न पर रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है।
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कबीरदास, कबीरपंथ, कबीरा, कमल छन्द, कमला छन्द