अमेरिका के साथ पाकिस्तान के तनावपूर्ण रिश्ते का एक असर तो यह होगा कि कश्मीर का मसला पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में और भी हाशिए पर खिसक जाएगा। वैसे भी पिछले दो वर्षो से कश्मीर का मसला पाकिस्तान की राजनीति का केन्द्रीय मसला बन पाने में विफल रहा है। इस बीच पाकिस्तान की ओर से कश्मीर मे कराए जाने वाली घुसपैठ में भारी कमी आर्इ है।
पहले जब कभी भी पाकिस्तान के अंदर कोर्इ भारी राजनैतिक संकट आ खड़ा होता था, तो वहां के नेता कश्मीर मसले को उठाकर उस संकट से वहां के लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश करते थे। तब वहां के शासक कश्मीर के अंदर घुसपैठ को और भी बढ़ावा देने लगते थे, ताकि भारत के अंदर ज्यादा से ज्यादा गड़़बडि़यां फैलार्इ जा सकें।
अस बीच पिछले 12 सालों में कश्मीर मसले को हल करने में भारत और पाकिस्तान के शासक दो बार गंभीर कोशिश कर चुके हैं। कहा जाता है कि दोनों बार भारत और पाकिस्तान इस समस्या के हल के पास पहुंच गए थे। पहली बार तो 1999 में वाजपेयी सरकार नवाज शरीफ के साथ समझौते को आखिरी रूप देने के बहुत करीब पहुंचे थे और दूसरी बार मनमोहन सिंह और परवेज मुशर्रफ के बीच बात बनते बनते रह गर्इ थी।
पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान के अंदर आंतंकवादी गतिविधियां इतनी ज्यादा बढ़ गर्इ हैं कि अब वहां के शासक कश्मीर को ज्यादा तवज्जों देने की सिथति में नहीं हैं। यही कारण है कि कश्मीर पर बयानबाजी करने के बावजूद वे इसके लिए ज्यादा संसाधन और समय कश्मीर पर नहीं दे पा रहे हैं, क्योंकि वे अपनी ही समस्या में उलझे हुए हैं।
अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव ने पाकिस्तान को और भी उलझा दिया है। इसके कारण वहां का जनमत अमेरिका के खिलाफ होता जा रहा है और अब उसके पास कश्मीर पर सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं है। अमेरिका ने अभी कुछ समय पहले ही पाकिस्तान को चेतावनी दे डाली है कि यदि उसने हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवार्इ नहीं कि तो अमेरिका की सेना पाकिस्तान सिथत आतंकवादी संगठनों के खिलाफ एकतरफा कार्रवार्इ कर सकता है। अमेरिका ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आर्इएसआर्इ पर अमेरिकी सेना के खिलाफ युदध में शामिल होने का आरोप भी लगा दिया है।
अमेरिका की चेतावनी के बाद पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष जनरल कयानी ने अपनी सेना के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ आकसिमक बैठक भी कर डाली। उस बैठक में फैसला किया गया कि पाकिस्तान की सेना हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कोर्इ कार्रवार्इ नहीं करेगी।
अमेरिका और पाकिस्तान के ये तनावपूर्ण रिश्ते ज्यादा दिनों तक बने रहने की उम्मीद बहुत कम है। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान अमेरिका पर अपनी आर्थिक बदहाली के कारण पूरी तरह निर्भर है। अमेरिकी सहायता के बिना उसकी अपनी अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा जाएगी। उसका अपना असितत्व भी खतरे में पड़ सकता है। वह अमेरिका को छोड़कर पूरी तरह चीन पर निर्भर नहीं रह सकता।
दूसरी तरफ दो कारणों से अमेरिका भी पाकिस्तान को अपने से अलग नहीं करना चाहेबा। पहला कारण तो यह है कि अफगानिस्तान में टिकी उसकी अपनी और नाटों की सेना को हथियार और रसद की आपूर्ति पाकिस्तान के रास्ते से ही होती है। यदि पाकिस्तान खिलाफ हो गया तो वह आपूर्ति बंद हो जाएगी और अफगानिस्तान मे टिके उन सैनिकों की जान पर बन आएगी। उूसरा कारण यह है कि अमेरिका पाकिस्तान को इतना नहीं घकेलेगा कि वह चीन की गोद में पूरी तरह चली जाए।
जाहिर है पाकिस्तान अमेरिका को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी यह चिंता उसे कश्मीर से दूर कर रही है। यही कारण है कि यहा उसकी संलिप्तता कम होती जा रही है। इसके बावजूद भारत को पाकिस्तान से लगी सीमा पर लगातार चौकस रहना होगा और सिथति की लगातार समीक्षा करते रहना होगा। (संवाद)
कश्मीर में कुछ नरम दिखाई पड़ सकता है पाकिस्तान
भारत को सीमा की स्थिति की लगातार समीक्षा करनी होगी
बी के चम - 2011-10-04 13:10
पाकिस्तान के अमेरिका के साथ रिश्ते लगातार कटु होते जा रहे हैं। सवाल उठता है कि इसका पाकिस्तान की कश्मीर में संलिप्तता पर क्या असर पड़ेगा? सवाल यह भी उठता है कि इससे भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के लिए चल रही बातचीत पर भी क्या असर पड़ेगा?