सीपीएम नेताओ की शिकायत है कि चुनाव में हार के बाद उनकी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं पर तृणमूल कार्यकत्र्ताओं की ओर से लगातार हमले हो रहे हैं और इस तरह की हिंसा के कारण उनकी पार्टी के 600 कार्यालयों में काम नहीं हो पा रहा हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इसकी शिकायत की, लेकिन इसके बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है।
सीपीएम अपनी अगली पार्टी कांग्रेस केरल में आयोजित करने जा रही है। उसका कहना है कि पश्चिम बंगाल में हिंसक माहौल होने के कारण जमीनी स्तर पर स्थित पार्टी की शाखाओं में उसके कार्यकर्ताओं की कान्फ्रेंस तक आयोजित नहीं हो पा रही है। बैठकें नहीं होने का एक कारण यह भी है कि शाखा स्तर पर होने वाली बैठकों में लोग आ ही नहीं पा रहे हैं। इसके कारण अब ऊपरी स्तर पर की गई बैठकों में ही शाखा स्तर के फैसले लिए जाएंगे।
वाम नेताओं के करीबी सूत्रों से पता चला है कि पार्टी का युवाओं को ज्यादा सक्रिय बनाने का अभियान सफल नहीं हो रहा है। एक नीति के तहत वाम मोर्चा के नेता चाहते थे कि पार्टी के कामकाज में 40 साल से कम लोगों को ज्यादा से ज्यादा सक्रिय किया जाए। इसके लिए प्रयास भी किए गए, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। इसका कारण यह है कि युवा कार्यकत्र्ता सक्रियता दिखाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।
युवाओं की दिलचस्पी में कमी होने का कारण यह भी है कि वरिष्ठ नेताओं के प्रति वे सशंकित रहते हैं। उन्हें लगता है कि यदि वे सक्रिय होकर कुछ करना भी चाहें, तो वरिष्ठ नेता उनका अपने अनुसार ही चलाना वाहेंगे और उनके विचारों का सम्मान नहीं किया जाएगा।
ऐसी बात नहीं है कि युवा कार्यकत्र्ता मात्र इसके कारण ही हताश है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं मेे भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया है अथवा वे मनमाने तरीके से काम करते हैं और दूसरों को अपनी बात मनवाने के लिए डेमोक्रेटिक सेंट्रलिज्म का उपदेश देना शुरू करते हैं। वे उन नेताओं की वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर भी सशंकित हैं। डेमोक्रेटिक यूथ फेडेरेशन के एक नेता कहना है कि सही यह गलत माओवादियों के पास एक विचारधारा है, जो कि अन्य पार्टियों के पास नहीं है।
इस बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता चुपचाप बैठे हुए नहीं हैं। वे केरल की पार्टी कांग्रेस की तैयारी तो कर रही रहे हैं, इसके अलावा वे राज्य में महंगाई, भ्रष्टाचार, श्रमिक कानूनों पर हो रहे हमले व अन्य मसलों पर लगातार आंदोलन कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य से लेकर उनके नीचे तक के नेता लगातार पार्टी को सक्रिय करने के प्रयास में लगे हुए हैं।
लेकिन उन्हें लोगों का पूरा समर्थन नहीं मिल रहा। उनके आंदोलनों के साथ लोग जुड़ नहीं पा रहे हैं। वे नेता यह मानते हैं कि अभी भी राज्य के लोगों की आस्था ममता बनर्जी में बनी हुई है और वे उनकी सरकार के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहते।
सीपीआई, आरएसपी और फारवर्ड ब्लााॅक की हालत तो सीपीएम से भी ज्यादा खराब है। अब तो इन पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट भी खड़ा होता दिखाई दे रहा है। इन पार्टियों के नेता सीपीएम नेताओं की की गई गलतियों की खूब आलोचना करते हैं, लेकिन उसमें भी उन्हें जनता का साथ मिलता नहीं दिखाई पड़ रहा है। सीपीएम की आलोचनओं से वे लोगों को अपने बारे में आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं।
वाम मोर्चा के छोटे दल अब आपस में बैठकर ज्यादा बैठकें कर रहे हैं और उनकी बैठकों का जोर सीपीएम का कटघरे में खड़ा करना ही होता है। सीपीएम के खिलाफ उनके द्वारा की जा रही आलोचनाएं लगातार तीखी होती जा रही हैं। उनकी मुख्य शिकायत यह होती है कि सीपीएम उनके द्वारा किए जा रहे आंदोलनों और कार्यक्रमों मे हिस्सा नहीं लेती और वह चाहती है कि अन्य छोटे दल उनके कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर भाग लें। हालांकि वाम मोर्चा के सभी घटक सार्वजनिक रूप से अपने गठबंधन को मजबूत बनाए रखने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करते रहते हैं। (संवाद)
वामपंथी दलों के संगठन में अफरातफरी
सीपीएम को तृणमूल की हिंसा की शिकायत
आशीष बिश्वास - 2011-11-04 11:16
कोलकाताः पश्चिम बंगाल में वामपंथी मोर्चा संगठनात्मक समस्या का सामना कर रहा है। उसके द्वारा आयोजित विरोध कार्यक्रमों को लोगों का समर्थन भी हासिल नहीं हो रहा है। इसके कारण उन दलों की संगठनात्क कमजोरी अब साफ दिखाई पड़ने लगी है।