अब दोनों गुट एक बार फिर वहीं पहुंच गए हैं, जहां वे चुनाव के पहले टिकटों के बंटवारें के समय थे। उस समय दोनों गुट अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में विधायक का टिकट देना चाहता था। अब दोनों ज्यादा से ज्यादा अपने लोगाें को निगमों के अध्यक्ष के पद पर लाना चाहते हैं।

इन दोनों मुख्य गुटों के अलावा केन्द्रीय मंत्री व्यालार रवि भी निगमों पर कब्जा जमाने की लड़ार्इ में शामिल हो गए हैं। अब वे भी अपने कुछ लोगाें को निगम के अध्यक्ष पद पर बैठाना चाहते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी अपने को शामिल किया था, लेकिन जल्द ही उन्होंने उस दौड़ से खुद को बाहर भी कर लिया था। वैसा करते समय उन्होंने इस बात को रेखांकित किया था कि रमेश और चांडी गुट सत्ता की मलार्इ की बंटवारा आपस में ही कर लेते हैं और अन्य लोगों के बीच उससे असंतोष फैलता है।

इस बीच वक्कम पुरुषोत्तमन पैनल की रिपोर्ट भी आ गर्इ है, लेकिन उस रिपार्ट पर अब धूल भी जमने लगी है। उस पैनल का गठन कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बारे में गहरार्इ से पता लगाने के लिए किया गया था। गौरतलब है कि सरकार गठित करने मे ंसफल होने के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीद से बहुत खराब था। इस पैलन ने पार्टी की खराब हालत के लिए आपसी गुटबाजी को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के अंदर गुटबाजी समाप्त होने अथवा कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।

निगम के अध्यक्ष पदों का मामला सिर्फ कांग्रेस तक ही सीमित नहीं है। यूडीएफ के अन्य घटक दलो की नजरें भी इस पर लगी हुर्इ हैं, पर कांग्रेस मोर्चे के छोटे दलों को निगम अध्यक्षों के पदों पर नहीं बैठाना चाहती। कम्युनिस्ट माक्र्सवादी पार्टी और जनाधिपत्य संरक्षण समिति जैसी छोटी पार्टिया भी निगम अध्यक्ष के पदों में हिस्सा चाहती हैं लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है। एमपी बीरेन्द्र प्रसाद की पार्टी भी चाहती है कि उसे भी कुछ निगमों का प्रबंधन मिले, पर कांग्रेस उसे भी हिस्सा नहीं देना चाहती।

यदि कांग्रेस ने अपना रवैया लचीला नहीं किया, तो मोर्चे को खतरा भी पैदा हो सकता है। सत्तारूढ़ मोर्चे के गैर कांग्रेसी घटक दल कांग्रेस की मनमानी को पसंद करने को तैयार नहीं हैं। (संवाद)