1956 में मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया था। उसके बाद यहां अबतक या तो कांग्रेस की सरकार रही है या भारतीय जनता पार्टी की। भारतीय जनता पार्टी पहले भारतीय जनसंघ के नाम से जानी जाती थी और उसके बाद उसने जनता पार्टी में अपना विलय कर लिया था। 1967 से 1972 तक मध्यप्रदेश में भाजपा ने भारतीय जनसंघ के नाम से सत्ता संभाली थी, तो 1977 से 1990 तक इसने जनता पार्टी के नाम से सत्ता संभाली थी।

भाजपा के नाम से यह 1990 में सत्ता में आई थी, लेकिन इस सरकार को 1992 में बाबरी मस्जिद के घ्वंस के बाद केन्द्र सरकार द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था। 1993 मे हुए चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी थी। 1993 से 2003 दिग्विजय सिंह कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। 2003 में भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीती थी। उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं, लेकिन बाबूलाल गौर के हाथ मे मुख्यमंत्री का पद चला गया था और फिर श्री गौर के बाद शिवराज सिंह चैहान मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं।

यदि अगले चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी जीत जाती है, तो मध्यप्रदेश में लगातार 10 साल से ज्यादा शासन करने का रिकार्ड भाजपा बना लेगी। राज्य की वर्तमान राजनैतिक स्थिति को देखते हुए इसे कठिन भी नहीं माना जा सकता है। इसका कारण यह है कि भाजपा जहां चुनाव जीतने के लिए व्यवस्थित तरीके से काम कर रही है, वहीं कांग्रेस में स्थिति दयनीय बनी हुई है।

मध्यप्रदेश भाजपा में शिवराज सिंह चैहान ने अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है और उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है। भाजपा उनके नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़ेगी, इसकी पूरी संभावना है। मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रभात झा हैं। अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल अगले जनवरी में पूरा हो रहा है। उसके बाद वे अपने पद पर बने रहेंगे या नहीं इसके बारे में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

हालांकि शिवराज सिंह चैहान खुद किसी गुटीय संघर्ष में शामिल नहीं हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर अनेक जगहों पर भारतीय जनता पार्टी गुटीय संघर्ष की शिकार है। इंदौर भाजपा और आरएसएस के लिए खास महत्व रखता है और वहां कैलाश विजयवर्गीय व सुमित्रा महाजन के गुटों के बीच संघर्ष लगातार चल रहा है। श्री विजयवर्गीय प्रदेश सरकार में मंत्री हैं, तो सुश्री महाजन इन्दौर से लगातार 5 कार्यकालों से लोकसभा सांसद रही हैं।

गुटीय संघर्ष से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी को चुनाव मे प्रभावित करने वाला फैक्टर उसकी सरकार की उपलब्धियां या नाकामियां को ही बनना है। राज्य सरकार ने उच्च गुणवत्ता की सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा था। वह लक्ष्य पाने मे सरकार अभी तक पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है। अनेक स्थानों पर सड़कों की स्थिति खराब है। पिछले 19 अक्टूबर को हुई कैबिनेट बैठक में यह मुद्दा छाया रहा और मुख्यमंत्री ने लोक निर्माण विभाग से कहा है कि आगामी जून महीने तक वह सभी खराब सड़कों की मरम्मत करवा दे।

गौरतलब है कि 2003 और 2008 के चुनाव भाजपा ने बिजली, पानी और सड़क के मसले पर लड़ा था, लेकिन एक दशके में भी इन तीनों में से किसी भी समस्या का अभी तक निदान नहीं किया जा सका है। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच व्याप्त भारी भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है। यदि भाजपा को अगला चुनाव जीतना है, तो उसे सड़क और बिजली के मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार समाप्ति के मोर्चे पर भी काफी कुछ करना होगा।

वर्तमान स्थिति कांग्रेस के अनुकूल होनी चाहिए थी, लेकिन कांग्रेस अपनी अंदरूनी समस्या मे ऐसी उलझी हुई है कि इस स्थिति का फायदा उठाने की स्थिति में नहीं दिखाई देती है। प्रदेश कांग्रेस गुटबाजी की शिकार है और एक बहुत ही ताकतवर तबका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कान्तिलाल भूरिया को उनके पद से हटाने की कोशिशों में लगा हुआ है। फिलहाल दशहरा तक उन्होंने अपने प्रयासों को कुछ विराम दे रखा था, लेकिन अब बहुत जल्द ही वे भूरिया के खिलाफ अपना अभियान तेज करने वाले हैं। (संवाद)