सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि अब राजनीति का अपराधीकरण हो गया है और नौकरशाही व पुलिस का राजनैतिककरण हो गया है। यही कारण है कि जो पंजाब पुलिस इस मामले में कभी साफ सुथरी दिखाई पड़ती थी, अब लगातार राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करती दिखाई पड़ रही है। इसके कारण निष्पक्षता का इसका दावा कमजोर पड़ता जा रहा है।
पिछले दिनों अकाली दल और कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। कुछ समय पहले सीबीआई की एक अदालत ने अकाली दल की एक वरिष्ठ मंत्री बीबी जागीर कौर को पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। गौरतलब है कि बीबी जागीर कौर शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमिटी की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। उनके खिलाफ अपनी बेटी के साथ जोरजबर्दस्ती करने और उसका गर्भपात कराने का आरोप था। उसी आरोप में उन्हें सजा सुनाई गई थी। उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर ने भी बेटी का जबर्दस्ती गर्भपात करवाने की घटना में बीबी कौर के शामिल होने को दुर्भाग्यपूर्ण कहा था। वे कन्या भ्रूणहत्या पर आयोजित एक गोष्ठी को दो नवंबर को संबांिधत कर रही थी। उसी गोष्ठी में उन्होंने यह विचार व्यक्त किया था।
एक अन्य मामले में प्रदेश के कृषि मंत्री तोता सिंह को एक साल की सजा मिली थी और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उनके खिलाफ अपने सरकारी पद के दुरुपयोग का मामला चल रहा है। उनके अलावा एक अन्य मंत्री गुलजार सिंह रानिके को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। सरकारी अनुदान में घोटाले का आरोप उनपर लगा था। अभी भी कुछ अकाली मंत्रियों के खिलाफ आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं।
आज नौकरशाही का राजनैतिककरण हो गया है। इस युग में ऐसे अधिकारी अब बहुत कम रहे, जो राजनेताओं की इच्छा के अनुसार आदेश जारी न करने की हिम्मत करें। आजादी के बाद के शुरुआती दिनों में ऐसी बात नहीं थी। उस समय ऐसा अधिकारी भी थे, जो अपने राजनैतिक बाॅस के उन आदेशों को मानने से इनकार कर देते थे, जो उन्हें अनुचित लगता था। सामाजिक हितों को नुकसान पहुंचाने वाले आदेशों को जारी करने से वे इनकार कर देते थे।
लेकिन अब सभी राज्यों में नौकरशाह अपने राजनैतिक आकाओं के धुन पर नाचने के लिए तैयार रहते हैं। वे ऐसा करते समय सामाजिक हित अथवा नियम कायदे का भी ख्याल नहीं रखते। इसके बदले में वे अपने हितों को भी साधते हैं। उन्हें समय से पहले प्रोन्नति मिल जाती है और रिटायर होने के बाद भी वे कहीं न कहीं सत्ता के शक्तिशाली पद पर काबिज होने का मौका पा लेते हैं। कई तो पार्टी टिकट लेकर चुनाव भी लड़ लेते हैं।
पिछले कई सालों से पंजाब के नौकरशाह सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों के हाथ के खिलौने हो गए हैं। वे उनका इस्तेमाल अपने राजनैतिक विरोधियों के खिलाफ भी करते हैं। निगरानी विभाग भी सत्तारूढ़ नेताओं के हाथ में अपने राजनैतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल होने वाला विभाग बन गया है। नौकरशाही में भ्रष्टाचार मिटाने के बदले निगरानी विभाग राजनैतिक स्वार्थों की लड़ाई मे ंशामिल हो रहा है। एक ताजा उदाहरण है कि पंजाब पुलिस के महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी का पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष कैप्टन अमरींदर सिंह के साथ उलझ जाना।
पुलिस प्रशासन ही नहीं, बल्कि पंजाब सरकार की वित्तीय हालत भी दयनीय हो गई है। इसका असर पूरे प्रशासन और प्रदेश पर पड़ रहा है। इसके कारण विकास काम प्रभावित हो रहे हैं और अनेक परियोजनाओं पर चल रहे काम इससे प्रभावित हो रहे हैं। इसके कारण सामाजिक कल्याण के काम प्रभावित हो रहे हैं और शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी भारी गिरावट आ रही है। जाहिर है, पंजाब आज चैतरफा पतन के दौर से गुजर रहा है औ इसका खोया गौरव निकट भविष्य में वापस आने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। (संवाद)
क्या पंजाब अपना खोया गौरव पा सकेगा?
राजनैतिक कठपुतली है पंजाब की नौकरशाही
बी के चम - 2012-11-05 12:49
चंडीगढ़ः क्या पंजाब अपना पुराना गौरव दुबारा पा सकेगा? ऐसा लगता तो नहीं है। खासकर निकट भविष्य में ऐसा होने की कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस और अकाली दल की सरकारों के तहत पंजाब लगातार अपनी चमक खोता जा रहा है। पंजाब के शुभचिंतकों के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि पिछले कुछ महीनों में राजैनैतिक, प्रशासनिक और वित्तीय मोर्चे पर राज्य का स्वास्थ्य लगातार नीचे गिरा है।