आखिर सोना इतना महंगा क्यों हो रहा है और यह महंगा होकर कहां तक जाएगा? ये दो सवाल आज खासा परेशान करने वाले हैं। महंगा होने के कारणों को समझना तो कठिन नहीं है, लेकिन यह महंगा होकर कहां तक जाएगा, इसके बारे मे कुछ भी कहना आसान नहीं है। सोना महंगा हो रहा है, क्योंकि इसकी मांग बढ़ती जा रही है, जबकि इसकी आपूर्ति में कोर्इ खास वृदिध हो नहीं रही है।

उपभोग के लिए सोने की मांग बढ़ी है। भारत सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है और पिछले एक दशक में इसकी अर्थव्यवस्था की ऊच्च विकास दर के कारण दुनिया भर में सोने की मांग बढ़ी है। भारत की समृदिध सोने की कीमत में तेजी का एक कारण तो है, लेकिन यह इतना बड़ा कारण नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत कम समय में ही दूनी हो जाए। दरअसल सोने की कीमतों में तेजी के लिए भारत की संपन्नता से ज्यादा जिम्मेदार अमेरिका की हो रही बदहाली है।

अमेरिका ही बदहाल नहीं है। यूरापीय देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी त्राहि-त्राहि कर रही हैं। भूकंप और सुनामी के बाद जापान का भी बुरा हाल है। टयूनिशिया से शुरू हुर्इ चमेली (जसिमन) क्रांति के बाद उत्तरी अफ्रीकी और अरब के कर्इ देशोेंमें राजनैतिक असिथरता का माहौल बन गया है। यानी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया सभी जगह संकट का माहौल बना हुआ है और संकट के इस माहौल ने विश्व अर्थव्यवस्था के भविष्य के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

संकट की आहट दुनिया भर में सुनी जा रही है। सोने की अंधाधुृध खरीद उस संकट का सामना करने के लिए भी हो रही है। भारत में सोना परंपरागत रूप से भले जेवर और संपतित के एक साधन के रूप में की जाती है, लेकिन आज दुनिया भर में सोने की खरीद आने वाले समय को ध्यान में रखकर बहुत तेज हो गर्इ है।

आखिर सोना आने वाले संकट को ध्यान में रखकर क्यों खरीदा जा रहा है? इसका सबसे बड़़ा कारण यह है कि ऐतिहासिक रूप से सोना मुद्रा का काम भी करती रही है। दुनिया भर की मुद्राओं के इजिहास में सोने का स्वर्णिम स्थान है। आज आर्थिक दुरवस्था के कारण दुनिया के अमीर देशों को लग रहा है कि उनके देश की मुद्रा आने वाले दिनों में कमजोर हो जाएंगी। इसलिए उनका अपने देश की मुद्रा से विश्वास हट रहा है और अब वे फिर सोने की ओर बढ़ रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अपने देश की मुद्रा की इकार्इ में अपनी संपतित की बचत करने से वे आने वाले दिनों में और गरीब हो जाएंगे। इसलिए वे अपनी संपतित को सोने का रूप देने में लगे हुए हैं। इसके कारण सोने की विश्वव्यापी माग बहुत ज्यादा हो गर्इ है और सोना लगातार महंगा होता जा रहा है।

बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए, जब सोने का ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा होने का गौरव प्राप्त था। पर बाद मे अमेरिकी डालर ने इसका स्थान ले लिया। अनेक देश अपनी विदेशी मुद्रा का भंडारण अमेरिकी डालर के रूप में करने लगे। चीन का विदेशी मुद्रा भंडार आज सबसे ज्यादा समृदध है और वह भंडार मुख्य रूप से अमेरिकी डालर से ही बना हुआ है। अमरिकी की आर्थिक हालत खराब होने के कारण उसके डालर की हालत भी खराब हो रही है और उसके कारण चीन जैसे देशों का विदेशी मुद्रा भंडार भी प्रभावित हो रहा है। इसलिए अब चीन जैसे देश, जिसमें भारत भी शामिल है, अमेरिकी के रूप में अपना विदेशी भंडार रखने को लेकर आशंकित हो गये हैं। और डालर की जगह अब सोने को तरजीह देने लगे हैं।

अमेरिकी डालर के कमजोर होने के कारण अनेक देशों के केन्द्रीय बैंक भी अब सोने की बेतहाशा खरीद करने लगे हैं। भारत का केन्द्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक को उदाहरण हम ले सकते हैं। यह भी अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का अंश बढ़ाता जा रहा है। कुछ समय पहले हमारे भारतीय रिजर्व बैंक के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा मात्र 3 फीसदी ही था, जो अब बढ़कर 8 फीसदी से भी ज्यादा हो गया है। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने 200 टन सोने की खरीद की। यह तो भारत के केन्द्रीय बैक की खरीद हुर्इ। दुनिया के अन्य अनेक केन्द्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार को भविष्य की अनिश्चतता से सुरक्षित रखने की लिए सोने की खरीद कर रहे हैं। इसके कारण सोने की मांग दिन दूनी और रात चौगुनी होती जा रही है।

दुनिया की प्रतिषिठत रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड और पूअर्स ने कुछ समय पहले अमेरिका की रेटिंग कम कर दी। उसके कारण दुनिया भी में तहलका मच गया और अमेरिका के आर्थिक भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए। इसके साथ ही अमेरिकी डालर के प्रति भी विश्वास डगमगाने लगा है और दुनिया भर के निवेशकों के लिए डालर की जगह सोना लेने लगा है।

अमेरिका, यूरोप और जापान की अर्थव्यवस्थाओं के डगमगाने के कारण दुनिया भर के शेयर बाजार भी प्रभावित हो रहे हैं। शेयर बाजार में निवेश करने में अब लोग डरने लगे हैं। निवेश करने से ज्याद दिलचस्पी अनेक लोगों को शेयर बाजार से पैसा निकाल लेने में होने लगी है। वे उससे पैसा निकालकर सोने के निवेश में लगा रहे हैं। यानी शेयर बाजार से पैसा निकलकर उसका एक बड़ा हिस्सा सोने की खरीद को समर्पित हो रहा है। रियल इस्टेट में भी दुनिया भर में कहीं कोर्इ तेजी नहीं दिखार्इ दे रही है। वहां होने वाले निवेश का एक हिस्सा भी सोने के निवेश में जा रहा है।

यानी सोने की मांग बढ़ी हुर्इ है और इसके कारण इसमें तेजी भी बनी हुर्इ है। अमेरिका के कंसास विश्वविधालय के अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि अमेरिकी के हाउसिंग की तरह सोने का बबल भी जल्द ही फूट जाएगा। लेकिन क्या सोने की यह चमक उसकी चमक नहीं, बनिक उसका बुलबुला है? अमेरिकी अर्थशास्त्री यहां एक भूल कर रहे हैं। अमेरिकी के हाउसिंग सेक्टर के निवेशक अमेरिकी ही थे, जबकि सोने के खरीददार और निवेशक दुनिया भर मे फैले हुए हैं। उनकी सोने की भूख बढ़ती कीमत को शायद ही बुलबुला बनने दे। (संवाद)