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गुजराती साहित्य

गुजराती भाषा में लिखे गये साहित्य को गुजराती साहित्य कहा जाता है। इसे तीन भागों में बांटा जाता है - प्राचीन गुजराती साहित्य, मध्यकालीन गुजराती साहित्य तथा आधुनिक गुजराती साहित्य।

प्रचीन गुजराती साहित्य तेरहवीं शताब्दी से मिलता है। उस शताब्दी की प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं शालिभद्र सूरि रचित भरतेश्वर बहुबलिरास, विजयसेन सूरि रचित रेवन्तगिरि रासु, तथा विनयचन्द्र सूरि रचित नेमिनाथ चतुष्पादिका। उस समय काव्य रचनाएं ही प्रमुख रुप से हुआ करती थीं परन्तु कुछ गद्य रचनाएं भी मिली हैं।

चौदहवीं शताब्दी में जिनधर की रचना कंछूली रास, राजशेखर की रचना नेमिनाथ फागु, असाइत की हंसाउली, तथा श्रीधर व्यास की रचना रणमल्ल छन्द प्रमुख थी। एक अज्ञात कवि की रचना वसन्त विलास फागु भी प्रसिद्ध है।

पंद्रहवीं शताब्दी की प्रमुख रचनाओं में जयशेखर की प्रबोध-चिन्तामणि, अब्दुर्रहमान की सन्देश रासक, माणिकचन्द्र सूरि की पृथ्वीचन्द चरित्र, भालण की कादम्बरी, तथा पद्मनाभ की रचना कान्हड़दे प्रबंध प्रमुख थीं। ये सभी ग्रन्थ के आकार के हैं। परन्तु छोटी कृतियां भी सामने आयीं जिनमें नरसिंह मेहता की कृतियां प्रमुख रहीं - जैसे शामलदासनो विवाह, रामसहस्रपदी, श्रृंगारमाला, चातुरीओ, हिंडोलाना पदो, वसन्ताना पदो, सुदामाचरित्र आदि।

सोलहवीं शताब्दी में मीरां, नाकर, उद्धव, विष्णुदास आदि अनेक कवि हुए।

प्राचीन गुजराती साहित्य के काल में जैनकाव्य और आख्यान प्रमुख थे परन्तु अन्य काव्यों में कथा, बारहमासी, पद, गरबी आदि भी काफी संख्या में मिलते हैं।

मध्यकालीन गुजराती साहित्य को प्रेमानन्द युग के नाम से जाना जाता है। प्रेमानन्द 17वीं शताब्दी के कवि थे। उन्होंने नवों रसों में काव्य सृजन किया। गुजराती समाज के वे एक लोकप्रिय कवि थे। इस युग में अखो नाम के एक विख्यात वेदान्ती कवि भी हुए। अखो की वाणी आज भी गुजरात में लोकप्रिय है। उनकी अखोगीता नामक रचना प्रसिद्ध है। शामल ने पद्य में भी कहानियां लिखीं। प्रीतम, घीरो तथा भोजो इसी युग के बाद के उल्लेखनीय कवि थे। दयाराम इस युग के अन्तिम महान कवि माने जाते हैं जिन्हें गरबी साहित्य का सम्राट कहा जाता है।

आधुनिक गुजराती साहित्य में वीर नर्मद प्रारम्भ के बड़े कवि थे। इस युग में गुजराती गद्य का प्रभुत्व रहा। गुजराती में मुद्रण प्रारम्भ होने पर 1822 में इस भाषा का पहला समाचार पत्र 'मुंबई समाचार' प्रकाशित होने लगा। नर्मद के समकालीन कवि थे दलपतराम। गुजरात वर्नाकुलर सोसाइटी का गठन हुआ जिसने गुजराती साहित्य को आगे बढ़ाया। नर्मद ने गुजराती कोश की भी रचना की। गुजराती के पहले आलोचक हुए नवलराम पण्ड्या। नन्दशंकर मेहता हुए पहले उपन्यास लेखक। परन्तु गुजराती के श्रेष्ठ उपन्यास 'सरस्वती चन्द्र' के पहले भाग का प्रकाशन 1887 में हुआ। इसके लेखक थे गोवर्धनराम त्रिपाठी। अन्य लेखकों में प्रमुख थे नरसिंह राव दिवेटिया, मणिलाला नभुभाई, रमणभाई नीलकंठ, केशव हर्षद ध्रुव, आनंदशंकर ध्रुव और कवि कांत आदि। उस दौर को पंडित युग भी कहा जाता है।

बाद के दौर के श्रेष्ठ कवि थे नानालालका जिन्होंने गुजराती कविता को शिखर पर पहुंचाया। उसके बाद गांधी-मुंशी युग का सूत्रपात हुआ। महात्मा गांधी और उनके शिष्यों ने गुजराती साहित्य में गाधीवादी विचारधारा को प्रकट किया। गुजराती के उपन्यास सम्राट माने जाने वाले कन्हैयालाल मा. मुंशी ने गुजराती अस्मिता जागृत की। इस युग में गुजराती कहानियां, उपन्यास, नाटक, निबंध, आत्मकथा आदि सभी विधाएं सामने आयीं। इस तरह आधुनिक गुजराती साहित्य लगातार समृद्ध होता गया है।

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