जब 1925 में गुरुद्वारा एक्ट बना था, तो सहजधारी सिखों को भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के चुनाव में मतदान करने का अधिकार मिला था। उन्हें भी सिख माना गया था, क्योंकि वे भी 10 गुरुओं मंे विश्वास करते हैं और पंथ का सदस्य होने की अनेक शर्तो को पूरी करते हैं। पर 2003 में केन्द्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने सहजधारियों को अलग कर दिया। उसके बाद से वह चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते।

2003 में केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार थी, जिसमें शिरोमणि अकाली दल भी शामिल था। दल ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए केन्द्र सरकार तथा संसद से गुरुद्वारा एक्ट मंे संशोधन करवा दिया और सहजधारियों को प्रबंधक कमिटी के चुनाव में हिस्सा लेने से वंचित करवा दिया।

कानून में उस संशोधन के खिलाफ सहजधारी कोर्ट में चले गए और उसकी सुनवाई हो रही है। उसके सुनवाई के दौरान सहजधारियों का यह मसला गरम हो रहा है। आने वाले दिनों में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के चुनाव होने वाले हैं। उसमें सहजधारी एक बार फिर मतदान से वंचित हो जाएंगे। जाहिर है इसके कारण शिरोमणि अकाली दल के खिलाफ उनमें असंतोष बढ़ेगा और उसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है।

वैसे राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांगेस सहजधारियों के मसले पर अपनी अनिर्णय वाली स्थिति का इजहार कर रही है। वह फैसला नहीं कर पा रही है कि इस पर वह क्या फैसला करे। जब मामला की सुनवाई अदालत में चल रही थी तो केन्द्र सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि केन्द्र सरकार एक्ट में फिर से संशोधन कर सहजधारियों के अधिकारों को फिर से बहाल करने का फैसला कर चुकी है। लेकिन बाद मे ंउसी वकील ने कहा कि केन्द्र सरकार ने अभी वैसा फैसला नहीं किया है।

अदालत में अपने दिए गए पहले बयान के बारे में केन्द्र सरकार के वकील ने अदालत को एक अजीबोगरीब किस्सा सुना दिया। कहा कि जब वे अदालत मे थे तो एक अपरिचित व्यक्ति ने उनके कान मे फुसफुसा कर कहा कि इस मुकदमे से संबंधित ताजा फैसले को केन्द्र के कानून मंत्रालय का एक अधिकारी आपको बताना चाहता है। वकील महोदय उस व्यक्ति के साथ अदालत के चैंबर से बाहर निकले। उस अपरिचित ने अपने मोबाइल फोन पर किसी व्यक्ति से बात करा दी जिसने अपने आपको केन्द्रीय कानून मंत्रालय का अधिकारी बताते हुए कहा कि केन्द्र सरकार अब सहजधारियों के पक्ष में गुरुद्वारा एक्ट में बदलाव कर रही है। उसकी बात पर विश्वास करके उस वकील ने अदालत को बता दिया कि केन्द्र कानून बदलने पर सहमत है। पर बाद में उन्होंने अदालत को बताया कि सरकार फिलहाल बदलाव करने का कोई इरादा नहीं रखती।

जाहिर है अदालत में कुछ कहकर पलट जाना केन्द्र सरकार के अनिर्णय का परिणाम है। केन्द्र सरकार के अनिर्णय का मतलब कांग्रेस का अनिर्णय है। रामदेव और अन्ना के मसले पर भी केन्द्र सरकार व कांग्रेस इसी प्रकार के अनिर्णय का शिकार रही है। उसके कारण वह अपनी साख गंवाती जा रही है।

सहजधारियों के मसले पर केन्द्र सरकार का रवैया अस्पष्ट है, इसके बावजूद उनका गुस्सा अकालियों क ऊपर ही टूटेगा, क्योंकि सहजधारी सिखों को मतदान से वंचित कराने का फैसला उनका था। आगामी विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा सत्तारूढ़ अकाली दल को भुगतना पड़ सकता है। (संवाद)