कुल्लु में उन्होंने पिछले 19 अक्टूबर को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को कहा कि इस मसले पर आत्ममंथन करें और इस पर किसी प्रकार का समझौता नहीं करें। उन्होंने कहा कि जब वे कर्नाटक के पार्टी प्रभारी थे, तो उन्होंने यदुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की थी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। यदि उनकी बात मान ली जाती, तो पार्टी को आज उस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता, जो यदुरप्पा के मसले पर उसे करना पड़ रहा है।
शांता कुमार की यह टिप्पणी बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की पृष्ठभूमि में आई है। लालकृष्ण आडवाणी भी आज भ्रष्टाचार के खिलाफ यात्रा कर रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी की उस यात्रा को उस समय झटका लगा, जब कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री यदुरप्पा की गिरफ्तारी हो गई। इतना काफी नहीं था। इसके बाद तो उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के अन्य नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे शुरू किए गए। आडवाणी इस यात्रा पर इसलिए हैं, ताकि उनकी पार्टी को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के केन्द्र में लाया जा सके और खुद प्रधानमत्री बनने की उनकी अपनी महत्वाकांक्षा पूरी हो सके।
अन्ना हजारें के आंदोलन को भारी जनसमर्थन मिला, क्योंकि देश की जनता कुछ ऐसे कठोर कानून चाहती है, जिससे भ्रष्टाचार पर कुछ तो अंकुश लग सके, भले ही यह पूरी तरह समाप्त न हो सके। संसद में इस कानून को लेकर किस तरह का विधेयक पेश किया जाता है और कैसा कानून बनता है, यह देखा जाना अभी बाकी है। सच तो यह है कि लोकपाल कानून बनाने की कसरत दशकों से चल रही है।
कुछ राज्यों में लोकायुक्त पहले से ही हैं, लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने में उनकी उपयोगिता के बारे में किसी को कोई भ्रम नहीं है। पंजाब में भी एक लोकायुक्त हैं, लेकिन वह एक कागजी शेर हैं। उनके पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है। उनके पास न तो पर्याप्त धन है और न ही जांच अधिकारी। पिछले दो सालों में इसने पंजाब के राज्यपाल को किसी तरह की कोई रिपोर्ट भी नहीं सौंपी है। इसके कार्यालय ने पंजाब सरकार को चेतावनी दी है कि यदि वर्तमान स्थिति आगे भी बनी रही, तो इसका सारा कामकाज एक दिल ठप हो जाएगा।
लोकायुक्त के लिए सबसे चिंता की बात तो यह है कि आरक्षी महानिरीक्षक शाम लाल गखर को एकाएक तबादला कर दिया गया। वे पंजाब के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के खिलाफ एक शिकायत की जांच कर रहे थे, जिसमें बाप बेटे पर एयर कंडिशंउ बसें चलाने के घोटाले का मामला था। एक दूसरा मामला 100 करोड़ रुपए के जमीन घोटाले का था, जिसमें एसजीपीसी की पूर्व अघ्यक्ष जागीर कौर आरोपी थीं।
आई जी गखर का तबादला अजीबोगरीब परिस्थितियों में किया गया। पहले उन पर पटियाला स्थित उनके सरकारी मकान को खाली करवाने की कोशिश हुई। उस मकान को गखर छोड़ना नहीं चाहते थे। अब वे पटियाला रेंज के ही आईजी बन गए हैं अब मकान खाली करने का खतरा उनके ऊपर से टल गया है। इस लिहाज से अब वे पहले से बेहतर स्थिति में हैं। उन्हें नवंबर महीने में ही अपनी जांच की रिपोर्ट देनी थी। अब वे यह रिपोर्ट दे नहीं पाएंगे। उनकी जगह कोई अन्य पुलिस अधिकारी नियुक्त भी नहीं किया गया है। जाहिर उन मामलों मे लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट समय पर नहीं तैयार हो पाएगी।
हिमाचल प्रदेश में भी लोकायुक्त की हालत कोई बेहतर नहीं है। यहां लोकायुक्त अपने विवेक से किसी मसले का संज्ञान नहीं ले सकते। उनकी पास जांच के लिए कोई मशीनरी भी नहीं है। जाहिर वे किसी के खिलाफ ढंग से मुकदमा भी नहीं चला सकते हैं। यह एक पूरी तरह से दंतहीन संस्था है। इसका नेतृत्व एक जज कर रहे हैं, जिनकी अच्छी ख्याति है, लेकिन वे कुछ नहीं कर सकते। हिमाचल प्रदेश देश का दूसरा ऐसा राज्य है, जहां लोकायुक्त का गठन 1983 में किया गया। उसके पहले सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही इसका गठन हुआ था।
शांता कुमार भ्रष्टाचार के अलावा वंशवाद की राजनीति के खिलाफ भी आवाज उठा रहे हैं। वंशवाद देश भर मे व्याप्त है। यह पंजाब, हरियाणा से लेकर तमिलनाडु और महाराष्ट्र तक में फैला हुआ है। इनमें पंजाब कोई कम बदनाम नही है। यहां तो पंजाब का बादल मंत्रिमंडल पारिवारिक मंत्रिमंडल तक कहा जाता है। एक समय तो बादल मंत्रिमंडल में एक ही परिवार के 5 सदस्य शामिल थे। प्रकाश सिंह बादल के अलावा, उनका बेटा, भतीजा, दामाद और बेटे का साला शामिल था। उनकी पुत्रवधु लोकसभा की सांसद हैं। उनके बेटे के साले ने अपने बहनोई सुखबीर सिंह बादल के लिए विधानसभा का अपना क्षेत्र खाली किया था। बाद में प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल ने पारिवारिक कलह के कारण पाटी्र्र छोड़ दी, क्योंकि उन्हें वित्त मंत्री पद से हटा दिया गया था। इस तरह परिवारवाद में पंजाब एक आदर्श उदाहरण बना हुआ है। (संवाद)
वंशवादी राजनीति का आदर्श उदाहरण है पंजाब
ज्यादातर राज्यों में लोकपाल दंतहीन है
बी के चम - 2011-11-01 12:01
इस युग में जब वंशवाद और भ्रष्टाचार साथ साथ पनप रहे हों, किसी राष्ट्रीय पार्टी के किसी भी नेता के लिए किसी से वंशवाद को लेकर कुछ बोलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन एक नेता इस तरह की बात कर रहा है और इसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को जाता है। वे अकेले अपनी पार्टी में वंशवाद की बढ़ती प्रवृति के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं।