मामले की सुनवाई के दौरान और आदेश जारी करते हुए भी जज अनेक टिप्पणियां करते हैं। वे अपनी राय भी देते हैं। गलती होते देख वे अपनी उंगली भी उसकी ओर उठा देते हैं। अब सरकार कोशिश कर रही है कि वह ऐसा प्रावधान बना दें कि मुकदमें के दौरान अथवा उसके बाद जज किसी सांवैधानिक संस्था के ऊपर कोई टिप्पणी ही नहीं कर सकें। यानी यदि सरकार या मंत्रिमंडल अथवा किसी मंत्री ने कुछ गलत किया है, तो उस पर जज मुकदमें के दौरान कोई टिप्पणी नहीं करें।

सरकार न्यायपालिका पर तो अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है, वह सीबीआई को भी सूचना के अधिकार के कार्यकर्त्ताओं से बचाने की कोशिश कर रही है। वह नहीं चाहती है कि सीबीआई उससे मांगी जा रही सूचनाएं लोगों को दे। सीबीआई ही नहीं, अनेक खेल संगठनों को भी वह आरटीआई के दायरे से बाहर रखना चाहती है, ताकि उनमें हो रही अनियमितताओं का पता लोगों को लगे ही नहीं।

सरकार के मंत्री, सचिव व अन्य बड़े अधिकारी नहीं चाहते कि सरकारी फाइलें लोगों के लिए सुलभ कर दिए जाएं और वे क्या करते हैं, उसके बारे में लोगों को जानकारी मिले, इसलिए वे सूचना के अधिकार कानून को ही कमजोर करने में लगे हुए हैं। कथित न्यायिक सक्रियता के खिलाफ तो वे संसद द्वार कानून बनाकर जजों की अभिव्यक्ति पर ही रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं।

सरकार में बैठे लोग कानून बनाकर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जज उनके खिलाफ कोई अनुचित टिप्पणी नहीं कर सकें। सवाल उठता है कि कौन सी टिप्पणी उचित है और कौन सी अनुचित इसका फैसला कौन करेगा? तो सरकार अब यह जजों को बताने जा रही है कि उनकी कौन सी टिप्पणी उचित होती है और कौन सी अनुचित। जाहिर है सरकार न्यायपालिका की भूमिका को सीमित करना चाहती है, जबकि लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका एक आवश्यक शर्त है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे मामलों में सरकार ने अब कैसा हठी रवैया अपनाना शुरू कर दिया है वह सीबीआई की ताजा गतिविधियों से पता चलता हैं। सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के सुपरविजन में 2 जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच कर रही है। लेकिन अब सीबीआई ने सरकार के इशारे पर वह हरकतें करनी शुरू की हैं, जिनसे सारे आरोपी मुक्त हो सकते हैं। सीबीआई ने कहा है कि उसके पास यूनिटेक वाइरलेस के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, जबकि इस कंपनी के खिलाफ अनेक सबूत मीडिया में आ गए हैं। यूनिटेक और राजा के बीच रूपयों की लेनदेन से संबंधित कोई सबूत न मिलने की बात सीबीआई कर रही है। दयानिधि मारन द्वारा एयरसेल के पूर्व मालिक को धमकाकर उस कंपनी की बिक्री के मामले में भी सीबीआई किसी प्रकार की सबूत मिलने की बात से इनकार कर रही है। अब जो सीबीआई कर रही है, उससे ए राजा और सांसद कनिमोरी के भी आरोपमुक्त हो जाने के आसार बन रहे हैं।

सीबीआई यह सब वैसे समय में कर रही है, जब ए राजा के वकील इस मुकदमे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी चिदंबरम और वर्तमान संचार मंत्री को अदालत में बुलाने की बात कर रहे हैं। केन्द्रीय कानून मंत्रालय ने एसोसिएट कंपनी की अब एक ऐसी परिभाषा बना दी है, जिससे आसिफ बलवा और कनिमोरी खुश हो रही होंगी।

सच तो यह है कि सरकार के अधीन काम करने वाली एजेंसियां इस बार भी वही करने पर तुली हुई है, जैसा वह पहले भी करती रही हैं। अदालत की देखरेख में जांच करने के बावजूद और जजों द्वारा अपना समय उनके ऊपर लगाने के बावजूद सीबीआई उन मुकदमों में अपनी हार को सुनिश्चित बनाने के लिए कटिबद्ध दिखाई पड़ रही है। (संवाद)