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कलावाद

कलावाद कला के प्रति एक मत या दृष्टिकोण है। इसके तहत कला कला के लिए कहा गया। 'कला कला के लिए' फ्रेंच भाषा के सूत्र वाक्य 'ल आर्त पोर ल आर्त' के अंग्रेजी अनुवाद 'द आर्ट इज फॉर द आर्ट्स सेक' का हिन्दी अनुवाद है।

कलावाद के तहत साहित्य में उसके कलापक्ष पर अधिक बल दिया जाता है।

इस मत में कला को लोकातीत वस्तु, कलाकार को लोकोत्तर प्राणी तथा कलाजन्य आनन्द को अलौकिक आस्वादनयुक्त एवं समाज निरपेक्ष माना जाता है।

वैसे तो कलावाद प्राचीन काल से ही कला और साहित्य के क्षेत्र में प्रभावी रहा है परन्तु एक वाद के रूप में यह 1866 के आस-पास यूरोप में प्रचलित हुआ। जेम्स एवांट मैकलीन ह्वीस्लर (1834-1903) इसके परिपोषकों तथा उद्भावकों में अग्रगण्य थे। 1870 में प्रसिद्ध चित्रकार ह्वीस्लर ने इस मत का आग्रहपूर्ण प्रवर्तन उस समय किया था जब उनका रस्किन के साथ कला के उद्देश्य को लेकर गंभीर विवाद छिड़ गया था। उधर विख्यात आलोचक रस्किन ने अतिवादी कलावादी होने का रूख अपना लिया तथा उन्होंने कला के स्वतंत्र एवं अपने आप में परिपूर्ण होने का उद्घोष किया। ह्वीस्लर भी पीछे नहीं रहे तथा अतिवादी कलावादी की तरह उन्होंने भी अपने चित्रों के गूढ़ व्यंजनात्मक शीर्षक देने प्रारम्भ कर दिये जो साधारण लोगों के लिए अबोध्य थे।

कलावादी विचारधारा को अन्य अनेक समालोचकों का समर्थन मिला जिनमें ब्रैडले, क्लाइव बेल तथा रोजर फ्राइ जैसे लोग शामिल थे।

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कल्पना, कल्पलता, कल्पवल्ली, कल्ब, कवरत्ती

Page last modified on Monday May 26, 2025 02:27:30 GMT-0000