मायावती की पार्टी 2007 के विधानसभा चुनाव में अपराध और कानून व्यवस्था के मसले पर जीत कर आई थी। उस समय प्रदेश के लोगों ने कानून व्यवस्था को ठीक करने और अपराधों से मुक्ति पाने के लिए मायावती को पसंद किया, हालांकि मायावती ने खुद अपनी पार्टी से 131 अपराधियों को उम्मीदवार बनाए थे, जिनमें 63 जीत भी गए थे।
इस बार चुनाव में मुख्य मसला भ्रष्टाचार का होने वाला है और मायावती की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। नेशनल रूरल हेल्थ मिशन में करोड़ों रुपयों के भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं और उन्हीं भ्रष्टाचारों के कारण राज्य में दो सीएमओ और एक डिपुटी सीएमओ की हत्या हो चुकी है। अभी हाल ही में एक मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद अपना पद छोड़ना पड़ा।
विपक्षी पार्टियां मायावती सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा रही हैं। कई आरोप तो खुद मायावती पर निजी तौर पर लगाए जा रहे हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आंदोलन के माहौल में मायवती की पार्टी के लिए यह निश्चय ही परीक्षा की घड़ी है। दुबारा सत्ता में आने के लिए उसे न सिर्फ खुद को पाक साफ दिखना पड़ेगा, बल्कि आने वाले दिनों में सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम भी उठाने पड़ेंगै
राज्य में यदि बसपा की सरकार है, तो केन्द्र में कांग्रेस की। इसलिए अन्ना का आंदोलन कांग्रेस के लिए भी जबर्दस्त परीक्षा की घड़ी है। राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की अपनी यात्राओं से पार्टी के लिए अच्छा माहौल बनाने का काम किया है, लेकिन अन्ना के आंदोलन ने उनके काम पर पानी फरे दिया है। हालांकि कांग्रेस के नेता केन्द्र सरकार में कोयला मंत्री एसपी जायसवाल का कहना है कि कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आंदोलन का कोई असर खराब असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि कां्रगेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार लड़ रही है।
केन्द्र की सरकार यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ एक के बाद एक कई कठोर कदम उठाती है, तभी उत्तर प्रदेश में वह अपने आपको बेहतर स्थिति में पाएगी। भ्रष्टाचार के मसले पर कमजोरी दिखाने का उसके चुनावी परिणामों पर खराब असर डालेगा।
अन्ना के आंदोलन का क्या असर पड़ा है इसका पता इसीसे लगता है कि पुलिस डीआईजी असीम अरुण ने आगरा में अपने मातहत पुलिस अधिकारियों और जवानों को यह शपथ दिलाई कि वे न तो रिश्वत लेंगे और न ही रिश्वत देंगे। राजनैतिक विश्लेषक डॉक्टर रमेश दीक्षित महसूस करते हैं कि मायावती सरकार व अन्य राजनैतिक पार्टियों को यह दिखाना होगा कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं।
मायावती का कहना है कि उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की है और जब कभी भी उनकी पार्टी के किसी विधायक और सरकार के किसी मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, उन्होंने उनके खिलाफ एक्शन लिया। दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल का कहना है कि राज्य की गैर कांग्रेसी पार्टियां अन्ना के आंदोलन की आड़ लेकर उनकी पार्टी पर प्रहारकर रही है, लेकिन इससे उनको कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि उनकी सरकार ने अनेक लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है और मंत्री तक को जेल भेज दिया है।
इस बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन का समर्थन किया है और उन्होंने उनके जनलोकपाल विधेयक का कुछ संशोधनों के साथ समर्थन भी किया है। मुलायम की पार्टी पिछले विधानसभ चुनाव में अपराधीकरण के मसले पर हारी थी। इस बार भ्रष्टाचार के खिलाफ बने माहौल में हो रहे चुनाव में उन्हें यह दिखाना होगा कि वे इसके खिलाफ हैं। इसके लिए उन्हें कुछ उम्मीदवारों को भी बदलना पड़ सकता है, क्योंकि घोषित किए गए उम्मीदवारों में कुछ की छवि भ्रष्ट और अपराधी की है।
राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह ने पहले ही अन्ना के आंदोलन का समर्थन कर दिया है। उन्होंने अन्ना द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल का भी पूरी तरह समर्थन कर दिया है। उत्तर प्रदेश में अन्ना हजारे की यात्रा होने वाली है। वह यात्रा प्रदेश की राजनीति के लिए खासा महत्व रखेंगी। (संवाद)
अन्ना का आंदोलन और उत्तर प्रदेश
आगामी विधानसभा चुनाव पर इसका असर पड़े बिना नहीं रहेगा
प्रदीप कपूर - 2011-08-29 11:37
लखनऊः प्रदेश की सभी पार्टियों और खासकर बसपा और कांग्रेस के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में चला अन्ना का आंदोलन उत्तर प्रदेश में भी प्रभावी रहा और उस आंदोलन की छाया में ही विधानसभा का अगला चुनाव होना है। इसलिए भ्रष्टाचार के मसले पर राज्य की सभी पार्टियों को अपना अपना साफ दामन लोगों को दिखाना पड़ेगा।