उन्होंने यह बता दिया कि क्यों महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग द्वारा पिछले 12 सालों में 70 हजार करोड़ रुपया खर्च होने के बाद भी किसानों को एक बूंद भी अतिरिक्त जल उनके खेतों की सिंचाई के लिए नहीं मिला। उसके बाद भी केजरीवाल पर भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस और एनसीपी के नेता भी हंस रहे थे कि उन्होंने तो भ्रष्टाचार का कोई आरोप ही नहीं लगाया था। उनके कहने का मतलब था कि जिस सांठगांठ के पर्दाफाश के सबूत पेश किए गए थे, उससे सरकारी निर्णयों की अनिमितता तो साबित होती थी, लेकिन यह नहीं साबित होता था कि मुकदमा चलाने लायक कोई मामला गडकरी के खिलाफ भी बनता है। श्री गडकरी ने 100 एकड़ जमीन पाने के लिए आवेदन किया। आवेदन करना भ्रष्टाचार नहीं है, भले ही जिस जमीन के लिए उन्होंने आवेदन किया था, उसे पाने की अर्हता उनके पास नहीं थी। 4 दिनों के अंदर ही उनके आवेदन पर कार्रवाई हुई। इससे यह साबित तो होता है कि अजित पवार से नितिन गडकरी की सांठगांठ थी, लेकिन इससे भी भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं बनता। अर्हता न होने के बाद भी गडकरी को वह जमीन मिल गई। इससे भी सिर्फ सांठगांठ का ही पता चलता है। इसके आधार पर गडकरी के खिलाफ कोई केस नहीं बनता। सरकारी निर्णय की अनियमितता का मामला बनता है और ज्यादा से ज्यादा उस जमीन का आबंटन रद्द हो सकता है, पर श्री गडकरी के खिलाफ उस गलत आबंटन के लिए कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
जाहिर है, उस आरोप को गडकरी द्वारा "चिल्लर" आरोप करार दिया गया, हालांकि वह बेहद ही संगीन आरोप था, क्योंकि जिस विदर्भ से गडकरी आते हैं, वहां पिछले 10- 12 वर्षों में करीब 54 हजार किसानों ने आत्महत्या की है और वहीं उनइ किसानों के नाम पर राज्य सरकार के 70 हजार करोड़ रुपये भी खर्च हुए हैं। उन आत्महत्याओं के लिए उस सांठगांठ को स्पष्ट रूप से जिम्मेदार कहा जा सकता है, पर गडकरी इस बात को लेकर खुश थे कि उनके खिलाफ जो भी सबूत पेश किए गए, उनके आधार पर उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं बन सकता। भले कानून और नियमों का उल्लंघन करके उन्हें 100 एकड़ जमीन आबंटित कर दी गई हो, लेकिन कम से कम इस उल्लंघन का दोष उन पर नहीं पड़ सकता, भले ही सरकार के उस निर्णय का लाभ उन्हें ही क्यों न मिला हो।
लेकिन एक राष्ट्रीय दैनिक और बाद में कई खबरिया टीवी चैनलों ने जो दिखाया, वह तो भ्रष्टाचार का सीधा साधा उदाहरण है। गडकरी की पूर्ति पावर और शूगर कंपनी को वित्त पोषित होने में भ्रष्टाचार हुआ है। जिस ठेकेदार को श्री गडकरी ने लोक निर्माण मंत्री के पद पर रहते हुए फायदा पहुंचाया, उसने उनकी पूर्ति कंपनी को 164 करोड़ रुपये दे डाले। यह तो भ्रष्टाचार का इतना सीधा मामला है कि भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए काफी है। ये दस्तावेज सीबीआई के हाथ लगने के साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर का मामला बनता है और उसके साथ ही उनकी गिरफ्तारी का भी मामना बनता है। इतना ही नहीं, इसके अलावा भी गडकरी पर भ्रष्टाचार के दाग हैं। अपनी पूर्ति कंपनी के खाते में अपने धन (काले धन) को लाने के लिए उन्होंने फर्जी कंपनियों का सहारा लिया। उन कंपनियों को फर्ज पतों पर अपने ड्राइवर, एकाउंटेट, अन्य नजदीकी लोग और कुछ फर्जी लोगों के नाम से भी पंजीकृत करवा दिया और उनके माध्यम से पूर्ति के पास धन आया। जाहिर है, यह सारा फर्जीवाड़ा नितिन गडकरी ने ही किया और करवाया है। उसके बाद फिर जांच के लिए रह ही क्या जाता है? धोखाधड़ी का सीधा मामला बनता है।
भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े के इन ताजा आरोपों के बाद गडकरी के चेहरे से हंसी गायब है। कुछ समय के लिए तो भाजपा के आधिकारिक प्रवक्ता भी नितिन गडकरी के बचाव करने की जगह मीडिया के लिए गायब हो गए थे। पर जब पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ताओं ने चुप्पी साधी तो एकाएक लालकृष्ण आडवाणी मुखर हो गए। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख का भाषण सुना और देख लिया कि गडकरी के खिलाफ किसी तरह की उस भाषण में टिप्पणी नहीं की गई है, तो भाजपा के पूर्व लौह पुरुष खुद मैदान में कूद पड़े और नितिन गडकरी की प्रशंसा कर डाली कि उन्होंने केन्द्र सरकार से जांच की मांग कर दी है। गडकरी पर लगाए गए आरोप को उन्होंने केन्द्र की सूपीए सरकार की साजिश तक बता दी और कह डाला कि यूपीए सरकार पूरे राजनैतिक वर्ग को भ्रष्ट साबित करना चाहती और इसी के तहत उसने गडकरी पर यह आरोप लगवाए हैं।
पर सवाल उठता है कि क्या ये आरोप गलत हैं? यह सच है कि जांच करने का काम जांच एजेंसियों का है और फैसला करने का काम अदालत का है, लेकिन क्या हमारे देश के लोगों की समझ इतनी नहीं है कि सही और गलत में अंतर नहीं समझ सकें? क्या मीडिया में नितिन गडकरी के खिलाफ जो कुछ आया है, वह श्री गडकरी को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए काफी नहीं है? जब लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ हवाला मामले में सिर्फ इस बिना पर मुकदमा चला था कि एक हवाला व्यापारी की डायरी में उससे चंदा लेने वालों की सूची में उनका नाम आ गया था, तब तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और 13 दिन के लिए बनी वाजपेयी सरकार में 1996 में उन्होंने कोई पद लेने से इनकार कर दिया था। पर आज वही आडवाणी गडकरी का बचाव करते हुए एक तरह से कह रहे हैं कि उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटने की जरूरत नहीं है। उन्हीं का अनुसरण सुषमा स्वराज भी कर रही हैं।
आज नितिन गडकरी भारतीय जनता पार्टी पर बोझ बन गए हैं। उन्हें अध्यक्ष पद पर रखते हुए यदि भाजपा अगला लोकसभा चुनाव लड़ती है, तो पार्टी को इसका खामियाजा उसी तरह भुगतना पड़ेगा, जिस तरह उत्तर प्रदेश में बाबूसिंह कुशवाहा को पार्टी में लेने के कारण उसे वहां के विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा था। उत्तर प्रदेश क्या, उत्तराखंड में भाजपा का उसके कारण वहां भारी नुकसाना हुआ और पार्टी सत्ता में दुबारा नहीं आ सकी। यदि बाबू सिंह प्रकरण नहीं होता, तो शायद उत्तरराखं डमें दो या चार सीटें और मिल जाती और वहां उसकी सरकार भी बन जाती।
सवाल उठता है कि आखिर आडवाणी और सुषमा स्वराज गडकरी का बचाव क्यों कर रहे हैं? क्या वे भाजपा को अगली सरकार बनाते देखना नहीं चाहते हैं? आडवाणी ने भविष्यवाणी की है कि अगली सरकार भाजपा की नहीं होगी। क्या वे अपनी भविष्यवाणी को सच साबित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं? (संवाद)
भाजपा पर बोझ बन चुके हैं गडकरी
आडवाणी सुषमा क्यों कर रहे हैं उनका बचाव?
उपेन्द्र प्रसाद - 2012-10-25 12:51
जब अरविंद केजरीवाल ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री अजित पवार के साथ सांठगांठ का आरोप साबित किया था, तो भाजपा के नेता हंसते हुए कह रहे थे कि उन्होंने तो उनके ऊपर कोई संगीन आरोप लगाए ही नहीं। श्री केजरीवाल ने यह साबित कर दिया था कि किस तरह महाराष्ट्र के राजनेताओं द्वारा की गई सांठगांठ और उनके भ्रष्टाचार से किसानों के हितों के नाम पर खर्च की गई राशि का गड़बड़झाला चल रहा है।