यह कहना है तुलसी यादव का। इनका परिवार भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने के सामने रहता था। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कारखाने से 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को मिथाइयल आइसो सायनेट गैस की रिसाव में 15274 लोगों की मौत हुई थी और 5 लाख 73 हजार लोग सीधे तौर पर घायल हुए थे।
36 साल की तुलसी यादव के पिता रामदयाल यादव की मौत 9 दिसंबर को गैस की चपेट में आने से हो गई है। उसके परिवार के सभी लोग गैस से प्रभावित हुए हैं। 2007 में उसकी मां की भी मौत हो गई है। तुलसी की आज तक शादी नहीं हो पाई है। वह कहती है, "गैस प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियों की शादी बहुत ही मुष्किल है। लड़के वाले सोचते हैं कि वैसी लड़कियों के साथ स्वास्थ्य की कई समस्याएं रहती हैं और बच्चा भी स्वस्थ होगा कि नहीं, इसकी आषंका रहती है। इस कारण से लड़कियों की शादी बहुत ही मुष्किल से हो पाती है।" आज तुलसी के लिए आजीविका का सहारा उसको मिलने वाला विकलांगता का पेंशन है।
सरकार भले ही यह दावा कर रही है कि गैस से पीड़ित व्यक्तियों के अगली पीढ़ी पर असर नहीं पड़ रहा है, पर अधिकांष शोधों से यह पता चलता है कि अगली पीढ़ी पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। गैस त्रासदी का प्रजनन स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। गुणसूत्रों में भी परिवर्तन दिखाई पड़ रहा है। महिलाओं को कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। गैस से प्रभावित महिलाओं में प्राकृतिक गर्भपात में बढ़ोतरी दिखाई पड़ रही है। कई महिलाओं को तीन-चार बार गर्भपात जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसका बहुत ज्यादा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम पाई जा रही है।
32 साल की इरफाना बी गैस पीड़ित महिला है। उनके पति मकबूल गैस त्रासदी के समय 14 साल के थे। वे भी गैस से प्रभावित थे। उनकी मौत अप्रैल 2009 में हो गई। उनके तीन बच्चे हैं। इरफाना बताती हैं, "मेरे तीनों बच्चे महीने में एक-दो बार बीमार पड़ते हैं। थोड़ा भी मौसम गड़बड़ होता है, तो वे बीमार पड़ जाते हैं। दूसरे बच्चों की तुलना में वे ज्यादा बीमार पड़ते हैं।"
गैस त्रासदी से बीमार सिकंदर बी ने बताया, "हम जब इलाज के लिए गैस राहत वाले अस्पतालों में जाते हैं, तो डॉक्टर एक-दो मिनट बात करते हैं और दवाइयां लिख देते हैं। हमारा चेक अप नहीं किया जाता। पिछले कई सालों से हमारे खून-पेषाब की जांच नहीं हुई हैं।"
समुचित इलाज के अभाव में गैस पीड़ि़त हजारों महिलाओं को स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। सरकार को चाहिए था कि अगली पीढ़ी पर गैस का क्या प्रभाव होगा, को जानने के लिए इन महिलाओं को बेहतर तरीके से इलाज करे पर ऐसा नहीं हो पा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बिना किसी बेहतर शोध के यह प्रचारित किया जा रहा है कि अगली पीढ़ी पर इसका असर नहीं देखने को मिलेगा या अब जन्म लिए हुए बच्चों पर इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है।
गैस पीडित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार कहते हैं, "गैस पीडित के बारे में य्ाह भ्रम फैलाया जा रहा है कि उनके इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया करा दी गई है और अब उन्हें कोई परेशानी नहीं है। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। इलाज के लिए उन्हें समस्याओं से जूझना पड़ता है। अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिल रही हैं।" गैस के प्रभाव के कारण प्रतिवर्ष 40 हजार लोग विभिन्न अस्पतालों में भर्ती होते हो रहे हैं और प्रतिदिन 6 हजार लोग इलाज के लिए अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं। (संवाद)
भारत: मध्य प्रदेश
जख्म भरता नहीं, न्याय मिलता नहीं
प्रतिदिन 6000 लोग अस्पताल के चक्कर में
सीमा जैन - 2009-12-10 06:57
भोपालः 25 साल हो गए, पर उस रात की याद आज भी सिहरन पैदा कर देता है। हजारों की भागती भीड़ में हमारा भी परिवार शामिल था, पर उस जहरीली गैस से बचकर हम कहां तक जा पाते। आखिरकार उसने हमारे परिवार के मुखिया को लील लिया और हमें ऐसा जख्म दे दिया, जिससे हम आज तक भुगत रहे हैं।