सौ से ज्यादा विकासशील देशों में गरीब, गर्भवती महिलाएं और विद्यालय न जाने वाले बच्चे आईडीडी से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं । आयोडीन की कमी को कभी साधारण समस्या माना जाता था लेकिन अब जबकि यह पता चल चुका है कि यह बढत़े हुए मस्तिष्क को काफी बुरी तरह से प्रभावित करती है, यह बहुत से देशों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक सतत खतरा बन गई है ।

आईडीडी समस्या का परिमाण काफी ज्यादा है। आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों को दूर करने के लिए इस पर अंतर्राष्ट्रीय रूप से ध्यान देने की जरूरत है । इस समस्या के प्रति जागरूकता जगाने के लिए 21 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय आयोडीन कमी से होने वाले विकारों के रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है ।

थायराइड हारमोन के लिए आयोडीन एक आवश्यक घटक है जिसकी आवश्यकता मानसिक और शारीरिक विकास एवं शरीर के चयापचय को नियमत करने में होती है । कार्बन, ऑक्सीजन और लौह की तरह आयोडीन एक रासायनिक तत्व है जो समुद्र के जल में काफी मात्रा में उपलब्ध होता है । इसके अलावा यह भूमि और ताजे जल में भी असमान रूप से मिलता है । यह थायराइड हारमोन के रासायनिक ढांचे का एक जरूरी अंग है । यह थायरॉक्साईन (टी 4) और ट्रिओडोथायरोनाइन (टी-3) दो हारमोन्स बनाता है । थायराइड हारमोन्स विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर प्रभाव डालते हुए अंगों को प्रभावित करते हैं । आमतौर पर प्रमुख प्रोटीनों के निर्माण में यह शामिल होते हैं । स्वस्थ शरीर के लिए शरीर में थायराइड हारमोनों का संतुलित स्तर होना आवश्यक है ।

आयु के अनुसार आयोडीन की पर्याप्त मात्रा वाला आहार प्रतिदिन लेना चाहिए। आयोडीन जरूरतों को पूरा करने के लिए (आयु के प्रथम 12 माह में ) शिशु को प्रतिदिन 50 माइक्रोग्राम आयोडीन, (2 से 6 वर्ष की आयु के) बच्चों को प्रतिदिन 90 माइक्रोग्राम आयोडीन, (7 से 12 वर्ष की आयु) के विद्यालय जाने वाले बच्चों को 120 एम जी आयोडीन , (12 वर्ष से ज्यादा आयु के) किशोरों को 150 एम जी आयोडीन एवं गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं को 200 माइक्रोग्राम आयोडीन लेना चाहिए । इसमें से अधिकांश की मात्रा हमारे खानपान से पूरी होती है । समुद्री खाद्य पदार्थ आमतौर पर इसके अच्छे स्रोत होते हैं क्योंकि सागरों में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होती है ।

नदियों में पाई जाने वाली मछली में आयोडीन की मात्रा उस जल में पाये जाने वाले आयोडीन की मात्रा पर निर्भर करती है । अन्य खाद्य पदार्थों की बात करें तो आयोडीन की मात्रा में उसके स्रोतों के अनुसार भिन्नता पाई जाती है। आयोडीन की कमी वाली मिट्टी में उत्पन्न पौधों में अधिक मात्रा में आयोडीन नहीं पाया जाता और न ही ऐसे पौधों को चारे के रूप में ग्रहण करने वाले पशुओं के मांस अथवा अन्य उत्पादों में ही आयोडीन की अधिक मात्रा पायी जाती है । आयोडीन युक्त नमक एक विशेष मामला है । कुछेक अपवादों को छोड़कर खाद्य नमक (सोडियम क्लोराइड) में प्राकृतिक रूप से आयोडीन नहीं पाया जाता है । आयोडीन के पोषण में सुधार लाने के एक सर्वाधिक प्रभावकारी तरीके के रूप में इसमें आयोडीन मिलाया जाता है । आयोडीन की मात्रा को कई अन्य स्रोतों से भी प्राप्त किया जा सकता है । उदाहरण के लिए खाद्य पदार्थों को रंगने के लिए एरीथ्रोसिन का इस्तेमाल करना, त्वचा रोगों को दूर करने के लिए पोविडोन आयोडीन का इस्तेमाल करना आदि । इसके द्वारा आयोडीन को ग्रहण करके रक्त तक पहुंचाया जाता है ।

चूंकि आयोडीन की कमी का भयानक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है किन्तु इसकी अधिकता से भी हमें बचना चाहिए । इसकी अधिकता से थायराइड संबंधी समस्या उत्पन्न हो जाती है । आयोडीन-युक्त और आयोडीन-मुक्त दोनों प्रकार के नमक देश में विक्रय के लिए उपलब्ध हैं । किन्तु आयोडीन-युक्त नमक के स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के फलस्वरूप उपभोक्ताओं के बीच इसकी अच्छी खासी मांग हो रही है ।

चीन, बांग्लादेश , भूटान, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, म्यांमार, थाईलैंड आदि जैसे पड़ोसी देश सहित पूरा विश्व मानव के उपभोग के लिए नमक को अनिवार्य रूप से आयोडीनयुक्त बनाने में जुटा हुआ है । वैश्विक तौर पर आयोडीन युक्त नमक को आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों की रोकथाम और उनके नियंत्रण के लिए सबसे सस्ता और सबसे टिकाऊ तरीके के रूप में मान्यता दी गई है । कुछेक प्रकार के घेंघा रोग को छोड़कर आयोडीन की कमी से होने वाली अधिकांश बीमारियों को आयोडीन युक्त नमक के प्रतिदिन सेवन से आसानी से रोका जा सकता है ।

इस व्यापक समस्या को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 1962 में एक राष्ट्रीय घेंघारोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनजीसीवी) की शुरूआत की जो शत-प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित है । अगस्त 1992 में राष्ट्रीय घेंघा रोग नियंत्रण कार्यक्रम (नेशनल ग्वाइटर कंट्रोल प्रोग्राम) का नाम बदलकर राष्ट्रीय आयोडीन- कमी विकार नियंत्रण कार्यक्रम (नेशनल आयोडीन डेफिशिअन्सी डिसआर्डर कंट्रोल प्रोग्राम) रख दिया जिसमें आयोडीन की कमी से उत्पन्न होने वाली विभिन्न बीमारयों को शामिल किया गया । एनआईडीडीसीपी के माध्यम से सरकार ने वर्ष 2012 तक पूरे देश में आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों को 10 प्रतिशत के नीचे लाने का लक्ष्य रखा है।#