राष्‍ट्रपति ने उपस्थित साहित्‍य और अकादमिक समुदायों के लोगों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह महोत्‍सव इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि यह केरल की 56वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित किया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि ‘मैं आप सभी का और आपके माध्‍यम से केरल की जनता का अभिनंदन करता हूं।‘ उन्‍होंने कहा कि अगले तीन दिन में यहां मलयालम के महत्‍व, वर्तमान विकास और साथ ही साथ उसके भविष्‍य पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

उन्‍होंने इस अवसर पर केरल के विलक्षण और प्राचीन इतिहास का भी उल्‍लेख किया। यह कई संस्‍कृतियों और वर्णों तथा भाषाई और धार्मिक प्रभावों का सम्‍मिश्रण रहा है। उन्‍होंने कहा कि आज दुनियाभर में तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग मलयालम भाषी हैं, जिनमें से अधिकांश भारत में हैं।

श्री मुखर्जी ने कहा कि मलयालम हमारे देश की सबसे ज्‍यादा विकसित भाषाओं में से एक हैं। यह स्‍वभाविक है कि इस दौर के बहुत से महान साहित्‍यकार मलयाली हैं। ज्ञानपीठ पुरस्‍कार के प्रथम विजेता जी. संकरा कुरूप से लेकर समकालीन मलयाली लेखकों ने उत्‍कृष्‍ट मानक तय किए हैं। उन्‍होंने कहा ‘मुझे यह जानकारी बेहद खुशी हो रही है कि आप हमारे बीच दो ज्ञानपीठ पुरस्‍कार विजेता श्री एम.टी. वासुदेवन नायर और श्री ओ.एन.वी. कुरूप उपस्थित हैं।

उन्‍होंने कहा कि भाषा परंपरागत मूल्‍यों और विरासत से कितनी ही समृद्ध क्‍यों न हो, अगर वह विकसित नहीं होगी, तो अपनी प्रासंगिकता और लोकप्रियता खो देगी, इसलिए अपनी बहुमूल्‍य भाषाओं की रक्षा के लिए बहुत जरूरी है कि उन्‍हें सभी आधुनिक साधनों के माध्‍यम से बढ़ावा दिया जाए। साथ ही, उनके अनूठेपन के विकास पर भी ध्‍यान दिया जाए। उन्‍होंने कहा कि नई पीढ़ी की जरूरतें पूरी करने में पूरी तरह सक्षम न होने वाली भाषा सुरक्षित हाथों में नहीं हो सकती। यह महोत्‍सव यकीनन ऐसे ही मसलों को समाधान करेगा।

राष्‍ट्रपति ने कहा ‘मैं समझता हूं कि नया मलयालम विश्‍वविद्यालय एक नवंबर 2012 से तिरूर में काम करना शुरू कर देगा और यह मलयालम भाषा शास्‍त्र, साहित्‍य, ललितकलाओं, विजुअल आर्ट्स और वास्‍तुकला, सांस्‍कृतिक नृविज्ञान और सांस्‍कृतिक एवं साहित्यिक विरासत अ‍ध्‍ययनों सहित अन्‍य विषयों के अध्‍ययन के लिए समर्पित होगा। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि विश्‍वविद्यालय में होने वाले अनुसंधान और गतिविधियां मलयालम के संरक्षण और प्रचार की दिशा में सकारात्‍मक छाप छोड़ेंगी।‘

श्री मुखर्जी ने कहा कि वह विश्‍व मलयालम महोत्‍सव को इस संदर्भ में बहुत ही समय पर की गई पहल के रूप में देखते हैं। उन्‍होंने कहा कि केरल का उल्‍लेख प्रकृति के खजानों से सुशोभित भूमि के रूप में किया जाता है और इसके वासियों ने सामाजिक और शैक्षिक सुधारों के अग्रिम मोर्चे पर रहकर खुद को साबित किया है।

उन्‍होंने कहा कि सौ फीसदी साक्षरता हासिल करने वाला यह देश का पहला राज्‍य है। मलयालम के विकास के साथ केरलवासियों की पहचान मुक्‍त, सहनशील और नये तत्‍वों और प्रभावों को आत्‍मसात करने वालों के रूप में हुई है।

श्री मुखर्जी ने कहा कि उन्‍हें यकीन है कि राज्‍य और दुनियाभर में फैले 30 लाख से ज्‍यादा मलयालम भाषियों के लिए यह सम्‍मेलन अपने अनुभव, उम्‍मीदें और आकांक्षाएं सांझा करने का मंच साबित होगा।