इस तीसरे मोर्चे के केन्द्र में हैं मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल। वे कभी बादल सरकार में वित्त मंत्री हुआ करते थे। उनका प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल के साथ मतभेद हुआ और उन्हें सरकार से बाहर जाना पड़ा। सरकार के साथ साथ वे शिरोमणि अकाली दल से भी बाहर हो गए और उन्होंने अपनी एक नर्इ पार्टी बना ली, जिसका नाम रखा है पंजाब पीपुल्स पार्टी।

मनप्रीत सिंह की पंजाब पीपुल्स पार्टी के साथ मोर्चाबंदी की है सीपीआर्इ और सीपीएम ने। इन दोनों वामपंथी पार्टियां का अब कोर्इ जनाधार पंजाब में नहीं रह गया है। अपने बूते चुनाव लड़़कर ये शायद कहीं चुनाव जीत ही नहीं सकें, इसलिए इन्हें मार्चेबंदी और गठबंधन का रास्ता अखितयार कर रखा हैं। पंजाब पीपुल्स पार्टी एक नर्इ पार्टी है और उसका जनाधार कितना व्यापक है इसका पता लगना अभी बाकी है।

वैसे पंजाब पीपुल्स पार्टी मुख्य रूप से प्रकाश सिंह बादल के जनाधार के एक हिस्से पर ही आधाारित है। मनप्रीत का जोर मालवा क्षेत्र के अकाली समर्थकों को अपनी ओर मोड़ने पर होगा। गौरतलब है कि मालवा क्षेत्र मे प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाले शिरामणि अकाली दल का बड़ा प्रभाव हुआ करता था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांंग्रेस ने वहां अच्छी पैठ बना ली है। अब मनप्रीत वहां अपनी पार्टी को मजबूत करने में लगे हुए हैं।

मनप्रीत के साथ मोर्चेबंदी में शायद लोंगोवाल अकाली दल भी शामिल हो जाए। इस दल का नेतृत्व फिलहाल सुरजीत सिंह बरनाला की पत्नी कर रही हैं। श्री बरनाला भी अब तमिलनाडु में अपने राज्यपाल का कार्यकाल पूरा कर पंजाब वापस आ चुके हैं।

मनप्रीत ने बहुजन समाज पार्टी को भी अपने मोर्चे में शामिल करने की बहुत कोशिश की। यदि बसपा इसमें शामिल हो जाए, तो निश्चय ही यह मोर्चा एक बड़ी ताकत बनकर उभरे, पर बसपा ने साफ कर दिया है कि किसी पार्टी के साथ उसकी मोर्चेबंदी नहीं होगी और न ही वह किसी पार्टी के साथ कोर्इ गठबंधन अथवा तालमेल करेगी। उसने राज्य की सारी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।

उधर प्रकाश सिंह बादल भी दुबारा सत्ता में आने के लिए राजनैतिक कसरत करने में लगे हुए हैं। उन्हें पता है कि उनकी सहयोगी भाजपा कमजोर हो चुकी है। भाजपा का शहरी मतदाता वर्ग पर असर रहा है, लेकिन अब वह शहरों में कमजोर हो गर्इ है और उसकी जगह वहां कांग्रेस ने उसके समर्थक मतदाताओ में अपनी पैठ बना ली है। भाजपा के लिए वहां फिर अपनी ताकत बढ़ाना आसान नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल कोशिश कर रहे हैं कि वे भाजपा को साथ रखते हुए बहुजन समाज पार्टी के साथ भी गठबंधन कर लें। पर बसपा इसके लिए तैयार नहीं दिखती।

कांग्रेस की सिथति तो प्रदेश स्तर पर अच्छी है, लेकिन केन्द्रीय स्तर पर उसकी हो रही फजीहत उसके लिए यहां भी माहौल खराब करने का काम करती है। रोज रोज भ्रष्टाचार की खबरे आती हैं। केन्द्रीय स्तर पर कांग्रेसी नेताओं के नाम उसमें घसीटे जाते हैं। पार्टी की फजीहत होती है और इसके कारण प्रदेश में भी कांग्रेस को राजनैतिक नुकसान उठाना पड़ता है। सच कहा जाय तो सत्तारूढ़ गठबंधन कांग्रेस की इसी कमजोरी का लाभ उठाना चाहता है। (संवाद)