इन मानदंडों पर हम आगामी हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण कर सकते हैं। प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की दशा को कुछ भी कहा जा सकता है, पर संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। दोनों में गुटबाजी हो रही है। दोनों पार्टियों के विक्षुब्ध चुनाव मैदान में उम्मीदवार बनकर उतरे हुए हैं। उनमें से अनेक अपनी पूर्व पार्टियों के आधिकारिक उम्मीदवारों को प्रभावित कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी को हिमाचल लोकहित पार्टी (हिलोपा) से भारी नुकसान हो रहा है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष महेश्वर सिंह ने इस नई पार्टी का गठन किया है और उसने अनेक असंतुष्ट भाजपा नेताओं को विधानसभा में उम्मीदवार बना रखा है। उनके कारण भाजपा के जनाधार में सेंध लग रही है। हिलोपा ने सीपीआई और सीपीएम के साथ मिलकर हिमाचल लोक मोर्चा का गठन कर रखा है। ये तीनों पार्टियां सीटों का आपसी तालमेल कर चुनाव लड़ रही है।
यदि भारतीय जनता पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष शांता कुमार के साथ तालमेल बैठाने में सफल नहीं होता तो पार्टी का भारी नुकसाना हो सकता था। कांगड़ा जिले में विधानसभा की अनेक सीटें हैं और यहां शांता कुमार की तूती बोलती है।
कांग्रेस की हालत भी कोई अच्छी नहीं है। कुख्यात सीडी केस में वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। उसके बावजूद पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व को प्रदेश पार्टी की बागडोर श्री सिंह के हाथ मे देना पड़ा। वे प्रदेश में एकमात्र ऐसे कांग्रेसी नेता हैं, जिनका राज्य भर में प्रभाव है और वे भाजपा को चुनौती देने में समर्थ हैं। उन्होंने विधानसभा में विपक्ष की नेता के साथ तालमेल बैठा लिया है और विजय मनकोटिया को भी पार्टी में लाने में सफल रहे हैं। गौरतलब है कि जिस सीडी केस में वीरभद्र सिंह फंसे हुए हैं, उसके पीछे मनकोटिया का ही हाथ माना जाता है। लेकिन वीरभद्र सिंह की समस्या यह है कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ठाकुर काॅल सिंह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री धूमल ने विकास को पार्टी का मुख्य चुनावी मुद्दा घोषित कर रखा है। इसमें कोई शक नहीं कि धूमल की सरकार के कार्यकाल में विकास की गति ने तेजी पकड़ी है, हालांकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में ही विकास ने गति पकड़ ली थी। पर इसके साथ यह भी सच है कि सड़क जैसे मामलों में स्थिति पहले से खराब ही हुई है।
हिमाचल में आज सड़कों की हालत जितनी खराब है, उतनी पहले कभी नहीं थी। इसके कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंच रहा है। परिवहन की समस्या के कारण सेब उत्पादक भारी समस्या का सामना कर रहे हैं। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश सेब का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
सत्ता में वापस आने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी ने विकास को सबसे प्रमुख मुद्दा बनाना चाहा था, पर सबसे प्रमुख मुद्दे का स्थान भ्रष्टाचार ने ले लिया है। भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस और और इसके नेता वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही थी, लेकिन कांग्रेस भी प्रदेश में भ्रष्टाचार की अनेक घटनाओं को उठा रही है और गडकरी प्रकरण ने उसे सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ आक्रामक होने का एक और मौका दे दिया है।
सच कहा जाय तो भ्रष्टाचार के मसले पर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही खराब थी। उसके पास राज्य सरकार के भ्रष्टाचार के मामलों को उठाने का मौका तो पहले भी था, पर केन्द्र की कांग्रेस सरकार पर एक के बाद एक लग रहे भ्रष्टाचार के मामलों ने उसे चुनाव प्रचार के दौरान रक्षात्मक बना रखा था। पर इसी बीच भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद कांग्रेस अभियान का नया बल मिल गया है। (संवाद)
हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा दोनों की हालत खराब
दोनों दलों पर भ्रष्टाचार के धब्बे
बी के चम - 2012-10-30 13:06
चंडीगढ़ः किसी चुनाव का परिणाम मुख्य रूप से तीन बातों पर निर्भर करता है। पहला फैक्टर मुख्य पार्टियों की दशा को मान सकते हैं। दूसरा फैक्टर चुनाव के मुद्दे होते हैं और तीसरा फैक्टर सरकारी पार्टी की उपलब्धियां अथवा नाकामियां है। नतीजे की बात तो होती है, लेकिन इस बात पर चर्चा नहीं होती कि जो भी नई पार्टी चुनाव जीतकर आएगी वह किन समस्याओं का सामना करेगी।