कीमतों को बढ़ाने के पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे झूठे और बेबुनियाद हैंं। सरकार लोगों के सामने गलत तथ्य रख रही है और गलत तथ्यों को आधार बनाकर ही तेल उत्पादों की कीमतों को लगतार बढ़ाया जा रहा है। आने वाले कुछ दिनों में पेट्रोल की कीमत फिर बढ़ाए जाने के आसार हैं। सरकार डीजल की वर्तमान कीमत से भी खुश नहीं है। वह रसोर्इ गैस की कीमत को भी बढ़ाना चाह रही है।

सरकार द्वारा लगातार प्रचार किया जा रहा है कि तेल उत्पादों की कीमतें नहीं बढ़ाए जाने के कारण तेल कंपनियां घाटे में जा रही है। छाती पीटा जा रहा है कि यदि कीमतें नहीं बढ़ार्इ गर्इं तो तेल कंपनियों का दिवाला निकल जाएगा। लेकिन यदि तेल कंपनियों के एकाउंट को देखें, तो पाते हैं कि सभी तेल कंपनियां मालामाल हो रही है। पिछले कर्इ दशकों से किसी तेल कंपनी ने कभी घाटा उठाया ही नहीं है। तेल कंपनियों के मालिक मालामाल हो रहे हैं। तेल कंपनियां उन्हें अपने मुनाफे का भारी हिस्सा कमाकर दे रही है। गौरतलब है कि सरकारी कंपनियों की मालिक खुद सरकार है और निजी कंपनियों के मालिक गैर सरकारी लोग हैं।

तेल कंपनियों का मुनाफा किसी का भी दिमाग खराब करने वाला दिखार्इ दे रहा है। एक तेल कंपनी का मालिक मुकेश अंबानी हैं। उस कंपनी को वर्ष 2010-11 में 20 हजार करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ। उसके पहले वाले साल में उसका मुनाफा 15,898 करोड़ का था। यानि एक साल में उसका मुनाफा 25 फीसदी बढ़ गया। एक अन्य तेल कंपनी ओएनजीसी है। वह सरकारी क्षेत्र की कंपनी है। उसका मुनाफा भी साल 2010-11 में 20 हजार करोड़ रुपए का था। ओएनजीसी ने केन्द्र सकरार को इसका 90 फीसदी डिविडेंड के रूप में दे दिया। इसके अलावा टैक्स, सेस, डयूटी और रायल्टी के रूप में ओएनजीसी ने केन्द्र सरकार को अलग से दिए थे।

मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और सरकारी ओएनजीसी के अलावा कर्इ अन्य तेल कंपनियां भी हैं। एस्सार की कंपनी निजी क्षेत्र की है। उसका नेट मुनाफा पिछले साल 2 हजार करोड़ रुपए का था। तीन सरकारी कंपनियों इंडियन आयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम का मुनाफा पिछले साल 11 हजार करोड़ रुपए था।

इंडियन आयल को पिछले साल 7445 करोड़ रुपए का शुदध मुनाफा हुआ था। उस मुनाफे के पहले की इसने केन्द्र सरकार को करीब 78 हजार करोड़ रुपए टैक्स के रूप में भुगतान किया था। पिछले 44 साल से यह कंपनी लगातार मुनाफा कमाती रही है और हर साल इस मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा सरकार को देती रही है।

यानी तेल की कंपनियां मालामाल हैं, फिर भी सरकार कहती है कि देश में तेल कीमतों के कम होने के कारण उनका दिवाला पिट जाएगा और ऐसा कहकर पेट्रोल, डीजल, किरासन व रसोर्इ गैस की कीमतों को बढ़ा दिया जाता है। इस तरह लोगों को लूटा जा रहा है। इससे देश में महंगार्इ की सिथति भी बिगड़ती जा रही है।

तेल कंपनियों के घाटे के नाम पर तो कीमतें बढ़ार्इ ही जाती हैं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ी कीमतों का हवाला देकर भी कीमतें बढ़ार्इ जाती है। यहां भी सरकार गलतबयानी करती है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो यहां भी तेल उत्पादों की कीमतें बढ़ा दी जाती है, लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय बाजार मे ंतेल सस्ता होता है, तो यहां तेल सस्ता नहीं किया जाता है। एक समय था, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 140 डालर प्रति बैरल था। उस समय भारत में तेल की कीमत आज की कीमत से आधी थी। आज जब 100 डालर प्रति बैरल है, तो फिर कीमतों को उस स्तर से भी दुगनी होने का क्या मतलब है। इसके अलावा सरकार तेल के सटटा बाजार की कीमतों को दिखाकर यहां कीमत बढ़ाने का माहौल बनाती है, जबकि सच्चार्इ यह है कि भारत सरकार सटटा बाजार की कीमतों पर तेल नहीं खरीदती। वह सटटेबाजी नहीं करती, बलिक तेल बिक्रेता कंपनियों से मोलभाव करके सटटा बाजार की कीमतों से बहुत कम कीमत पर तेल की खरीद करती है। पर अपने देश में तेल उत्पादों की कीमतें बढ़ाते समय सटटा बाजार की कीमत का हवाला दिया जाता है। (संवाद)