प्रश्नकाल खत्म होने के बाद जदयू के अली अनवर अंसारी, लोजपा के साबिर अली तथा कम्युनिस्ट सैयद अजीज पाशा एवं मार्क्सवादी पी मधु रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश करने की मांग करते हुए अध्यक्ष के आसन के समक्ष आ गए। इन सदस्यों के हाथ में एक हिन्दी अखबार की प्रति भी थी। राजद तथा राकांपा सदस्यों ने इन सदस्यों की मांग का समर्थन किया।

सदस्यों को शांत कराते हुए उप सभापति के रहमान खान ने कहा कि इस मामले में सभापति को विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया गया है और उस पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि सदस्यों को इस मुद्दे पर सदन में चर्चा करानी है तो उन्हें पहले इसके लिए नोटिस देना चाहिए।

कम्युनिस्ट नेता डी राजा ने कहा कि सरकार को यह आश्वासन देना चाहिए कि वह इस रिपोर्ट को सदन में पेश करेगी।
उल्लेखनीय है कि रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पिछले दो साल से धूल खा रही है, लेकिन केंद्र सरकार इसे पेश करने की जल्दबाजी में नहीं है। रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 15 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश पर अमल से केंद्र को बहुसंख्यक समुदाय का गुस्सा झेलना पड़ सकता है। वहीं, मामले को लंबे समय तक लटकाने से अल्पसंख्यकों के नाराज होने का खतरा है।

कांग्रेस के एक कैबिनेट मंत्री ने कहा, ‘यह चित्त आने पर हार और पट आने पर सामने वाले की जीत वाली स्थिति है।’ संभवत: इसी वजह से कांग्रेस इस रिपोर्ट को पेश करने के बारे में कोई वादा करने से हिचक रही है, साथ ही वह 15 फीसदी आरक्षण के मसले पर स्पष्ट रुख भी अपनाना नहीं चाहती है। पार्टी प्रवक्ता जयंती नटराजन ने बुधवार को यहां कहा, ‘संसद में रिपोर्ट आधिकारिक रूप से पेश नहीं की गई है। इसके प्रस्तुत होने के बाद ही हम आगे के कदम के बारे में फैसला करेंगे।’ उनके बयान से पार्टी में ऊहापोह की स्थिति साफ होती है। मौजूदा परिस्थितियों में लोजपा और आरजेडी का ही रिपोर्ट को समर्थन है।

आधिकारिक रूप से पार्टी का कोई भी नेता या केंद्रीय मंत्री इस पर कुछ कहने को तैयार नहीं है, लेकिन निजी तौर पर कुछ ने ऐसे आयोग की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठा दिया। एक केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमें ऐसे आयोग की बिल्कुल जरूरत नहीं है। इससे हमें कई तरह की समस्याएं पेश आएंगी।’ इस साल के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस ने कहा था कि वह केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु की आरक्षण नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने पर प्रतिबद्ध है। हालांकि पार्टी के राजनीतिक प्रबंधकों की राय इससे अलग है। एक केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जो कानूनन नामुमकिन हो। हमें पूरे मुद्दे की जांच करनी होगी।’#