अब टीम अन्ना के एक सदस्य अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार मजबूत लोकपाल कानून बनाए, अन्यथा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उसका सूफड़ा साफ हो जाएगा। कांग्रेस को यह चेतावनी हल्के तरीके से नहीं लेनी चाहिए, क्योेंकि भ्रष्टाचार आज देश का एक सबसे अहम मुददा हो गया है और भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून बनाने की मुख्य जिम्मेदारी कांग्रेस की ही है। कांग्रेस के बड़े बड़े नेता भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त दिखार्इ पड़ रहे हैं और उनके खिलाफ कोर्इ कार्रवार्इ होती भी नहीं दिखार्इ पड़ रही है। इसके कारण भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का असली निशाना कांग्रेस ही बन रही है। यह स्वाभाविक है। कांग्रेस यह कहकर अपनी हार से नहीं बच सकती कि जिनके खिलाफ वह चुनाव लड़ रही है, वे भी भ्रष्ट हैं।
हिसार में कांग्रेस के खिलाफ मुख्य उम्मीदवार भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोर्इ और ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अजय चौटाला थे। भजनलाल और चौटाला की छवि कोर्इ पाक साफ नेता की छवि नहीं रही है। दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक से एक बड़े आरोप लग चुके हैं। यदि भ्रष्टाचार के आरोपों के इतिहास को देखा जाय, तो कांग्रेस के उम्मीदवार जयप्रकाश अपने दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों से बेहतर थे, लेकिन चूंकि वे कांग्रेस के उम्मीदवार थे और कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ार्इ में गंभीर नहीं है, इसलिए निजी तौर पर बेहतर उम्मीदवार होते हुए भी जयप्रकाश को भारी हार का सामना करना पड़ा। जाहिर है, लोगों का गुस्सा कांग्रेस के खिलाफ है और यह गुस्सा कोर्इ हिसार तक सीमित नहीं है, बलिक देश व्यापी है। इसलिए कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ मैदान में आना ही पड़ेगा, अन्यथा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी वह हिसार की गति पाएगी, इसमें किसी की कोर्इ दो राय नहीं हो सकती।
कांग्रेस के उम्मीदवार हिसार लोकसभा क्षेत्र का संसद मे ंतीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2004 लोकसभा चुनाव में तो उन्हें इस क्षेत्र में 53 फीसदी मत मिले थे। 2009 के चुनाव में भी वे कांग्रेस के उम्मीदवार थे और उन्हें करीब 25 फीसदी मत मिले थे। उस समय उनका मुकाबला चौधरी भजनलाल से था, जिनकी शखियत हरियाणा की राजनीति में बहुत बड़ी रही है। उनके सामने वे टिक नहीं सके और चुनाव हार गए। इस बार उपचुनाव मे भजनलाल उनके सामने नहीं थे, बलिक उनके बेटे कुलदीप बिश्नोर्इ थे। जयप्रकाश कुलदीप को हराने की सोच सकते थे, क्योंकि उनकी हैसियत उनके पिता के बराबर की नहीं है। वहां सरकार भी उनकी पार्टी की ही थी और मुख्यमंत्री हुडडा एक लोकप्रिय नेता हैं। आजकल उपचुनावों में वैसे भी सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार भारी पड़ जाते हैं, क्योंकि निर्वाचन आयोग की अनेक पाबंदियों के कारण विपक्षी उम्मीदवार के संसाधन कम हो जाते हैं और सत्तारूढ़ उम्मीदवार सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग कर अपनी साधनहीनता की सिथति से उबर जाता है। यही कारण है कि जयप्रकाश को इस चुनाव में जीत की उम्मीद थी, पर भ्रष्टाचार के खिलाफ बना माहौल उनके खिलाफ काम कर रहा था। अपनी निजी छवि का हवाला देकर वे इस माहौल को भी अपने पक्ष में बना सकते थे, पर टीम अन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करके उनके अभियान की हवा लगा दी। उसके बाद तो उनकी हार निशिचत हो गर्इ थी और सिर्फ देखने को यह रह गया था कि वे जमानत बचा पाते हैं या नहीं।
