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धागा

धागा रूई को कातकर बनाया जाता है। धागे का मुख्य उपयोग सिलाई करने तथा माला आदि बनाने में किया जाता है।

संतों ने धागा शब्द का प्रयोग 'ध्यान सूत्र' के रूप में किया है। कबीरदास की एक रचना में कहा गया -
सन्तो, धागा टूटा गगन बिनसि गया, सबद जु कहां समाई?

कई स्थानों पर समाधि के अर्थ में भी धागा, डोर, सूत जैसे शब्दों का उपयोग मिलता है, क्योंकि ध्यान की एकग्रता के पूर्णतः घनीभूत हो जाने को समाधि कहा जाता है। इस तरह समाधि के टूटने को धागे का टूटना भी कहा गया।

गोरखनाथ ने कहा था - उनमनि लागा होइ अनन्द, तूटी डोरी बिनसै कन्द।

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धामी संप्रदाय, धार्मिक ग्रंथों की पाठ विधि, धीर, धीरा, धीरादि

Page last modified on Monday May 26, 2025 16:15:21 GMT-0000