भाजपा परंपरागत रूप से शहरी पार्टी रही है। शहरी मतदाताओं पर उसकी पकड़ अच्छी रही है। लेकिन अब वह पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। इसका अहसास खुद भाजपा नेताओं को भी है और अकाली दल को भी। यही कारण है कि दुबारा सत्ता में आने के लिए अकाली दल किसी और भी साथी की तलाश में है। उसकी नजर बहुजन समाज पार्टी पर है, जो मुख्यतः दलितों की पार्टी रही है। दलित पंजाब की आबादी के एक चौथाई हैं। हालांकि बसपा का असर पहले से कमजोर हो गया है, लेकिन अकाली दल को लगता है कि अभी भी उसमें इतना दम है कि किसी और के साथ गठबंधन कर वह चुनावी संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
यही कारण है कि अकाली दल ने बसपा से चुनावी गठबंधन की पेशकश की है, जिसे फिलहाल बसपा ने ठुकरा दिया है। उसका कहना है कि वह राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। प्रस्ताव के ठुकराए जाने के बाद भी अकाली दल के नेता निराश नहीं हुए हैं। बसपा को पटाने का उनका प्रयास जारी है।
पिछले दिनों प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण पर पंजाब सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। वह प्रतिबंध भी बसपा और दलित मतदाताओं को ध्यान में रखकर लगाया गया था। उत्तर प्रदेश में जब बसपा सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगाया, तो पंजाब ने भी मायावती को सकारात्मक संकेत देने के लिए इसी तरह का फैसला कर लिया। एक 7 सदस्यों की समिति बना दी। उस समिति के सदस्यों ने फिल्म देखी और उसमें थोड़ा बदलाव करने को कहा। समिति की इच्छा के अनुसार प्रकाश झा ने फिल्म में थोड़ा बदलाव भी कर डाला और उसके बाद फिल्म वहां रिलीज हो गई। यह सारी कसरत दलित मतों को ध्यान में रखते हुए किया गया। इस तरह अकाली दल की सरकार दलितों को संदेश दे चुकी है कि उसे उनकी भावनाओं की बहुत कद्र है। इसके साथ बसपा के साथ गठबंधन करने का उसका प्रयास भी जारी है।
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अपने भतीजे मनप्रीत सिंह बादल को अपनी सरकार से निकाल दिया था। उन्होंने पंजाब पीपुल्स पार्टी का गठन कर लिया है। खतरा उनकी तरफ से भी है। मनप्रीत अकाली दल के मतों में ही संेध डालेंगे। अब चुनाव के नजदीक आने के साथ प्रकाश सिंह बादल उनसे फिर से दल में लौट आने की अपील कर रहे हैं। पर मनप्रीत ने वैचारिक आधार पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है और उनका अपने पुराने दल में फिर से वापसी का कोई इरादा नहीं है।
सिमरणजीत सिंह मान से जुड़े अकाली कार्यकर्त्ताओं को भी अपने शिरोमणि अकाली दल मे ंलाने की कोशिश प्रकाश सिंह बादल कर रहे हैं और उसमें उन्हें कुछ सफलता भी मिल रही है। मान से कभी जुड़े रहे अनेक अकाली कार्यकर्त्ता और नेता प्रकाश सिंह बादल की पार्टी में फिर से वापस आ गए हैं। हालांकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के चुनाव को ध्यान में रखते हुए वह सब किया जा रहा है, जो सितंबर में होने वाला है, लेकिन विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए भी ऐसा किया जा रहा है।
कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के बीच एक दूसरे के कार्यकर्त्ताओं को अपनी ओर खींचने का भी खेल चल रहा है। कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरींदर सिंह ने इस बार अपनी नीति बदली है। इस बार वे पंथिक एजेंडा को अपनी राजनीति से दूर रख रहे हैं। 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने पंथिक एजेंडा को अपनाया था, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली थी।
पंथिक एजेंडा अपनाने के कारण उलटे हिंदू नाराज हो गए थे, जिसका खामियाजा कांग्रेस को चुनाव में भुगतना पड़ा था। इस बार कैप्टन उस गलती को दुहराना नहीं चाहते। भाजपा हिंुदुओ के समर्थन को बहुत हद तक खो चुकी है और उन्हें अपनी ओर लाने के लिए कैप्टन ने पंथिक एजेंडा से हाथ खींच लिए हैं। (संवाद)
अकाली दल नए सहयोगी की खोज में
भाजपा शहरी मतदाताओं का समर्थन खो रही है
बी के चम - 2011-08-18 12:57
चंडीगढ़ः पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। अकाली दल और कांग्रेस के बीच शह और मात का खेल शुरू हो गया है और इसके लिए गोटियां सेट की जा रही हैं। सत्तारूढ़ अकाली दल के साथ भाजपा का साथ बना हुआ है। वह अगले चुनाव में भी अकाली दल की सहयोगी रहेगी, लेकिल दल को लग रहा है कि भाजपा का साथ उसे फिर से चुनाव मे जीत दिलाने में समर्थ नहीं है। इसलिए दल उसे साथ रखते हुए नए साथी की खोज में लगा हुआ है।