इस त्रिकोणीय मुकाबले को अन्ना हजारे ने हस्त़क्षेप कर अब सीधा मुकाबला बना डाला है। मुकाबला अब अजय चौटाला और कुलदीप बिश्नोर्इ के बीच में सिमट कर रह गया है। जीत उन्हीं दोनों में से किसी एक की होनी है। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन के कारण कांग्रेस उम्मीदवार की हालत पहले से ही पतली थी। पिछले चुनाव में भी वे तीसरे नंबर पर थे, इसलिए इस बार भी वे तीसरे नंबर के ही उम्मीदवार समझे जा रहे थे। पर अन्ना हजारे के हस्तक्षेप ने कांग्रेस उम्मीदवार की रही सही उम्मीद को भी अब समाप्त कर दिया है।
अन्ना ने साफ साफ अपील की है कि हिसार के मतदाता कांग्रेस उम्मीदवार को मत नहीं दें। उनकी अस अपील से कांग्रेस बौखला गर्इ है। कांग्रेस की बौखलाहट इसलिए नहीं सामने आर्इ है कि उसके उम्मीदवार की जीत अब सुनिशिचत हो गर्इ है। यह सीट उसकी नहीं थीै और पिछले चुनाव में वह तीसरे नंबर पर थी। इसलिए एक बार और तीसरे नंबर पर आना कांग्रेस के लिए कोर्इ प्रतिष्ठा खोने वाली बात नहीं थी। पर अन्ना हजारे और उनकी टीम के लोगों ने कांग्रेस का विरोध करने की अपील करके इसे कांग्रेस के लिए भी प्रतिष्ठा की लड़ार्इ बना दी है। लिहाजा यहां की हार अब कांग्रेस की प्रतिष्ठा को सीधा चोट पहुंचाएगी।
पिछले चुनाव में भजनलाल को करीब 2 लाख 48 हजार मत मिले थे। चौटाला की पार्टी के उम्मीदवार को करीब 2 लाख 41 हजार मत मिले थे, जबकि कांग्रेस के जयप्रकाश को 2 लाख 1 हजार के करीब मत मिले थे। उस समय कांग्रेस को हरियाणा की 10 में से 9 सीटों पर विजय मिली थी। जाहिर है पूरे राज्य में माहौल कांग्रेस के पक्ष में था और हिसार मे कांग्रेस को इसलिए हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि भजनलाल के रूप में एक बहुत ही मजबूत नेता यहां का प्रत्याशी था। इस बार भजनलाल चुनाव मैदान में नहीं हैं, लेकिन इस बार अन्ना हजारे की अपील है, जो लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रही है।
यदि इस बार भी कांग्रेस 2 लाख से ज्यादा वोट ले आती है, तो वह अपनी इज्जत के बचे होने का दावा कर सकती है, भले ही उसका उम्मीदवार तीसरे स्थान पर ही हो, लेकिन वहां खतरा यह है कि उसके उम्मीदवार को पिछले चुनाव की अपेक्षा बहुत कम वोट आए। कांग्रेस की परेशानी का सबब यही है। और इसके कारण ही कांग्रेस के नेता बौखला गए हैं। अपनी बौखलाहट में वे यह भी नहीं देख पा रहे हैं कि वे अन्ना और उनकी टीम के खिलाफ क्या क्या बेतुका बातें करने लगे हैं।
कांग्रेस अब अन्ना पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है। सवाल उठता है कि अन्ना राजनीति कब नहीं कर रहे थे? क्या राजनीति राजनैतिक पार्टियों के लोग ही करते हैं? जो किसी राजनैतिक पार्टी में नहीं हैं, क्या वे राजनैतिक नहीं हैं? तो फिर निर्दलीय सांसदों और विधायकों को क्या कहेंगे? क्या वे बिना राजनीति के ही संसद या विधानसभा में चुनकर आ गए हैं?
