कम से कम 85 लोग मारे जा चुके हैं। इसके कारण जान और माल की भारी क्षति हुर्इ। मकान ही नहीं, सड़कों तक का भारी नुकसान हुआ। खासकर के पहाड़ी इलाके में बने मकान तो सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। सेना और अर्दध सैनिक बल के जवानों को भी इन सड़कों की मरम्मत करने में भारी मुशिकलों का सामना करना पड़ रहा है।

भूकंप आने के 9 दिनों के बाद भी दूरदराज इलाके से जान माल की हानि की नर्इ नर्इ जानकारियां हासिल हो रही हैं। राज्य के उत्तरी इलाके में तो लोगों को अभी भी मलबों में दबे होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इतनी भारी तबाही के लिए आखिर कौन जिम्मेदार हैं? इसके बारे मे ंतुरंत कुछ कहना तो ठीक नहीं होगा, लेकिन जानकार लोग इसके लिए प्रशासन को ही जिम्मेदार बता रहे हैं, जिसने पहाड़ी इलाकेों में बहुमंजिली इमारतों को बनाने की इजाजत दी। गौरतलग है कि एक मंजिली मकानों को नहीं, बलिक बहुमंजिली भवनों को ही ज्यादा नुकसान हुआ है और उनमें रहने वाले लोग ज्यादा मारें गए हैं।

राज्य के पहाड़ी इलाको में अंधाधुध निर्माण हो रहे हैं। इनके कारण भी इस क्षेत्र में भूंकप जैसी आपदाओं से होने वाले नुकसान के बढ़ जाने की आशंका ज्यादा हो गर्इ है। इस भुकंप के बाद राज्य में बिजली की स्थापित की जाने वाली परियोजनाओं के भविष्य पर भी संकट के बादल मंडराने रहे हैं। गौरतलब है कि ये बिजली की परियोजनाएं नदियोें को बांधकर चलाने की योजना है। मामला सिर्फ बांध तक ही सीमित नहीं है,, बलिक इन परियोजनाओं के खातिर सड़कें भी बनानी पडेंगी और सुरंग भी तैयार करने होंगे। बड़े बड़े बांध बनाने तो होंगे ही, बड़ी बड़ी पाइपलाइनों को बिछाने की जरूरत भी पड़ेगी।

सिकिकम में पनबिजली परियोजनाओं से कुल 8 हजार मेगावाट प्रतिदिन बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। जाहिर है अनेक परियोजनाएं हैं। इनमें पैदा की गर्इ बिजली को पड़ोंसी राज्यों में इस्तेमाल किया जाएगा, जहां बिजली की भारी कमी है।

बहुमंजिली इमारतों को ज्यादा नुकसान होने के कारण उनमें रहने वाले लोग आजकल सड़कों पर अपनी रातें बिता रहे हैं। भूकंप के हल्के झटके कभी कभार अभी भी आ जाते है। लोगों को डर लग रहा कि बड़ा झटका फिर न लग जाए। इसलिए वे अपने घरों में जाने से डर रहे हैं। पर सवाल उठता है कि वे कबतक घरों से बाहर रहेंगे? जाड़ा शुरू होने वाला हैं और इसकी शुरुआत के बाद उनका घरों से बाहर रहना मुशिकल हो जाएगा। (संवाद)