दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नितिन गडकरी को अध्यक्ष पद पर दूसरे कार्यकाल के मसले पर विचार विमर्श कर रहा था, उसी दिन भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अरविंद केजरीवाल ने उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितता और कांग्रेस व एनसीपी के साथ सांठगांठ का आरोप लगा दिया। वे अपना पहला कार्यकाल आगामी दिसंबर महीने में पूरा करेंगे और उसके बाद का कार्यकाल जनवरी, 2013 से शुरू होगा। भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेता, नरेन्द्र मोदी समेत कई मुख्यमंत्री व कुछ अन्य नेता उन्हें दुबारा अध्यक्ष पद पर बैठाए जाने के पक्ष में नहीं थे। क्योंकि वे किसी भारी भरकम नेता को लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी के पद पर बैठाए जाने के पक्ष में थे। गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजनीति में गडकरी अभी भी एक हल्का नेता माने जाते हैं।

हालांकि भाजपा इस समय गडकरी का बचाव कर रही है, लेकिन वे अब पार्टी और आरएसएस के लिए एक बोझ सा बन गए हैं। उनकी छवि बहुत हद तक खराब हो गई है। वे कैमरे का सामना तो कर रहे हैं, लेकिन अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का खंडन करने में विफल साबित हुए हैं। भाजपा हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भ्रष्टाचार को चुनावों का मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन गडकरी पर लग रहे आरोपों के कारण उसके इन प्रयासों को झटका लग रहा है।

नितिन गडकरी अपनी वरिष्ठता के कारण भाजपा के अध्यक्ष पद पर नहीं बैठे थे, बल्कि आरएसएस के समर्थन के कारण ही उनको यह पद मिला था। इसलिए अब वह यदि जाते हैं, तो आरएसएस के कारण ही अपने पद से जाएंगे। वैसे आरएसएस ने उन्हें अपने पद पर बने रहने के लिए भाजपा का संविधान तक बदलवा दिया था। आरएसएस को पहले भी पता था कि श्री गडकरी के अपने व्यापारिक हित हैं, पर उसे यह नहीं पता था कि मामला इस हद तक गडकरी के खिलाफ चला जाएगा। उन पर लग रहा आरोप सिर्फ भाजपा को ही नहीं, बल्कि आरएसएस को भी नुकसान पहुंचा रहा है, इसलिए आरएसएस को बहुत सोच विचार कर निर्णय लेना होगा।

सवाल उठता है कि यदि गडकरी हटते हैं, तो फिर फायदा किसे होगा? इस समय इस पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली हैं और इनमें नरेन्द्र मोदी की दावेदारी सबसे ज्यादा मजबूत है। वे विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं औ अब गुजरात से निकलकर केन्द्र में आना चाहते हैं।

मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कुछ भाजपा नेताओं की जो आवाज उठ रही थी, अब वह और तेज होती जा रही है। उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाने की मांग करने वालों मे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री यदुरप्पा भी थे, जो अब अगल पार्टी बनाने जा रह हैं। इस समय राम जेठमलानी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए सबसे ज्यादा मुखर हैं और उन्होंने तो गडकरी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की भी कहना शुरू कर दिया है। अपने दावे को मजबूत करने के लिए नरेन्द्र मोदी ने विजयादशमी के पहले आरएसएस प्रमुख से नागपुर में मुलाकात भी की थी।

जो गडकरी को अध्यक्ष पद से हटाना चाहते हैं, उनका कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोप का सामना करते हुए अपना पद छोड़ने वाले वे कोई पहले व्यक्ति नहीं होंगे। जब लालकृष्ण आडवाणी का नाम जैन हवाला डायरी में आया था, तो उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था और आरोप मुक्त होने के बाद वे भाजपा के फिर अध्यक्ष भी बन गए थे। बंगारू लक्ष्मण पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो उन्होंने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसलिए वे कह रहे हैं कि गडकरी को भी आडवाणी और लक्ष्मण द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलना चाहिए।

राजनीति में कहा जाता है कि सीजर ही नहीं, सीजर की पत्नी को भी संदेह से परे होना चाहिए। अब गडकरी के साथ क्या होता है, यह संघ के रवैये पर ही निर्भर करेगा। (संवाद)