हमला उस जगह हुआ, जहां आम लोग हाई कोर्ट परिसर में घुसने के लिए प्रवेश पत्र बनवाते हैं। प्रवेश पत्र बनवाया ही इसीलिए जाता है, ताकि हाई कोर्ट सुरक्षित रहे, लेकिन सुरक्षा की शुरुआत उस जगह से होती है, जहां लोग अपना प्रवेश पत्र दिखाकर हाई कोर्ट में प्रवेश करते हैं। सवाल उठता है कि क्या हाई कोर्ट के बाहर प्रवेश पत्र दिखाने के बिंदु से पहले सुरक्षा उपलब्ध कराना दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी नहीं है? यदि यह उसकी जिम्मेदारी है, तो फिर उस जगह सुरक्षा का इंतजाम क्यों नहीं किया गया? आतंकवादी बम रखकर चले गए, लेकिन वहां कोई सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा हुआ था, जिससे बाद में पता चलता कि बम रखने वाला कौन था। यदि वहां कैमरा भी लगा होता, जो बम रखने वाले को डर होता कि उसकी फिल्म बम रखते समय तैयार हो जाएगी और शायद वह बिना किसी खौफ के वहां बम नहीं रख पाता।

कहने की जरूरत नहीं कि यह हमला पुलिस की रणनीतिक चूक का परिणाम है। और यह रणनीतिक चूक अकसमात नहीं है, बल्कि इसके लिए पुलिस और कहें तो हमारे शासक वर्ग की मानसिकता इसके लिए जिम्मेदार है। इस मानसिकता के तहत आम आदमी की सुरक्षा की उन्हें कोई परवाह नहीं है। आम आदमी को गेट से प्रवेश नहीं मिलता, इसलिए उन्हें प्रवेश पत्र लेना होता है। प्रवेश पत्र के लिए उसे हाई कोर्ट के किसी वकील अथवा अधिकारी की अनुशंसा की जरूरत होती है। जब प्रवेश पत्र मिल जाता है, तब उस समय के लिए वह आम आदमी से खास आदमी बन जाता है और हाई कोर्ट में प्रवेश करने के बाद ही वह सुरक्षा का अधिकारी होती है।

इसी तरह की मानसिकता हमारे शासक वर्ग की है। इसके तहत आम आदमी संदिग्ध हैं। आम आदमी खुद आतंकवादी हो सकता है। वह चोर हो सकता है। उसके चरित्र को कोई ठिकाना नहंी है। वह कुछ भी हो सकता है। इसलिए उसे ऐसे ही प्रवेश नहीं करने दो। उसे किसी खास आदमी से सिफारिश करवाकर प्रवेश पत्र बनवाने दो। फिर उसे प्रवेश की इजाजत दो। हाई कोर्ट की सुरक्षा की पूरी योजना में उस स्थान की सुरक्षा की कोई योजना नहीं बनाई जाती, जहां प्रवेश पत्र बनाए जाते हैं और जहां आतंकवादी बिना किसी जांच करवाए ही पहुंच सकते और बम प्लांट करके अधिकतम नुकसान पहुचा सकते हैं।

आम आदमी के प्रति शक, संदेह और घृणा पर आधारित हमारे शासक वर्ग की यह मानसिकता दिल्ली में हुए इस आतंकी हमले के लिए कोई कम जिम्मेदार नहीं है। दिल्ली पुलिस केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है और यह केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम के अधीन है। वह खुद दिल्ली के बड़े पुलिस अधिकारियों की बैठकें करवाने के लिए मशहूर हैं। कहा जाता है कि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान वह खुद ही दिल्ली की सुरक्षा के बारे में सबकुछ देख रहे थे। 25 मई को दिल्ली हाई कोर्ट में हुए बम ब्लास्ट के बाद भी पी चिदंबरम ने जरूर वहां की सुरक्षा तैयारियों का जायजा लिया होगा, लेकिन उन्हे तब दिखाई ही नहीं पड़ा होगा कि जिस जगह अंदर प्रवेश करने के लिए पास बनाया जाता है, वह जगह तो पूरी तरह असुरक्षित है। वहां अनेक आम लोग कतार में खड़े रहते हैं और कोई सिरफिरा बम लेकर वहां पहुंच सकता है। पी चिदंबरम को यह बात खटक ही नहीं सकती थी, क्योंकि उनकी नजर में आम आदमी की कीमत ही नहीं है।

