इस संदर्भ में फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन का सोनिया और राहुल पर लगाये गए उस आरोप की याद भी आ जाती है, जब संकट की घड़ी में उन्होंने बिग बी के फोन काॅल का जवाब भ्ज्ञी नहीं दिया था, जबकि बच्चन और नेहरू- गांधी परिवार के बीच दोस्ताना संबंध थे। उस घटना पर बिग बी ने व्यंग्य के साथ कहा था कि हमारा उनके साथ संबंध राजा और प्रजा का हो गया था। राजा जब चाहे प्रजा के घर पर चला जाए और जब मन हो तो प्रजा को अपने पास बुला ले, लेकिन जब प्रजा उससे मिलना चाहे, तो वह उससे मिल ही ले, यह कोई जरूरी नहीं है।
दलितों और ग्रामीणों के घरों और बस्तियों में घूमघूमकर बाहबाही लूटने वाले राहुल गांधी के घर अगर कोई दलित अथवा अन्य ग्रामीण आ जाए, तो उसकी क्या गति होगी, यह रालेगण सिद्धी के ग्रामीणों की हुई गति से अंदाज लगाया जा सकता है। जाहिर है, राहुल गांधी ने एक झटके में वह सब कुछ गंवा दिया, जिसे पाने में उन्हें महीनों नहीं, बल्कि सालों लगे थे। महात्मा गांधी कहा करते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। अभी भी गांधी का वह कथन अप्रासंगिक नहीं हुआ है, लेकिन राहुल गांधी ने भारत की ग्रामीण आत्मा के साथ जैसा व्यवहार किया, उससे उनका और सिर्फ उनका ही नुकसान हुआ।
अब राहुल गांधी के लोग कह रहे हैं कि अन्ना के ग्रामीणों को उनसे मिलने के लिए समय ही नहीं दिया गया था। दूसरी तरफ वे ग्रामीण कह रहे हैं कि उन्हें बुलाया गया था, तभी वे दिल्ली आए थे और उन्हें राहुल गांधी के कार्यालय से बुलावा आया था। कांग्रेस के एक सांसद, जो केरल से हैं, कह रहे हैं कि यह सब उनके कार्यालय की गलती से हुआ। उनके कार्यालय के लोगों ने उन ग्रामीणों को दिल्ली बुला लिया, जबकि उन्हें मिलने का वक्त राहुल गांधी की ओर से नहीं मिला था। केरल के कांग्रेसी सांसद पी टी थामस सारा दोष अपने सिर पर लेकर मामले को रफा दफा करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या मामला इतनी आसानी से रफा दफा हो जाएगा?
इस घटना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन पर राहुल गांधी के रवैये को थोड़ा और साफ किया है। देश के सामने खड़े भ्रष्टाचार के मसले पर राहुल गांधी कुछ खास नहीं बोलते। वे युवाओं को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं और देश के युवा भ्रष्टाचार के मामले पर बहुत उद्वेलित हैं। पर राहुल गांधी को इस मसले पर मुह खोलने में कोई दिलचस्पी नहीं। एक बार मुह थोड़ा खोला, तो उससे निकला कि मुझे 10 साल दीजिए, मैं भ्रष्टाचार को खत्म कर दूंगा। इस तरह की बात हास्यास्पद थी, क्योंकि जब घर में आग लगी हुई हो, तो कुंआ खोदने के लिए कोई 10 साल का समय नहीं मांगता।
दूसरी बार राहुल गांधी ने संसद में भ्रष्टाचार के मसले पर अपना मुह खोला और अन्ना व उनके आंदोलन से खासा नाराज नजर आए। 10 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे एक 74 साल के वरिष्ठ नागरिक के साथ संवेदना जताने के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं थे और उनके भाषण का दारोमदार यह था कि जनलोकपाल विधेयक आ जाने से ही भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो जाएगा। यानी लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ रोष व्यक्त करें, यह भी राहुल गांधी के लिए स्वीकार्य नहीं था। लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की बात करके उन्होंने अपना भाषण समाप्त कर दिया, लेकिन आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे का अनशन कैसे समाप्त हो, इस पर किसी तरह की बात नहीं की। उस भाषण से उनकी छवि खराब हुई और भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन के बीच यह संदेश गया कि राहुल भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कठोर कानून जल्द से से जल्द बनाने मे दिलचस्पी नहीं लेते।
