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ताला-कुंजी

ताला और कुंजी दोनों की जोड़ी को ताला-कुंजी कहते हैं। ताला एक उपकरण है जिसे कुंजी से खोला और बंद किया जाता है। एक दूसरे के बिना दोनों बेकार हो जाते हैं। किसी भी संम्पत्ति को चोरी होने से बचाने के लिए उसपर ताला लगाया जाता है। जैसे बक्से या दरवाजे पर।

यह तो रही भौतिक जगत की बात। परन्तु आध्यात्मिक जगत में ताला-कुंजी का एक विशेष अर्थ है। सिद्धों, नाथों, तथा संतों ने वासनात्मक मन को ही चोर कहा है तथा जो व्यक्ति की असली सम्पत्ति सत्, चित्, और आनन्द है उसके चोरी होने की संभावना की ओर सचेत करते हुए ताला-कुंजी के रूपक का प्रयोग किया है।

सन्तों ने कुम्भक द्वारा श्वास निरोध के अर्थ में ताला-कुंजी का रूपक दिया है, और कहा है कि सबसे अच्छा तो ईश्वर प्रेम या भक्ति नामक सम्पत्ति है जिसके मालिक को ताला-कुंजी की आवश्यकता ही नहीं है। दादूदयाल कहते हैं -

तस्कर लेई न पावक जालै, प्रेम न छूटै रे।
चहुंदिस पसर्यो बिन रखवारे, चोर न लूटै रे।

वज्रयानी सिद्ध कहते हैं कि ऐसी चोरी से बचने के लिए अध तथा उर्ध्व के मार्ग में ताला लगाया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने प्राणायाम के माध्यम से ताला चाबी प्राप्त करने की बात कही है। उन्होंने श्वास के बंधन या निरोध को ताला-कुंजी कहा है। काण्हपा के दोहाकोष में कहा गया है - पवण, गमण दुआरे ढ़िढ ताला वि दिजुई।

नाथपंथियों ने ताला-कुंजी रूपक का उपयोग तीन प्रसंगों - शब्द-योग, कुंभक, तथा खेचरी मुद्रा - में किया। गोरखबानी में तो शब्द को ताला तथा निःशब्द को कुंजी कहा गया है।

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Page last modified on Tuesday June 27, 2023 14:01:51 GMT-0000