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श्रवण चतुष्टय

भारतीय आध्यात्मिक चिंतन परम्परा में श्रवण चतुष्टय हैं - श्रवण, मनन, निदिध्यासन तथा साक्षात्कार।

श्रवण चतुष्टय का उद्देश्य इन चार विधियों द्वारा सत्य को यथावत् जानना है।

जब कोई विद्वान ज्ञान का उपदेश करे तो अन्य मनुष्यों को चाहिए कि वे कही गयी बातों को ध्यान से सुनें। श्रवण का यही निहितार्थ है जिसके बिना व्यक्ति अति सूक्ष्म ब्रह्म विद्या को नहीं जान सकता।

सुनने को बाद उसपर मनन करना चाहिए अर्थात एकान्त में उसपर सोच-विचार करनी चाहिए तथा शंका होने पर पुनः उसे पूछना चाहिए।

जब सुनने तथा मनन करने पर व्यक्ति निःसंदेह हो जाये तब समाधिस्थ होकर उस बात को योग से देखना-समझना चाहिए कि जैसा सुना था वैसा ही वह है या नहीं। यही निदिध्यासन कहलाता है।

उसके बाद आता है साक्षात्कार, अर्थात् स्वरूप, गुण तथा स्वभाव से सत्य को यथावत् जान लेना।

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