क्या कांग्रेस को लगता है कि चुनाव लड़ना ही राजनीति है और जो चुनाव नहीं लड़ते वे राजनीति नहीं करते? इस तरह का सोचना ही बचकानापन है। इस तरह की बचकानी बातें कांग्रेस के नेता अपनी बौखलाहट में कर रहे हैं। दिगिवजय सिंह तो अरविंद केजरीवाल को खुद चुनाव लड़ने की चुनोती दे रहे हैं। सलमान खुर्शीद शीतसत्र के पहले ही अन्ना द्वारा कांग्रेस के विरोध में उतर जाने की आलोचना करते हुए उन्हें अराजनैतिक रहने की हिदायत दे रहे हैं। वे यह मान रहे है कि कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ मत डालने की अपील करने के पहले अन्ना अराजनैतिक थे और अब राजनैतिक हो गए हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहा आंदोलन मूल रूप से राजनैतिक आंदोलन है और इसका नेतृत्व कर रहे लोग पूरी तरह से राजनीतिक हैं। कानून बनान की प्रकि्रया में हस्तक्षेप करने वाले को कार्इ अराजनैतिक कैसे कह सकता? राज अथवा राज्य की नीतियों को प्रभावित करने वाला कोर्इ आंदोलन अराजनैतिक कैसे कहा जा सकता? जिस आंदोलन से राजसत्ता हिल रही हो, नीतिकारों की नींद हराम हो रही हो, वह आंदोलन कुछ भी हो सकता है,ेलकिन अराजनैतिक नहीं हो सकता।
अन्ना ने सही वक्त पर कांग्रेस पर हमला बोला है। भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में यह एक नया मोड़ है और मौजूदा परिसिथतियों में यह बिल्कुल स्वाभाविक है। यह कहना गलत है कि अन्ना का साथ लोग इस लिए दे रहे हैं कि वे किसी पार्टी के खिलाफ नहीं बोलते और अब कांग्रेस के खिलाफ बोलने के कारण लोग उनका साथ छोड़ने लगेंगे। इससे ज्यादा बचकानी बातें हो ही नहीं सकती, क्योंकि लोग अन्ना का साथ इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि लोग भ्रष्टाचार से छुटकारा चाहते हैं। अन्ना खुद र्इमानदारी और सादगी के जीता जागता उदाहरण हैं, इसलिए लोग उनकी जयजयकार कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबे चौड़े भाषण करने वाले राजनेताओं की कमी नहीं है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हजारों हजार राजनैतिक प्रस्ताव पास किए जा चुके हैं। कांग्रेस ने ख्ुाद बुराड़ी के अपने महाधिवेशन में भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत ही तीखा प्रस्ताव पास किया था, लेकिन उन प्रस्तावों की विश्वसनीयता शून्य है। राजनेता द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ दिए गए भाषणों को जनता गंभीरता से नहीं लेती, क्योंकि इस तरह के भाषण करने वालों के हाथों देश की जनता बार बार छली गर्इ है। अन्ना हजारे पर लोगों का विश्वास है, तो वह इसलिए है कि वे लगातार भ्रष्टाचार से लड़ते रहे हैं और उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ार्इ को अपनी सुख सुविधा जुटाने का साधन नहीं बनाया ओर न ही उन्होंने राजसत्ता में प्रवेश कर अपना निजी हित साधने की कोशिश की।
अन्ना की अपील जरूरी है, क्योंकि इससे यह पता चलेगा कि कांग्रेस ने यदि सशक्त और प्रभावी लोकपाल बनाने में दिलचस्पी नहीं ली, तो वह चुनावों में सफाए की ओर बढ़ सकती है। हिसार में यदि कांग्रेस उम्मीदवार के मत पिछले चुनावों में मिले मत से आधे हो जाते हैं अथवा उसकी जमानत जब्त हो जाती है, तो कांग्रेस नेताओं को पता चल जाएगा कि अन्ना टीम द्वारा कुछ लोकसभा क्षेत्रों में कराए गए सर्वे गलत नहीं थे, जिनमें 80 से 90 फीसदी लोगो ंने जनलोकपाल विधेयक के मसौदे को समर्थन दिया। कांग्रेस की करारी हार संभवत: मजबूत लोकपाल का रास्ता प्रशस्त करे। (संवाद)
लोकसभा उपचुनाव: हिसार बन गया है अब कुरूक्षेत्र
कांग्रेस की बौखलाहट स्वाभाविक है
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-10-10 12:36
लोकसभा के उपचुनाव तो प्रत्येक साल किसी न किसी संसदीय क्षेत्र में होते ही रहते हैं, पर उस चुनाव को वह महत्व नहीं मिलता, जो आज हिसार को मिल रहा है। भजनलाल के निधन से यह सीट खाली हुर्इ है और पिछले चुनाव की तरह इस बार भी यहां तिकोना संघर्ष चल रहा था। कुलदीप बिश्नोर्इ अपने पिता की इस सीट को अपने लिए जीतना चाह रहे थे। पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी ने इस बार अपना उम्मीदवार बदल दिया। इस बार श्री चौटाला के बेटे अजय चौटाला मैदान में हैं, तो तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस ने अपने पुराने उम्मीदवार जयप्रकाश को ही फिर से मैदान में उतार दिया।