भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से तो ममता बनर्जी की जीत पक्की मानी जा रही थी। वहां उनका मुकाबला सीपीएम उम्मीदवार नंदिनी मुखर्जी से था। मतदान के दिन भारी बारिश हो रही थी। उसके कारण मतदान का प्रतिशत सिर्फ 49 ही रहा, जबकि उसी दिन बशीरहाट क्षेत्र में 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुए थे। वहां सीपीएम के विधायक की रहस्यमय मौत के बाद चुनाव हो रहा था। भवानीपुर में पिछले चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार की जीत 50 हजार से भी ज्यादा मतों से हुर्इ थी। इस बार मत प्रतिशत घटने से लग रहा था कि ममता की जीत का मार्जिन कम होगा, लेकिन मतगणना के बाद पाया गया कि वे 54 हजार मतों से विजयी हुर्इ हैं। जाहिर है कम मतदान होने के बावजूद इतने भारी मतों से जीतने का मतलब होता है कि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनने के बाद लोगों के बीच और मजबूत हो रही हैं।

ममता बनर्जी को वहां 73000 के करीब वोट मिले, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी सीपीएम उम्मीदवार को मात्र 19 हजार मत ही मिले। सीपीएम उम्मीदवार ने ममता बनर्जी के खिलाफ जमकर चुनाव प्रचार किया था। उनके लिए प्रचार करने को खुद पूर्व मुख्यमंत्री बुधदेव भटटाचार्य आए थे। बिमान बोस ने भी उनके लिए चुनाव प्रचार किया था। सीपीएम की उम्मीदवार के लिए राहत की बात यह रही की उनकी जमानज जब्त नहीं हुर्इ।

बशीरहाट विधानसभा क्षेत्र सीपीएम के पास था, लेकिन इस चुनाव में उसे तृणमूल ने उससे झटक लिया। सीपीएम उम्मीदवार सुबीद अली गाजी की टीएमसी उम्मीदवार एटीएम अब्दुल्ला के हाथों 30 हजार मतों से भी ज्यादा मार्जिन से हार हुर्इ। इस हार के साथ वाममोर्चा के विधायकों की संख्या पशिचम बंगाल विधानसभा में घटकर 61 रह गर्इ है।

खास बात यह है कि तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार, जो अब जीतकर विधायक बन गए हैं, सीपीएम के पूर्व विधायक जिनकी मौत से यह सीट खाली हुर्इ थी, के नजदीकी रिश्तेदार हैं। सीपीएम के मरहूम विधायक मुस्तफा बिन कासिम की मौत आत्महत्या थी अथवा किसी ने उन्हें पीछे से घकेल कर उनके फलैट से नीचे गिया था, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है। उनकी मौत के बाद उनके परिवार के सदस्य सीपीएम नेताओं के प्रति संदेह से भरे हुए थे। यही कारण है कि उनके एक नजदीकी रिश्तेदार ही तृणमूल के उम्मीदवार बन गए। इसके कारण सीपीएम विधायक की मौत पर उपजी सहानुभूति का लाभ तृणमूल उम्मीदवार को मिल गया और उसकी 30 हजार से भी ज्यादा के अंतर से जीत हो गर्इ।

उधर कोलकाता उच्च न्यायालय का फैसले ने टाटा को एक बहुत बड़ा झटका दिया है। ममता सरकार ने विधानसभा से एक कानून बनाकर टाटा की सिंगूर जमीन को फिर से वापस लेकर कियानों को वापस करने का रास्ता साफ किया था। टाटा ने उस कानून की वैधता पर सवाल उठाते हुए उसे उच्च न्यायालय मे ंचुनौती दे डाली। पर अदालत में टाटा को मुह की खानी पड़ी और उसने उस कानून की सांवैधानिकता पर उठाए गए सवाल को खारिज कर दिया। हालांकि यह भी साफ दिखार्इ दे रहा है कि अब टाटा उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा। (संवाद)