अब जब चुनाव परिणाम आए हैं, तो देखा जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गर्इ है। जमानत बचाने के लिए किसी उम्मीदवार को कुल पड़े मतों का कम से कम छठा भाग लाना होता है। पिछले चुनाव मे ंकरीब 25 फीसदी मत लाने वाले जयप्रकाश इस बार कुल पड़े मतों को छठा हिस्सा भी नहीं ला पाए और उनकी जमानत जब्त हो गर्इ। उनकी हार को सुनिशिचत देखकर कांग्रेस के अंदर हिसार में गुटबाजी भी समाप्त हो गर्इ थी। कांग्रेस के सभी गुटों के नेता अपने अपने प्रभाव के सारे मत कांग्रेस उम्मीदवार को दिलाने के लिए सकि्रय हो गए थे, ताकि विरोधी गुट कांग्रेस उम्मीदवार की हार का ठीकरा उनके सिर पर न फोडैं और कांग्रेस आलाकमान के सामने उन्हें शर्मिंदा नहीं होना पड़े। एक पार्टी के रूप में कांग्रेस ने भी अपनी सारी ताकत वहां झोंक दी थी। हरियाणा के मुख्यमंत्री ही नहीं, बलिक पड़ोसी राजस्थान और दिल्ली के मुख्यमंत्री भी हिसा लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे थे। लेकिन इन तमाम कोशिशों और एकजुटता के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत नहीं बचना यह साबित करता है कि भ्रष्टाचार को लेकर लोगों का मुख्य गुस्सा कांग्रेस के ही खिलाफ है, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कानून बनाना मुख्य रूप से उसी की जिम्मेदारी है और देश की जनता उसे इस जिम्मेदारी से भागता देख रही है। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आंदोलनों के दौरान लोगों ने देखा कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से सबसे ज्यादा कष्ट कांग्रेस को ही हो रहा है।
अन्ना की टीम कह रही है कि यदि शीतकालीन सत्र में लोकपाल का कड़ा कानून नहीं बना, तो वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के होने वाले चुनाव में भी कांग्रेस के खिलाफ काम करेगी। हरियाणा की तरह वहां भी जिन्हें मुख्य मुकाबले में रहना है, उनकी छवि भ्रष्टाचार के मामले में कोर्इ बेहतर नहीं है, लेकिन अन्ना टीम का अभियान सिर्फ कांग्रेस के ही खिलाफ होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने का जिम्मा उसका है। अन्ना हजारे खुद कह चुके हैं कि यदि कांग्रेस ने एक कड़ा लोकपाल कानून बनाया तो वे कांग्रेस के लिए काम करेंगे। जाहिर है, फिलहाल अन्ना की असली चितां कड़ा कानून है और कड़े कानून के प्रति प्रतिबदधता ही उनके समर्थन अथवा विरोध का निर्धारण करने वाली है। उनकी रणनीति बिल्कुल सही है। आज भ्रष्टाचार के खिलाफ न तो कोर्इ कड़ा कानून है और न ही कोर्इ संस्थागत ढांचा। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी से निजी रूप से लड़ने की बजाय, इस कानून और ढांचे के निर्माण पर ही आंदोलन का ध्यान केनिद्रत होना चाहिए और आज वह कानून बनाने की जिनकी जिम्मेदारी है, दबाव भी उन्हीं पर पड़ना चाहिए। कांग्रेस की तो उत्तर प्रदेश में पहले से ही हालत नाजुक है। वह वहां की दो सबसे प्रमुख राजनैतिक पार्टी नहीं है। इसलिए यदि चुनाव के दौरान अन्ना की टीम वहां उसका विरोध करती है, तो वहां उसका सूफडा साफ होना निशिचत है। बिहार और तमिलनाडृ के बाद अपना सूफड़ा उत्तर प्रदेश में साफ करवाने का खतरा कांग्रेस को नहीं लेना चाहिए। भ्रष्टाचार में लिप्त अपने नेताओं की बजाय उसे अपने आपको बचाना चाहिए। (संवाद)
हिसार में कांग्रेस की जमानत जब्त
क्या उत्तर प्रदेश में भी यही हश्र होगा?
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-10-17 12:57
हिसार लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव का नतीजा कांग्रेस के लिए एक दु:स्वप्न साबित हुआ है। वहां वह पिछले लोकसभा चुनाव में भी हारी थी और तीसरे स्थान पर रही थी। इस बार भी वह वहां हारी है और तीसरे स्थान पर है, लेकिन यह तथ्य कि इस बार उसके उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई, उसके लिए निराशा का कारण होना चाहिए। पहली बार टीम अन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ अपने आपको चुनावी मैदान मे भी उतार दिया और कांग्रेस की इस शर्मनाक हार के पीछे निश्चय ही टीम अन्ना का हाथ है।