अब अन्ना के गांव के सरपंच के साथ जो कुछ हुआ, उससे यह संदेह और पुख्ता होते है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में चल रही मुहिम से राहुल गांधी न केवल खफा हैं, बल्कि इससे डरे हुए भी हैं। उनकी पार्टी सरकार में है, वे खुद सरकार में नहीं हैं, इसलिए सरकार की नाकामियों का ठीकरा उनके ऊपर नहीं फोड़ा जाएगा, लेकिन एक राजनेता के रूप देश के सामने खंड़े सबसे बड़े सवाल पर चुप्पी साधकर बैठ जाना, उनकी राजनीति को सवालों के घेरे मे तो खड़ा कर ही देता है।
सवाल उठता है कि कांग्रेसी सांसद थाॅमस रालेगण सिद्धी क्या करने गए थे और उन्होंने किस बिना पर वहां के सरपंच को राहुल गांधी से मिलने के लिए दिल्ली बुलाया था? या तो राहुल गांधी ने खुद ही उनको कहा होगा कि वहां जाकर उस गांव का जायजा लें और अन्ना को समझने की कोशिश करें अथवा खुद उत्सुकतावश वे वहां यह पता लगाने गए होंगे कि अन्ना की ताकत का राज क्या है। या तो राहुल गांधी ने खुद कहा होगा कि वे रालेगण सिद्धी के कुछ लोगों से मिलना चाहते हैं, इसलिए सांसद थामस उन्हें दिल्ली बुलाएं अथवा श्री थामस खुद उन्हें राहुल से मिलाकर पार्टी के लिए एक काम करने का श्रेय लेना चाहते थे। दोनों ही स्थितियों में राहुल गांधी का यह फर्ज बनता था कि वह अन्ना के गांववालों से मिले। यदि राहुल गांधी ने मिलने का समय नहीं दिया था, तब भी उनसे मिलने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए थी। राहुल गांधी अपनी पार्टी के महासचिव हैं और रालेगण सिद्धी के सरपंच एक कांग्रेसी कार्यकत्र्ता। क्या पार्टी का महासचिव अपनी पार्टी के एक सांसद के अनुरोध पर अपनी ही पार्टी के एक ग्रामीण कार्यकत्र्ता से नहीं मिल सकता? क्या यदि राहुल गांधी ऐसा करते तो क्या उनकी हेठी हो जाती? क्या कांग्रेस महासचिव ने कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं के लिए अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं और वह दरवाजा एक पार्टी सांसद की दस्तक से भी नहीं खुलता?
पता नहीं राहुल अपनी राजनीति के बारे में खुद निर्णय लेते हैं अथवा उनके साथ सलाहकारों का भी कोई समूह है? वे खुद निर्णय लेते हों या अपनी सलाहकारों की सलाह से, लेकिन रालेगण सिद्धी के सरपंच से मिलने से इनकार करके उन्होंने अपना और अपनी पार्टी का नुकसान कर लिया है। (संवाद)
अन्ना के ग्रामीणों का अपमान
आखिर क्या चाहते हैं राहुल गांधी?
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-10-19 20:26
अन्ना के गांव के सरपंच के साथ राहुल गांधी ने जो कुछ किया, उससे प्रधानमंत्री पद के भावी दावेदार के बारे में लोगों की छवि खराब ही हुई है। राहुल गांधी अपनी छवि एक ऐसे नेता के रूप में बना रहे थे, जो तमाम सुरक्षा घेरों के बावजूद ग्रामीणो और खासकर दलितों के साथ बैठकर खाना खाता है, उनकी सुनता और उनके घर पर ही सोता है, लेकिन जो कुछ भी उन्होंने रालेगन सिद्धी के ग्रामीणों के साथ किया, उससे यही संदेश गया है कि वे ग्रामीणों के साथ अपनी ही शर्तों पर मिला करते हैं। वे जब चाहें, किसी ग्रामीण के घर पर जा पहुंचें, लेकिन जब कोई ग्रामीण उनसे मिलने आता है, तो उसके लिए उनके पास कोई समय नहीं है।