केन्द्र सरकार ने कुछ समय पहले मीडिया को नियंत्रित करने के लिए एक कमिटी के गठन का प्रस्ताव रखा था, जिस मीडिया संगठनों के भारी विरोध कि बाद वापस ले लिया गया। उसके बाद टीवी चैनलों के लिए नए दिशा निर्देश जारी कर दिए गए। ये दिशा निर्देश चैनलों के डाउनलिंकिंग और अपलिंकिंग से संबंधित है। उसके पहले उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था कि प्रेस काउंसिल के पास बहुत कम ताकत है और वह दोषी अखबारों और टीवी चैनलों को दंडित करने में असमर्थ है।
इसी माहौल में सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत जज मार्कंडेय काटजू को प्रेस काउंसिल का अध्यक्ष बनाया गया है। श्री काटजू मीडिया के बारें में अच्छी राय नहीं रखते हैं, यह पहले भी पत्रकारों को पता था और अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने मीडिया और पत्रकारों के बारे में जो अपनी राय व्यक्त की है, इससे पता चलता है कि प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में वे अपना क्या एजेंडा रखना चाहते हैं।
उन्होंने अध्यक्ष बनने के बाद एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और उनसे मांग की है कि प्रेस काउंसिल को ज्यादा अधिकार दिया जाय, ताकि उसका इस्तेमाल कर वे गड़बड़ी करने वाले पत्रकारों को रास्ते पर ला सकें। यह उनका अकेला बयान नहीं है। वे पत्रकारों के बारे में और भी बहुत कुछ बोल रहे हैं। वे पत्रकारों के बारे में ऐसी बाते कर रहे हैं, जिससे लगता है कि वे उनमें अच्छे और बुरे का भेद भी नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि उनकी राय में पत्रकारों को किसी बात की जानकारी नहीं है। न तो वे अर्थशास्त्र की जानकारी रखते हैं और न ही राजनीति शास्त्र की और न ही दर्शन शास्त्र के बारे में उनके पास कुछ ज्ञान है।
वे पत्रकारों के बारे में जो कह रहे हैं, उनमें से ज्यादातर बातें सच हो सकती हैं, लेकिन एक साथ ही सबके बारे में खराब राय रखना आपत्तिजनक बात है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है। लेकिन अन्य पेशों का भी तो स्तर गिर है। फिर पत्रकारिता को उससे अलग करके कैसे देखा जा सकता है? विश्वविद्यालयों और काॅलेजों मे पढ़ाई का स्तर गिर है। पढ़ाने वाले शिक्षकों का स्तर गिर रहा है, तो फिर पत्रकारों का भी स्तर गिर रहा है। इसलिए एक पेशे को अलग करके उसपर हमला करने की जरूरत क्यों आ पड़ी?
मार्कंडेय काट्जू ने जो आरोप लगाए हैं, वे अपने आपमें बहुत आपत्तिजनक नहीं है, लेकिन उन्होंने अपने आरोपों की परिधी में सारें पत्रकारों को ला दिया है, वह गलत है। आखिर श्री काट्जू कितने पत्रकारों को जानते हैं? कितने पत्रकारों से बात करने का उनको मौका मिला है? सच तो यह है कि उनकी राय टीवी चैनलों को देखकर और अखबारों को पढ़कर बनी है। उन्होंने अखबारें भी कुछ ही पढ़ी होंगी। जाहिर है जज मीडिया के बारे में अपनी राय बनाने में जल्दबाजी कर रहे हैं।
श्री काट्जू अपनी राय बनाने में हड़बड़ी तो दिखा ही रहे हैं, वे जो कह रहे हैं वे भी बहुत गंभीर रूप से आपत्तिजनक है। उदाहरण के लिए वे कहते हैं कि मीडिया लोगों के हितों का ख्याल नहीं रखता। वह मीडिया के बारे में इतना की कहकर नहीं रूकते, बल्कि यह भी कहते हैं कि मीडिया जनहित के खिलाफ काम कर रहा है। वे बताते हैं कि मीडिया देश की गरीबी से लोगों का ध्यान बंटाता है और फिल्म स्टार, फैशन परेड और क्रिकेट को बढ़ावा दे रहा है। इस तरह मीडिया जनहित के खिलाफ काम कर रहा है। जज के अनुसार क्रिकेट लोगों के लिए अफीम के समान है, जिसे मीडिया लोगों को परोस रहा है। सवाल उठता है कि क्या श्री काट्जू यही चाहते हैं कि मीडिया एक स्वर से देश की गरीबी के बारे में ही चर्चा करते है, क्योंकि यह देश की सबसे बड़ी समस्या है? (संवाद)
मीडिया के लिए आने वाले दिन मुश्किल भरे होंगे
भारतीय प्रेस परिषद के नए अध्यक्ष
अमूल्य गांगुली - 2011-11-02 12:17
क्या यह महज एक संयोग है कि जब केन्द्र सरकार मीडिया पर बंदिशें लगाने के लिए एक से एक निर्णय ले रही है, उसी समय प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया का चेयरमैन ऐसे व्यक्ति को बनाया गया है, जिनकी मीडिया और पत्रकारों के बारे में राय बहुत खराब है। पिछले कुछ समय से केन्द्र सरकार मीडिया से खासा नाराज है, क्योंकि इसमें भ्रष्टाचार की खबरें प्रमुखता से छप रही है और सरकार को बार बार शर्मसार होना पड़ रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रहे आंदोलन को भी प्रमुखता से छापा जा रहा है और टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित किया जा रहा है।