लेकिन अब वर्तमान विधानसभा में बसपा विधायको की संख्या घटने लगी है। तीन बसपा विधायकों की सदस्यता तो खुद पार्टी ने ही समाप्त करवा दी, क्योंकि उन्होंने दलबदल कर लिया था। अनेक विधायकों को बसपा ने निलंबित कर दिया है। निलंबित विधायकों मे से कुछ ने दूसरी पार्टियों मे „शामिल होने की घोषणा भी कर दी है। उनकी इस घोषणा से उनकी विधानसभा में सदस्यता खतरे में पड़ गर्इ है।

बसपा ने अपने कुछ विधायकों को टिकट देने से भी मना कर दिया है। टिकट से वंचित और पार्टी से निलंबन का सामना कर रहे बसपा विधायकों की संख्या फिलहाल 30 है। यह संख्या और भी बढ़ सकती है। अब यदि ये विधायक विधानसभा की सदस्यता खो देते हैं अथवा दल बदल विधेयक के तहत अपनी सदस्यता खोने का खतरा लेते हुए सरकार के खिलाफ बगावत कर देते हैं, तो फिर विधानसभा में मायावती सरकार का पतन भी हो सकता है।

इस तथ्य पर राज्य के विरोधी दलों और राजनैतिक पर्यवेक्षकों की नजरें टिकी हुर्इ हैं और इसी के आधार पर कहा जा रहा है कि मायावती सरकार आगामी विधानसभा चुनाव के पहले ही वर्तमान विधानसभा में अपना बहुमत खोकर अपनी सत्ता गंवा सकती है।

सांवैघानिक प्रावधानों के अनुसार विधानसभा के दो स़त्रों का अंतराल अधिक से अधिक 6 महीने हो सकता है। इसलिए विधानसभा का एक बार सामना करने के बाद राज्य सरकार 6 महीने तक विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए आमतौर पर बाध्य नहीं है। पर यदि विपक्ष को लगे कि सरकार संदन में अपना बहुमत खो चुकी है, तो वह राज्यपाल को विधानसभा बुलाने के लिए पेटिशन कर सकता है और राज्यपाल को लगे कि सरकार विधानसभा में अल्पमत में है, तो वे सरकार को सदन का विश्वास हासिल करने के लिए कह सकते हैं।

बसपा के नेता इस बात का खंडन कर रहे हैं कि उनकी पार्टी की सरकार के सामने अल्पमत में जाने की कोर्इ समस्या आने वाली है। उनका कहना है कि उनकी सरकार पूरी तरह से बहुमत मे है और आने वाले दिनों में भी इस तरह का कोर्इ खतरा उसके सामने नहीं है। उसका दावा है कि आगामी विधानसभा चुनाव के बाद भी उनकी सरकार की ही बहुमत रहेगी। (संवाद)