प्रधानमंत्री के इस आरोप का भाजपा नेताओं ने करारा जवाब दिया। सुषमा स्वराज ने कहा कि उनकी पार्टी न तो इस सरकार को गिराना चाहती है और न ही इसके लिए उसके पास जरूरी ताकत है। उन्होंनें साफ कहा कि न तो उनकी पार्टी के पास और न ही विपक्ष के पास इतने लोकसभा सांसद हैं कि वे सरकार को गिरा सकें। उन्होंनें कहा कि यदि सरकार गिरेगी, तो अपने कर्मों के कारण गिरेगी। एक अन्य नेता अरुण जेटली ने भी यही बात कही कि केन्द्र सरकार अपने भार से ही गिरेगी, इसमें उनकी पार्टी का कोर्इ हाथ नहीं होगा।

सवाल उठता है कि यदि विपक्ष सरकार गिराना नहीं चाहता है तो फिर प्रधानमंत्री को ऐसा लग क्यों रहा है? क्या वे मध्यावधि चुनाव का डर लोकसभा सांसदों को दिखाना चाह रहे हैं? सच कहा जाय, तो आज यूपीए की सरकार की हालत बहुत ही दयनीय हो चुकी है। रोज के रोज भ्रष्टाचार की खबरें आती हैं। प्रधानमंत्री की अपनी छवि बहुत खराब हो चुकी है। कांग्रेस की हालत तो उनसे भी ज्यादा दयनीय है। पार्टी को पता नहीं चल पा रहा है कि वह क्या करे। दरअसल कांग्रेस आज गहन चिकित्सा कक्ष में है और इसके इलाज के बारे में खुद सोनिया गांधी को कुछ नहीं पता।

कांग्रेस की यह खराब हालत के बावजूद उसकी सरकार चल रही है, तेा उसका कारण यह है कि अभी भी सहयोगी दलों को उसे सहयोग मिल रहा है और उत्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टियाें के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा का लाभ भी उसे मिल जाता है। लेकिन सहयोगी पार्टियों के साथ कांग्रेस के रिश्ते भी लगातार खराब होते जा रहे हैं। डीएमके और तृणमूल कांग्रेस के पास कांग्रेस के बाद यूपीए मे ंसबसे ज्यादा लोकसभा सांसद हैं। डीएमके के साथ कांग्रेस के संबंध बेहद खराब हो चुके हैं। इसका कारण डीएमके प्रमुख करुणानिधि की बेटी कणिमोरी का जेल में होना है। तृणमूल कांग्रेस के साथ भी कांग्रेस के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं। ममता बनर्जी ने अभी हाल ही में यूपीए की केन्द्र सरकार को तीस्ता जल के मामले पर एक बड़ा झटका दिया था। उन्होंने बांग्लादेश के साथ भारत का तीस्ता जल समझौता नहीं होने दिया। वे प्रधानमंत्री के साथ पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक बांग्लादेश की यात्रा पर भी नहीं गर्र्इ। राज्य में कांग्रेस कार्यकत्तार्ओ की ममता और उनकी पार्टी के खिलाफ शिकायत लगातार बढ़ती जा रही है।

शरद पवार की एनसीपी के साथ भी कांग्रेस का संबंध ठीक नहीं चल रहा है। यदि डीएमके और एनसीपी एक साथ सरकार से बाहर होने की सोचे तो मनमोहन सिंह के लिए सरकार बचाना लगभग असंभव हो जाएगा। उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसी हालत में कांग्रेस को वहां की समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समय समय पर मिलने वाला समर्थन भी हासिल नहीं हो पाएगा।

सवाल उठता है कि क्या भाजपा चुनाव के लिए तैयार है? भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी लगातार मध्यावधि चुनाव की बात कर रहे हैं, लेकिन यदि आज चुनाव हो तो भाजपा इसके लिए तैयार नहीं है। इसका कारण यह है कि पार्टी के अंदर प्रधानमंत्री पद के लिए भारी मारामारी हो रही है। पार्टी के अंदर प्रधानमंत्री पद के लिए आधा दर्जन उम्मीदवार खड़े हो गए हैं। लालकृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी के बीच इस मसले पर संग्राम हो रहा है। आडवाणी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा का एलान किया, तो नरेन्द्र मोदी ने उपवास करके प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोंक दिया। उसके बाद तो आडवाणी ने अपनी रथयात्रा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हरी झंडी देखकर शुरू करने का फैसला कर लिया। उससे नाराज मोदी ने दिल्ली में हुर्इ पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ही हिस्सा नहीं लिया।

चुनाव के लिए खुद कांग्रेस भी तैयार नहीं है। मोहन सिंह की छवि को भारी बटटा लग गया है और राहुल गांधी अभी भी पार्टी का नेतृत्व करने के लिए अपने आपको तैयार नहीं कर पा रहे हैं। वामपंथी दलों का भी बुरा हाल है। पशिचम बंगाल और केरल मे ंचुनाव हारने के बाद उनके हौसले पस्त हैंं। आज यदि चुनाव होते हैं, तो लाभ नीतीश कुमार, जयललिता, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय नेताओं को ही होगा, लेकिन फिलहाल चुनाव की कोर्इ संभावना नहीं दिखार्इ पड़ रही है। (संवाद)