पी चिदंबरम कोई साधारण आदमी नहीं हैं। कुछ समय पहले वे छत्तीस गढ़ के आदिवासी इलाकों में वायु सेना द्वारा बमबारी करने का प्रस्ताव कर रहे थे। वे चाहते थे कि आदिवासियों के गांवों को थल सेना अपनी तोपों और टेंकों से उड़ा दें, क्योकि उन गांवों में माओवादी भी रहते हैं। जहां जहां माओवादियों के रहने की संभावना है, उन सभी इलाकों में चिदंबरम वायु सेना के युद्धक विमानों और थल सेना की टेंकों का इस्तेमाल चाहते थे। कुछ माओवादियों को मारने के लिए वे पूरी की पूरी बस्तियों का ही सफाया करना चाहते थे। यह तो अच्छा था कि पी चिदंबरम के अधीन सिर्फ गृह मंत्रालय ही था। सुरक्षा मंत्रालय, जिसके अंदर वायु सेना और थल सेना होती है, वह पी चिदंबरम के अंदर नहीं था और वे न तो थल सेना अध्यक्ष को और न ही वायुसेना अध्यक्ष को माओवादियों के गांवो पर हमला करने के लिए बोल सकते थे। जब माओवादियों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल का विरोध किया जाने लगा, तो उन्हें लगा कि माओवादियों से सहानुभूति करने वाले लोग उनके इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं, पर जब वायु सेना अध्यक्ष ने कहा कि उनके सैनिकों को अपने अपने देश के लोगों पर बमबारी करने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है, तब चिदंबरम चुप हुए। जाहिर है आम आदमी के प्रति पी चिदंबरम का यही सोच दिल्ली पुलिस ने उन आलाधिकारियों के उस सोच के रूप में अवतरित हुई, जिन्होंने पास बनवाने वाले लोगों की सुरक्षा की चिंता ही नहीं की और उनकी सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम ही नहीं किया।

वैसे भी पी चिदंबरम की गृह मंत्री के रूप में प्राथमिकता बदली हुई है। 25 मई के कुछ दिनों के बाद ही 4 जून से रामलीला मैदान में बाबा रामदेव का भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ सत्याग्रह प्रारंभ हो गया था और चिदंबरम की सारी प्रतिभा उनके लोगों को रामलीला मैदान से खदेड़ने में लग गई थी। फिर दुबारा रामदेव न आ धमकें, इसके लिए भी वे दिल्ली पुलिस को चुस्त और दुरुस्त कर रहे थे। फिर अन्ना का आंदोलन प्रारंभ हुआ। पूरी दिल्ली पुलिस को चिंदबरम उसके लिए इस्तेमाल कर रहे थे। भ्रष्टाचार के खिलाफ छिड़ा आंदोलन आज चिदंबरम के लिए ज्यादा मायने रखता है आतंकवादियों से खतरे को वे दोयम दर्जे की प्राथमिकता दे रहे हैं। इसलिए जब आतंकवादी दिल्ली को दहलाने की योजना बना रहे थे, तो चिदंबरम दिल्ली पुलिस को हिदायत दे रहे थे कि अन्ना के लोगों के खिलाफ आंदोलन के दौरान पुलिस की शर्तो के उल्लंधन का मुकदमा कैसे चलाया जाय।

दिल्ली पर इस हमले के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या पी चिदंबरम अपने पद से हटाए जाएंगे? यह हमला सुरक्षा चूक के कारण हुआ है और इस चूक के लिए किसी न किसी को जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी। दिल्ली पुलिस पी चिदंबरम के जिम्मे है। जाहिर है, इस चूक का जिम्मा भी उन्हें ही लेना चाहिए। (संवाद)