यह अभियान अगले 6 महीनों तक चलता रहेगा। इसके तहत 66 प्रकार की गतिविधियां चलार्इ जा रही हैं, ताकि जन जन में बेटियों को बचाने का संदेश जाए।

राज्य सरकार इस तरह का अभियान चलाए, इसके पर्याप्त कारण हैं। राज्य में स्त्री और पुरुष का अनुपात लगातार गिरता जा रहा है। 1961 मे 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 967 हुआ करती थी, जो अब 2011 में घटकर 912 हो गर्इ हैं। यदि बच्चे और बचिचयों का अनुपात देखा जाय, तो तस्वीर और भी भयावह है। राज्य के पांच जिलों में तो 1000 बच्चों पर 850 से भी कम बचिचयां हैं। राज्य के 17 जिलों में 1000 बच्चों पर 851 से 900 के बीच में बचिचयां हैं। राज्य के 19 जिलों में 1000 बच्चों पर 901 से 950 बचिचयां हैं, जबकि मात्र 9 जिले ही ऐसे हैं, जहां 1000 बच्चे पर 950 से अधिक और 1000 से कम बचिचयां हैं। मात्र एक जिला ऐसा है, जहां बचिचयों की संख्या बच्चों की संख्या से ज्यादा है।

एक सर्वे में पाया गया कि ग्वालियर जिला में 1000 बच्चें के ऊपर मात्र 807 बचिचयां थीं। जबलपुर, सागर, बेतुल, दतिया, गुना, मोरैना और भिंड की सिथति भी विस्फोटक पार्इ गर्इ। सर्वे में पाया गया कि आदिवासी इलाकों में बचिचयों की संख्या आनुपातिक रूप से बेहतर है। इसका मतलब यह है कि आदिवासी बच्चों और बचिचयों में ज्यादा फर्क नहीं करते।

दरअसल समाज के संपन्न लोगों में बचिचयों की भ्रून हत्या का प्रलचन बढ़ रहा है। अब सोनाग्राफी की सुविधाएं कस्बों से लेकर गांवों तक में हो गर्इ हैं। इसके द्वारा गर्भ में बच्चे के लिंग का पता लग जाता है। हालांकि लिंग परीक्षण गैरकानूनी है, लेकिन कानून को धता बताकर अनेक डाक्टर लिंग का पता बता देते हैं। यह जानकारी पाकर बचिचयों के भ्रूणों की कर्इ बात हत्या कर दी जाती है। हाल ही के दिनों में बच्चों और बचिचयों के बीच बिगड़ते अनुपात के पीछे इसी लिंग परीक्षण का हाथ है।

जिस तरह से बचिचयों की सख्या बच्चों की संख्या के मुकाबले कम होते जा रही हैं, उसके कारण आने वाले दिनों में कुंवारे पुरुषों की सख्या काफी अधिक हो जाएगी। इसका कारण है कि पुरुषों के लिए शादी योग्य महिलाएं उपलब्ध ही नहीं होगी। इसका परिणाम बहुत ही घातक होगा। महिलाएं पहले की अपेक्षा ज्यादा असुरक्षित हो जाएंगी और उनके खिलाफ यौन अपराध भी बढ़ जाएगा। यही कारण है कि इस प्रवृतित को जल्द से जल्द रोकना होगा।

मध्यप्रदेश के नीति निर्माताओं को लग रहा है कि उनका राज्य हरियाणा की गति पा सकता है। गौरतलब है कि हरियाणा में महिलाओं की संख्या पुरूषों की संख्या से बहुत कम है। इसके कारण अनेक पुरूषों की शादी नहीं हो पाती। फिर उनमें से अधिकाश लोग देश के अन्य इलाकों से लड़कियां खरीदकर लाते हैं अपना परिवार आगे बढ़ाते हैं। पर इस क्रम में महिलाओं का भारी शोषण होता है। मध्यप्रदेश के नीति निर्माता अपने प्रदेश को हरियाणा के रास्ते पर बढ़ने से रोकना चाहते हैं। राज्य सरकार का बेटी बचाओ अभियान इस दिशा में उठाया गया एक अच्छा कदम है। (संवाद)