उन्होंने बताया कि गुलाब के पौधों में कलम करने के दौरान एक दिन मेरे दिमाग में आम के पौधों में भी कलम लगाकर कुछ नया करने का विचार आया और तब से/अर्थात पिछले सात वर्ष से आम की खास किस्म तैयार करने में लगा हुआ हूं तथा इसमें काफी हद तक सफलता मिली है।
श्री सुमन ने कहा कि इस समय में मेरे पास आठ-दस मदर प्लांट एवं 150 डॉटर प्लांट हैं। दो वर्ष पहले 15 पौधे कोटा व झालावाड़ में अपने ही परिचित काश्तकारों को बेचे थे, किन्तु अब आम के इन पौधों का पेटेन्ट कराने के बाद बेचने की सोचूंगा। पेटेन्ट कराने की कार्यवाही शुरू की है। आम के तीन फुट तक की उंचाई वाले पौधों पर भी पांच से छह फल लगे हुये हैं। एक छोटा फल तो मात्र एक फुट की उंचाई वाले पौधे पर भी लग गया है । इन पेड़ों पर अब तक 12 से.मी. लम्बा तथा 300 ग्राम वजन का फल आ चुका है। बरसात के इस मौसम में भी आम के फूल आये हुये हैं। उन्होंने कहा कि इस बारे में शायद बहुत ही कम लोग विश्वास करें, लेकिन कोई भी मेरे खेत पर आकर इसे देख सकता है ।
एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि मौसम के बाद आम के जो फल आते हैं उनका आकार अवश्य गोल हो जाता है, लेकिन स्वाद में कोई फर्क नहीं होता। हाल ही उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौ़द्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक मेरे खेत पर आये थे तथा आम के दो फल मेरे यहां से अनुसंधान के लिये लेकर गये हैं। (पसूका)
अपनी सफलता के प्रेरणा स्रोत का जिक्र करते हुए श्री सुमन कहते है एक साल पहले मैं जयपुर में उद्यान विभाग में किसानों के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने आया था। उस समय मेरी मुलाकात सीकर के प्रगतिशील किसान एवं राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित सुंडाराम से हुई। यह अवसर मेरे लिये काफी लाभप्रद रहा और उनसे मैं काफी प्रेरित हुआ। अब वह मेरे प्रेरणा स्रोत हैं।
कृषि के जानकारों एवं विशेषज्ञों के अनुसार कभी-कभी पेड़ पौधों में प्राकृतिक रूप से बदलाव आ जाता है और इस दौरान जिज्ञासु व प्रयोगधर्मी किसान हाथ में आयी सफलता को फिसलने नहीं देते। श्री किशन सुमन ने भी कुछ ऐसा ही किया। उनके द्वारा विकसित की गई सदाबहार आम की नई किस्म इस श्रेणी में आती है। यह सबसे जुदा और अनोखी है। श्री सुमन ने बताया कि उनके द्वारा विकसित की गई इस किस्म का गत मई में दिल्ली में हुये पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के एक कार्यक्रम में रजिस्ट्रेशन करवाया है। उन्होंने कहा कि विषय विशेषज्ञों ने भी इसे सबसे जुदा बताया है तथा लखनऊ में फल अनुसंधान संस्थान ने भी आम की इस यूनिक किस्म पर अनुसंधान की मंशा जाहिर की है। इसके अलावा नेशनल इनोवेशन फाउण्डेशन अहमदाबाद की सातवीं प्रतियोगिता में श्री सुमन की सफलता को विस्तार से प्रदर्शन के लिये भेजा है। यदि इसमें शामिल कर लिया जाता है तो यह उनके लिये एक बड़ी उपलब्धि होगी ।
श्री सुमन बताते हैं मेरी आय का जरिया गुलाब, मोगरा एवं मोरपंखी की खेती है। मोरपंखी से प्रति बीघा 50 से 60 हजार रूपये आय हो जाती है । मोरपंखी 40 रूपये किलो की दर से बिक जाती है। यह बुके बनाने में काम आती है । गुलाब के फूलों की कीमत मांग के अनुरूप रहती है। यह 20 रूपये से 150 रूपये तक बिक जाते हैं। शादियों के दिनों में इसकी भारी मांग रहती है, लेकिन गुलाब की खेती नाजुक खेती है तथा जोखिम भी ज्यादा रहती है। फूलों को रोक नहीं सकते। मैंने अपने खेत में मोगरा भी उगा रखा है। मोगरे की कलियों की तुड़ाई काफी महंगी पडती है। खेत में संतरे एवं पपीते के पेड़ भी उगा रखे हैं। इसके अलावा मैं गेहूं और धान की खेती ठेके पर करता हूं। इस बार करीब 70 क्विंटल गेहूं एवं ट्रेक्टर की दो ट्रॉली चावल की पैदावार हुयी है । तैयार चावल की नर्सरी से रोपाई का कार्य चल रहा है ।
किसान ने विकसित की आम की सदाबहार किस्म
मनोहर कुमार जोशी - 2012-10-30 13:18
राजस्थान में कोटा जिले के प्रयोगधर्मी किसान श्री किशन सुमन ने आम की एक ऐसी पौध तैयार की है, जिससे आम के शौकीनों को साल भर आम का स्वाद मिल सकेगा । कोटा शहर से महज पांच किलोमीटर दूर जिले की लाडपुरा तहसील के गिरधरपुरा गांव में सात बीघा जमीन पर खेती करने वाले श्री सुमन ने अपनी सफलता की कहानी बयां करते हुये कहा कि शुरू में परम्परागत खेती करता था, लेकिन बाद में मैंने गुलाब की खेती शुरू कर दी। आज मेरे खेत में चार बीघा में गंगानगरी किस्म के गुलाब और तीन बीघा में मोरपंखी लगी हुई है तथा 150 से अधिक पौधे सदाबहार आम के हैं।